Tag: #अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम” के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • यह कैसा लोकतंत्र – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार “अंजुम”

    यह कैसा लोकतंत्र – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    यह कैसा लोकतन्त्र
    यह कैसी आजादी
    दिखती नहीं मानवता
    खो रही सामाजिकता

    मानव के चारों ओर
    फैल रही भयावहता
    असफल होता जीवन
    सरकता , सिसकता जीवन

    पनपता अपराध
    करता कुठाराघात
    शाम कहाँ हो पता नहीं
    कल का भरोसा नहीं

    तोड़ता नियमों को
    आदर्शों की धज्जियां उड़ाता
    चारों ओर फैलता अँधेरा
    सोचने मजबूर करता

    यह कैसा लोकतन्त्र
    यह कैसी आजादी

    शिक्षा बन गया है व्यवसाय
    शिक्षक हो गए हैं पेशेवर
    सरकारी अस्पताल हो गए हैं
    दरिद्रों के घर

    यातायात व्यवस्था चरमरा रही
    आये दिन दुर्घटनायें हो रहीं
    रक्षकों पर नहीं रहा विश्वास
    घात लगाए बैठी है ये आस

    राह दिखती नहीं
    मंजिल का पता नहीं
    लोग फिर भी रैंग रहे
    बार – बार कह रहे

    यह कैसा लोकतन्त्र
    यह कैसी आजादी

    लडकियां यहाँ सुरक्षित नहीं
    इस असभ्य समाज में
    फैलती आधुनिकता की गंदगी
    चारों ओर गलियार में

    छोटे कपड़ों ने स्थिति
    और भी भयावह की है
    युवा अपने नियंत्रण में नहीं रहा
    बलात्कार इसकी परिणति हो गयी

    गति पकड़ती अनैतिकता , अमानवता
    असामाजिकता , छूटता भाईचारा
    हर कोई कह रहा

    यह कैसा लोकतन्त्र
    यह कैसी आजादी

    शॉर्टकट हो गया जरूरत
    कल का इंतजार ख़त्म
    डर के बीद जीत , कई बार
    देती जीवन से हार

    ये कैसा मुक्त व्यवहार
    कहीं कोई लगाम नहीं
    ना ही कोई मंजिल
    ना कोई ठिकाना

    कहाँ है जाना
    अंत नहीं अंत नहीं
    दिल बरबस कह उठता

    यह कैसा लोकतन्त्र
    यह कैसी आजादी

  • किस राह – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    किस राह - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

    किस राह – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    किस राह की बात करूं मैं
    किस राह पर चलूँ मैं

    किस पड़ाव पर रुकूं मैं
    किस हाल में जियूं मैं

    किससे अपनी व्यथा सुनाऊँ मैं
    किस मार्ग पर चलूँ मैं

    किन आदर्शों में पलूँ मैं
    किस दिशा में चलूँ मैं

    किस किसकी दशा पर रो पडूं मैं
    सोचता हूँ
    किन और किस से
    जुड़े प्रश्नों का हल क्या हो

    मानव जो मानवता के
    झंडे तले रहना नहीं स्वीकार करता

    मानव जो आदर्शों तले
    अपना जीवन गुजारना
    स्वीकार नहीं करता

    मानव जो विलासितारूपी
    दानव का मित्र बन गया है
    मानव जो आतंक रुपी
    दानव हो गया है

    मानव जो रंग बदलती
    दुनिया में खो गया है
    मानव जो अमानवीय
    संस्कारों में अपने लिए थोड़ी सी
    छाँव ढूंढ रहा है

    मानव जो कमण्डलु को
    छोड़ बोतल का शिकार हो गया है
    मानव जो
    सौन्दर्य के चक्रव्यूह
    में फंस व्यभिचारी हो गया है

    मानव जो
    अपनी आने वाली पीढ़ी
    के लिए मृत्यु बीज बो रहा है

    मानव जो
    मानव के पहलू से खींचता
    आदर्शों का पहनावा
    संस्कारों की लकीर में
    जगाता विश्वास
    सत्मार्ग से कुमार्ग की ओर
    करता प्रस्थित

    भौतिक संसाधनों
    के चक्र जाल में उलझता
    मानव
    मानव को नहीं भाता

    मानव को मानव की मनुगति नहीं भाती
    मानव को मानव का कुविचारों से सुविचारों
    की ओर पलायन नहीं भाता

    मानव को मानव की संस्कृति
    संस्कारों में रूचि नहीं भाती
    ऐसे मानव विहीन
    समाज में किस पर विश्वास करूँ

    किसे आदर्श कहूँ
    किसे अपना कहूँ

  • मातृभूमि को नमन- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मातृभूमि को नमन- कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

    मातृभूमि को नमन- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    इस मातृभूमि को नमन करते मेरे नयन
    अविचल छाया करती है जिसका ह्रदय स्पंदन

    वीरांगनाओं ने किया जिस भूमि पर सर्वस्व समर्पण
    उन वीरों की पावन धरती को नमन करते मेरे नयन

    देश प्रेम की ज्योति जलाई करके वीरों ने सर्वस्व समर्पण
    उन वीरों की पावन भूमि को नमन करते मेरे नयन

    कृष्ण की इस पावन भूमि से उपजा प्रेम बंधन
    इस प्रेम बंधन को नमन करते मेरे नयन

    ऋषियों मुनियों की इस भूमि ने दिया तपोधन
    इस तपोभूमि को नमन करते मरे नयन

    राम की इस धरती ने दिया आदर्श का धन
    राम के आदर्श को नमन करते मेरे नयन

    सूफी संतों की इस भूमि ने दिया मानवता का मन्त्र
    सूफी संतों की इस पावन भूमि को नमन करते मेरे नयन

    कल्पना और राकेश ने दिया आसमां को छूने का मंन्त्र
    उन वैज्ञानिकों की इस पावन भूमि को नमन करते मेरे नयन

    इस मातृभूमि को नमन करते मेरे नयन
    अविचल छाया करती है जिसका ह्रदय स्पंदन

    इस मातृभूमि को नमन करते मेरे नयन
    इस मातृभूमि को नमन करते मेरे नयन

  • सचिन :- क्रिकेट का भगवान- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    सचिन :- क्रिकेट का भगवान- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    सचिन :- क्रिकेट का भगवान- कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

    सचिन क्रिकेट की एक विशिष्ट अनुभूति,
    क्रिकेट का विस्तार है

    क्रिकेट जगत में मिला जिसे
    प्यार अपार है

    ख्याति जिसकी विश्व में
    बेशुमार है

    सादा जीवन जिसका
    जिन्हें केवल क्रिकेट से प्यार है

    बच्चा – बच्चा, देश का हर सपूत
    उन्हें क्रिकेट का भगवान कहे

    सचिन , वो सख्शियत हैं जो
    हर पल जरूरतमंदों के साथ रहे

    तुम्हारी लगन और समर्पण ने
    तुम्हें क्रिकेट का मसीहा बनाया

    तुम्हारे अनुशासन और देशभक्तिपूर्ण विचारों ने
    तुम्हें क्रिकेट सम्राट बनाया

    ये हम क्रिकेट के चाहने वालों की किस्मत है
    जो हमने क्रिकेट के भगवान को अपने देश में पाया

    आपकी क्रिकेट भक्ति का जहां में नहीं कोई सानी है
    इस दुनिया में आप क्रिकेट की पहली कहानी हैं

    आपके समर्पण से ही क्रिकेट
    बालपन से युवावस्था में आया

    ऐसा क्रिकेट सम्राट हमने जहां में
    कहीं नहीं पाया

    आप अद्वितीय हैं आप बेमिसाल हैं
    आप जैसा इस धरा में

    दूसरा नहीं कोई लाल है
    आपने इस देश को क्रिकेट की

    जो सौगात दी है
    वह अविस्मरणीय है

    आपकी क्रिकेट कला के हम सब पुजारी हैं
    क्रिकेट के हर महारथी के सामने आप पड़े भारी हैं

    क्रिकेट सचिन है , सचिन क्रिकेट है
    आप करोड़ों दिलों की धडकन हैं

    आपसे ही क्रिकेट की सुबह और शाम है
    आप मानवता के पुजारी हैं

    आप गुरुभक्ति के सबसे बड़े समर्थक हैं
    आपकी कर्मठता , दूरदर्शिता ने

    आपको इस धरा पर सितारा बना दिया
    आपके खेल ने हम सबको
    आपका दीवाना बना दिया

    बड़े भाई के प्रति प्रेम
    बच्चों के प्रति वात्सल्य
    आपके व्यक्तित्व में झलकता है

    आपके नाम से गली – गली में
    क्रिकेट का सूर्य उदय होता है

    सचिन तुम युवा पीढ़ी के
    पथ प्रदर्शक हो गए

    संकल्पों की नीव , आदर्शों का
    आधार हो गए

    तुमसे ही हर दिलों में
    क्रिकेट जवान होता है

    तुमसे ही हर गली , हर मोहल्ले में
    क्रिकेट पल्लवित व जीवंत होता है

    सचिन तुम बेमिसाल हो
    कमाल हो , भारत की शान हो , क्रिकेट का ईमान हो

    सचिन तुम भारत के सच्चे सपूत हो गए
    सचिन तुम हकीकत में भारत रत्न हो गए

    सचिन आप अनमोल रत्न हैं
    आपसे विश्व में सम्मान पाता हमारा वतन है

    हे क्रिकेट के स्वामी , हे क्रिकेट के पालनहार
    लिया है आपने हिन्दुस्तान में अवतार

    आपके ही प्रयासों का यह परिणाम है
    आज सारे क्रिकेट के रिकॉर्ड आपके ही नाम हैं

    हे क्रिकेट विधाता . क्रिकेट आप से ही पूजा जाए
    इस वतन में आप हर बार जन्म लें

    इसी तरह इस खेल और इस वतन को रोशन करें |

  • नानक दुखिया सब संसार- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    नानक दुखिया सब संसार- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ जी रहे नगद कुछ जी रहे उधार

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ हैं स्वस्थ तो कुछ हैं बीमार

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ हैं पूर्ण आहार तो कुछ हैं निराहार

    नानक दुखिया सब संसार
    नेताओं ने किया देश का बंटाढार

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ नोच रहे मानवता को कुछ कर रहे परोपकार

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ मस्त हैं माया ,मोह में कुछ लगे मोक्ष उद्धार

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ जी रहे विलासिता में कुछ सादा जीवन उच्च विचार

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ कर रहे अपराध कुछ कर रहे उपकार

    नानक दुखिया सब संसार
    कुछ कर रहे भरपेट भोजन कुछ खा रहे रोटी अचार