Tag: #अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम” के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • राम स्तुति / अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    राम स्तुति / अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    राम स्तुति / अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

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    रघुनन्दन हे सबके प्यारे
    रामचंद्र तुम सबके दुलारे
    कौशल्या को तुम हो प्यारे
    दशरथ नंदन सबके प्यारे
    जय सीतापति जय हो राघव
    जय दशरथी जय जानकी बल्लभ
    जय रघुनन्दन जय श्री राम
    रावण को तुमने है तारा
    प्रिय विभीषण को गले लगाया
    सुग्रीव ने तुमसे जीवन पाया
    सबरी को भी मोक्ष दिलाया
    आदर्शों के तुम सो स्वामी
    हे प्रभु हे अन्तर्यामी
    अहिल्या ने भी जीवन पाया
    असुरों को भी प्रभु पार लगाया
    बने सबकी आँखों के तारे
    घर – घर आओ राम हमारे
    राम-राम जय राम – राम
    कर दो सबके पूर्ण काम
    निर्मल कर दो सबकी काया
    हर लो प्रभु जी सारी माया
    रघुनन्दन हे सबके प्यारे
    रामचंद्र तुम सबके दुलारे

  • चन्द्र स्तुति- अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    चन्द्र स्तुति- अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    चन्द्र स्तुति- अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

    चंद्रलोक के तुम हो स्वामी
    हो प्रभु तुम नभ के वासी

    हे मयंक प्रभु हे रजनीश
    हे प्रकृति पोषक हे राकेश

    हे विधु प्रभु सोम हमारे
    हे रजनीश प्रकृति के दुलारे

    हे कलानिधि हे मयंक तुम
    कष्ट हरो प्रभु इंदु हमारे

    हे निशाकर तुम लगते प्यारे
    हे हिमांशु हे शशि हमारे

    हे शशांक तुम देव हमारे
    पुष्पित होते तुमसे हर अंश

    कुदरत पाती तुमसे जीवन
    यूं ही जीवन बरसाना तुम

    ताल सरोवर पुष्ट करो तुम
    शुभ ज्योत्स्ना बिखराओ तुम

    खिला तरंगिणी छ जाओ तुम
    अमृता सुधा हो बरसाते तुम

    कौमुदी चन्द्रिका धरा लाते तुम
    हे चाँद हे चंद्रमा तुम

    नभ में लगते सबसे प्यारे तुम
    पुष्ट करो हम सबका जीवन
    खिल जाए हर इक तन मन

  • आज जिंदगी बेमानी हो गई है – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    आज जिंदगी बेमानी हो गई है – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    आज के समय परिवर्तन के
    मिजाज़ को देखो
    बदलते मिजाज़ के
    इस चमन को देखो

    किशोर जवानी की देहलीज़ पर
    अपने आपको
    वृद्ध महसूस कर रहे हैं

    इंसान, आज इंसानियत को त्याग
    अवसरवादिता के शिकार हो रहे हैं

    मानसिकता में मानव की
    अजब सा बदलाव आ गया है

    संस्कृति, संस्कारों को छोड़
    अवसरवादिता व आधुनिकता की अंधी दौड़
    भा गया है

    मर्यादा, तप, भावुकता, आत्मीयता
    बीती बातें हो गयी हैं
    आज का आदमी
    असहज असहज सा नज़र आ रहा है

    बाह्य आडम्बर ने
    मानव को आज
    भीतर से खोखला किया है
    सहृदयता की जगह
    वैमनस्यता ने ले ली है

    मानव आज का
    हास्यास्पद सा नज़र आ रहा है

    मानसिकता में आज के
    मानव की
    अजब सा मोड़ आ गया है
    उपकार, कृतिघ्निता, आत्मीयता
    इन सबमें अजीब सा
    ठहराव आय गया है

    अतिमहत्वाकांक्षा, चालाकी, चंचलता
    ने पसार लिए हैं पाँव
    आज का मानव
    अपवित्र, भयानक, कुटिल,
    क्रोधी व कपटी नज़र आ रहा है

    पल – पल जिंदगी इनकी
    नासूर हो रही है
    ताकत और धन के
    नशे में चूर
    जिंदगी इनकी
    बेनूर हो रही है

    चारित्रिक पतन ने
    इनका जीवन
    और भी भयावह
    कर दिया है
    अस्तित्व धरा पर
    इनका
    अंधकारपूर्ण हो गया है

    गिरता है कोई
    तो हंस उठते हैं सब
    उठता है कोई जब
    अर्श से आसमान की ओर
    तो सबका
    दिल जल उठता है
    किस्सा ए इंसानियत का
    इस धरा से
    नामो निशाँ
    मिट गया है

    आज आदमी हर
    एक दूसरे से
    कुछ इस तरह
    कट गया है

    जिस तरह
    नदी के दो पाट
    जिनके मिलने की संभावना
    न्यून हो गई है

    आदमी आदमी के काबिल न रहा
    आज जिंदगी
    बेमानी हो गई है

    आज जिंदगी
    बेमानी हो गई है

    आज जिंदगी
    बेमानी हो गई है

  • हर एक दिन को नए वर्ष की – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हर एक दिन को नए वर्ष की – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    हर एक दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो तुम

    हर दिन यूं ही कल में
    परिवर्तित हो जाएगा
    तूने जो कुछ न पाया तो
    सब व्यर्थ हो जाएगा

    उद्योग हम नित नए करें
    हम नित नए पुष्प विकसित करें
    कर्म धरा को अपना लो तुम
    हर-क्षण, हर-पल को पा लो तुम

    व्यर्थ समय जो हो जाएगा
    हाथ ना तेरे कुछ आएगा
    मात-पिता के आशीष तले
    जीवन को अनुशासित कर

    पुण्य संस्कार अपनाकर
    अपना कुछ उद्धार करो तुम
    इस पुण्य धरा के पावन पुतले
    राष्ट्र प्रेम संस्कार धरो तुम

    मानवता की सीढ़ी चढ़कर
    संस्कृति का चोला लेकर
    पुण्य लेखनी बन धरती पर
    नित नए आविष्कार करो तुम

    खिल जाये जीवन धरती पर
    मानव बन उपकार करो तुम
    अपनाकर जीवन में उजाला
    नित नए आदर्श गढो तुम

    नित नए आयाम बनो तुम
    दयापात्र बनकर ना जीना
    अन्धकार को दूर करो तुम
    सदाचरण, सद्व्यवहार करो तुम

    हर एक दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो तुम

  • धरती माँ तुम पावन थीं – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    नदी

    धरती माँ तुम पावन थीं – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    धरती माँ तुम पावन थीं
    धरती माँ तुम निश्चल थीं
    रूप रंग था सुन्दर पावन
    नदियाँ झरने बहते थे कल – कल
    मोहक पावन यौवन था तेरा
    मन्दाकिनी पावन थी सखी तुम्हारी
    बहती थी निर्मल मलहारी
    इन्द्रपुरी सा था बसता था जीवन
    राकेश ज्योत्स्ना बरसाता था
    रूप तेरा लगता था पावन
    रत्नाकर था तिलक तुम्हारा
    मेघ बने स्नान तुम्हारा
    पंक्षी पशु सभी मस्त थे
    पाकर तेरा निर्मल आँचल
    राम कृष्ण बने साक्ष्य तुम्हारे
    पैर पड़े जिनके थे न्यारे
    चहुँ और जीवन जीवन था
    मानव – मानव सा जीता था
    कोमल स्पर्श से तुमने पाला
    मानिंद स्वर्ग थी छवि तुम्हारी
    आज धरा क्यों डोल रही है
    अस्तित्व को अपने तोल रही है
    पावन गंगा रही न पावन
    धरती रूप न रहा सुहावन
    अम्बर ओले बरसाता है
    सागर सुनामी लाता है
    नदियों में अब रहा न जीवन
    पुष्कर अस्तित्व को रोते हर क्षण
    मानव है मानवता खोता
    संस्कार दूर अन्धकार में सोता
    संस्कृति अब राह भटकती
    देवालयों में अब कुकर्म होता
    चाल धरा की बदल रही है
    अस्तित्व को अपने लड़ रही है
    आओ हम मिल प्रण करें अब
    मातु धरा को स्वर्ग बनायें
    इस पर नवजीवन बिखरायें
    प्रदूषण से रक्षा करें इसकी
    इस पर पावन वृक्ष लगायें
    हरियाली बने इसका गहना
    पावन हो जाए कोना कोना
    न रहे बाढ़ न कोई सुनामी
    धरती माँ की अमर कहानी
    धरती माँ की अमर कहानी