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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ० बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • पीयूष वर्ष छंद (वर्षा वर्णन) बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    पीयूष वर्ष छंद (वर्षा वर्णन) बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    छंद
    छंद

    बिजलियों की गूंज, मेघों की घटा।
    हो रही बरसात, सावन की छटा।।
    ढोलकी हर ओर, रिमझिम की बजी।
    हो हरित ये भूमि, नव वधु सी सजी।।

    नृत्य दिखला मोर, मन को मोहते।
    जुगनुओं के झूंड, जगमग सोहते।।
    रख पपीहे आस, नभ को तक रहे।
    काम-दग्धा नार, लख इसको दहे।।

    पीयूष वर्ष छंद विधान:-

    • यह 19 मात्रा का सम पद मात्रिक छंद है। चार पद, दो दो सम तुकांत।
    • 2122 21,22 212 (गुरु को 2 लघु करने की छूट है। अंत 1S से आवश्यक। यति 10, 9 मात्रा पर।)

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • राखी पर कविता (चौपइया छंद ) बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    (चौपइया छंद)

    यह प्रति चरण 30 मात्राओं का सममात्रिक छंद है। 10, 8,12 मात्राओं पर यति। प्रथम व द्वितीय यति में अन्त्यानुप्रास तथा छंद के चारों चरण समतुकांत। प्रत्येक चरणान्त में गुरु (2) आवश्यक है, चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद मनोहारी हो जाता है।
    इस छंद का प्रत्येक यति में मात्रा बाँट निम्न प्रकार है।
    प्रथम यति: 2 – 6 – 2
    द्वितीय यति: 6 – 2
    तृतीय यति: 6 – 2 – 2 – गुरु


    राखी पर कविता (चौपइया छंद ) बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    भाई-बहन
    श्रावण शुक्ल पूर्णिमा रक्षाबंधन Shravan Shukla Poornima Raksha Bandhan

    पर्वों में न्यारी, राखी प्यारी, सावन बीतत आई।
    करके तैयारी, बहन दुलारी, घर आँगन महकाई।।
    पकवान पकाए, फूल सजाए, भेंट अनेकों लाई।
    वीरा जब आया, वो बँधवाया, राखी थाल सजाई।।

    मन मोद मनाए, बलि बलि जाए, है उमंग नव छाई।
    भाई मन भाए, गीत सुनाए, खुशियों में बौराई।।
    डाले गलबैयाँ, लेत बलैयाँ, छोटी बहन लडाई।
    माथे पे बिँदिया, ओढ़ चुनरिया, जीजी मंगल गाई।।

    जब जीवन चहका, बचपन महका, तुम थी तब हमजोली।
    मिलजुल कर खेली, तुम अलबेली, आए याद ठिठोली।।
    पूरा घर चटके, लटकन लटके, आंगन में रंगोली।
    रक्षा की साखी, है ये राखी, बहना तुम मुँहबोली।।

    हम भारतवासी, हैं बहु भाषी, मन से भेद मिटाएँ।
    यह देश हमारा, बड़ा सहारा, इसका मान बढ़ाएँ।।
    बहना हर नारी, राखी प्यारी, सबसे ही बँधवाएँ।
    त्योहार अनोखा, लागे चोखा, हमसब साथ मनाएँ।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • सारवती छंद -विरह वेदना (बासुदेव अग्रवाल)

    सारवती छंद -विरह वेदना

    छंद
    छंद

    वो मनभावन प्रीत लगा।
    छोड़ चला मन भाव जगा।।
    आवन की सजना धुन में।
    धीर रखी अबलौं मन में।।

    खावन दौड़त रात महा।
    आग जले नहिं जाय सहा।।
    पावन सावन बीत रहा।
    अंतस हे सखि जाय दहा।।

    मोर चकोर मचावत है।
    शोर अकारण खावत है।।
    बाग-छटा नहिं भावत है।
    जी अब और जलावत है।।

    ये बरखा भड़कावत है।
    जो विरहाग्नि बढ़ावत है।।
    गीत नहीं मन गावत है।
    सावन भी न सुहावत है।।
    ===================
    लक्षण छंद:-

    “भाभभगा” जब वर्ण सजे।
    ‘सारवती’ तब छंद लजे।।

    “भाभभगा” = भगण भगण भगण + गुरु
    211 211 211 2,
    चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
    **********************

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • सिंहनाद छंद विनती (बासुदेव अग्रवाल)

    सिंहनाद छंद विनती

    छंद
    छंद

    हरि विष्णु केशव मुरारी।
    तुम शंख चक्र कर धारी।।
    मणि वक्ष कौस्तुभ सुहाये।
    कमला तुम्हें नित लुभाये।।

    प्रभु ग्राह से गज उबारा।
    दस शीश कंस तुम मारा।।
    गुण से अतीत अविकारी।
    करुणा-निधान भयहारी।।

    पृथु मत्स्य कूर्म अवतारी।
    तुम रामचन्द्र बनवारी।।
    प्रभु कल्कि बुद्ध गुणवाना।
    नरसिंह वामन महाना।।

    अवतार नाथ अब धारो।
    तुम भूमि-भार सब हारो।।
    हम दीन हीन दुखियारे।
    प्रभु कष्ट दूर कर सारे।।
    ================

    “सजसाग” वर्ण दश राखो।
    तब ‘सिंहनाद’ मधु चाखो।।

    “सजसाग” = सगण जगण सगण गुरु
    112 121 112 2 = 10 वर्ण
    चार चरण। दो दो समतुकांत
    ********************

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • सुमति छंद (भारत देश) बासुदेव अग्रवाल

    सुमति छंद (भारत देश)

    छंद
    छंद

    प्रखर भाल पे हिमगिरि न्यारा।
    बहत वक्ष पे सुरसरि धारा।।
    पद पखारता जलनिधि खारा।
    अनुपमेय भारत यह प्यारा।।

    यह अनेकता बहुत दिखाये।
    पर समानता सकल बसाये।।
    विषम रीत हैं अरु पहनावा।
    सकल एक हों जब सु-उछावा।।

    विविध धर्म हैं, अगणित भाषा।
    पर समस्त की यक अभिलाषा।।
    प्रगति देश ये कर दिखलाये।
    सकल विश्व का गुरु बन छाये।।

    हम विकास के पथ-अनुगामी।
    सघन राष्ट्र के नित हित-कामी।।
    ‘नमन’ देश को शत शत देते।
    प्रगति-वाद के परम चहेते।।
    =================
    लक्षण छंद:-

    गण “नरानया” जब सज जाते।
    ‘सुमति’ छंद की लय बिखराते।।

    “नरानया” = नगण रगण नगण यगण
    (111 212 111 122)
    2-2चरण समतुकांत, 4चरण।
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    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया