मनोज्ञा छंद “होली” – बासुदेव अग्रवाल

भर सनेह रोली।
बहुत आँख रो ली।।
सजन आज होली।
व्यथित खूब हो ली।।
मधुर फाग आया।
पर न अल्प भाया।।
कछु न रंग खेलूँ।
विरह पीड़ झेलूँ।।
यह बसंत न्यारी।
हरित आभ प्यारी।।
प्रकृति भी सुहायी।
नव उमंग छायी।।
पर मुझे न चैना।
कटत ये न रैना।।
सजन याद आये।
न कुछ और भाये।।
विकट ये बिमारी।
मन अधीर भारी।।
सुख समस्त छीना।
अति कठोर जीना।।
“बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया