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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ० बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • सांध्य है निश्चल -बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    सांध्य है निश्चल

    रवि को छिपता देख, शाम ने ली अँगड़ाई।
    रक्ताम्बर को धार, गगन में सजधज आई।।
    नृत्य करे उन्मुक्त, तपन को देत विदाई।
    गा कर स्वागत गीत, करे रजनी अगुवाई।।

    सांध्य-जलद हो लाल, नृत्य की ताल मिलाए।
    उमड़-घुमड़ कर मेघ, छटा में चाँद खिलाए।।
    पक्षी दे संगीत, मधुर गीतों को गा कर।
    मोहक भरे उड़ान, पंख पूरे फैला कर।।

    मुखरित किये दिगन्त, शाम ने नभ में छा कर।
    भर दी नई उमंग, सभी में खुशी जगा कर।।
    विहग वृन्द ले साथ, करे सन्ध्या ये नर्तन।
    अद्भुत शोभा देख, पुलक से भरता तन मन।।

    नारी का प्रतिरूप, शाम ये देती शिक्षा।
    सम्बल निज पे राख, कभी मत चाहो भिक्षा।।
    सूर्य पुरुष मुँह मोड़, त्याग के देता जब चल।
    रजनी देख समक्ष, सांध्य तब भी है निश्चल।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    तिनसुकिया

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  • बासुदेव अग्रवाल नमन – गणेश वंदना

    गणेश वंदना
     

    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi
    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi

    मात पिता शिव पार्वती, कार्तिकेय गुरु भ्राता।
    पुत्र रत्न शुभ लाभ हैं, वैभव सकल प्रदाता।।
     
    रिद्धि सिद्धि के नाथ ये, गज-कर से मुख सोहे।
    काया बड़ी विशाल जो, भक्त जनों को मोहे।।
     

    भाद्र शुक्ल की चौथ को, गणपति पूजे जाते।
    आशु बुद्धि संपन्न ये, मोदक प्रिय कहलाते।।
     
    अधिपति हैं जल-तत्त्व के, पीत वस्त्र के धारी।
    रक्त-पुष्प से सोहते, भव-भय सकल विदारी।।
     

    सतयुग वाहन सिंह का, अरु मयूर है त्रेता।
    द्वापर मूषक अश्व कलि, हो सवार गण-नेता।।
     
    रुचिकर मोदक लड्डुअन, शमी-पत्र अरु दूर्वा।
    हस्त पाश अंकुश धरे, शोभा बड़ी अपूर्वा।।
     

    विद्यारंभ विवाह हो, गृह-प्रवेश उद्घाटन।
    नवल कार्य आरंभ हो, या फिर हो तीर्थाटन।।
     
    पूजा प्रथम गणेश की, संकट सारे टारे।
    काज सुमिर इनको करो, विघ्न न आए द्वारे।।
     

    भालचन्द्र लम्बोदरा, धूम्रकेतु गजकर्णक।
    एकदंत गज-मुख कपिल, गणपति विकट विनायक।।
     
    विघ्न-नाश अरु सुमुख ये, जपे नाम जो द्वादश।
    रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ से, पाये नर मंगल यश।।
     

    ग्रन्थ महाभारत लिखे, व्यास सहायक बन कर।
    वरद हस्त ही नित रहे, अपने प्रिय भक्तन पर।।
     
    मात पिता की भक्ति में, सर्वश्रेष्ठ गण-राजा।

    ‘बासुदेव’ विनती करे, सफल करो सब काजा।।

    मुक्तामणि छंद 

    विधान:-
     

    दोहे का लघु अंत जब, सजता गुरु हो कर के।
    ‘मुक्तामणि’ प्रगटे तभी, भावों माँहि उभर के।।
     

    मुक्तामणि चार चरणों का अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके विषम पद 13 मात्रा के ठीक दोहे वाले विधान के होते हैं तथा सम पद 12 मात्रा के होते हैं। 
    इस प्रकार प्रत्येक चरण कुल 25 मात्रा का 13 और 12  मात्रा के दो पदों से बना होता है।
     दो दो चरण समतुकांत होते हैं। 
    मात्रा बाँट: विषम पद- 8+3 (ताल)+2 कुल 13 मात्रा, सम पद- 8+2+2 कुल 12 मात्रा।
    अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं। द्विकल के दोनों रूप (1 1 या 2) मान्य है।


    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • भारत सब से न्यारा दुलारा

    भारत सब से न्यारा दुलारा

    भारत सब से न्यारा दुलारा

    aatmnirbhar bharat
    aatmnirbhar bharat

    भारत तु जग से न्यारा, सब से तु है दुलारा,
    मस्तक तुझे झुकाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।

    सन सैंतालिस मास अगस्त था, तारिख पन्द्रह प्यारी,
    आज़ादी जब हमें मिली थी, भोर अज़ब वो न्यारी।
    चारों तरफ खुशी थी, छायी हुई हँसी थी,
    ये पर्व हम मनाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।

    आज़ादी के नभ का यारों, मंजर था सतरंगा,
    उतर गया था जैक वो काला, लहराया था तिरंगा।
    भारत की जय थी गूँजी, अनमोल थी ये पूँजी,
    सपने नये सजाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।

    बहुत दिये बलिदान मिली तब, आज़ादी ये हमको,
    हर कीमत दे इसकी रक्षा, करनी है हम सबको।
    दुश्मन जो सर उठाएँ, उनको सबक सिखाएँ,
    मन में यही बसाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।

    भारत तु जग से न्यारा, सब से तु है दुलारा,
    मस्तक तुझे झुकाएँ, तेरे ही गीत गाएँ।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • धुआँ घिरा विकराल

    धुआँ घिरा विकराल

    बढ़ा प्रदूषण जोर।
    इसका कहीं न छोर।।
    संकट ये अति घोर।
    मचा चतुर्दिक शोर।।
    यह भीषण वन-आग।
    हम सब पर यह दाग।।
    जाओ मानव जाग।
    छोड़ो भागमभाग।।
    मनुज दनुज सम होय।
    मर्यादा वह खोय।।
    स्वारथ का बन भृत्य।
    करे असुर सम कृत्य।।
    जंगल किए विनष्ट।
    सहता है जग कष्ट।।
    प्राणी सकल कराह।
    भरते दारुण आह।।
    धुआँ घिरा विकराल।
    ज्यों उगले विष व्याल।।
    जकड़ जगत निज दाढ़।
    विपदा करे प्रगाढ़।।
    दूषित नीर समीर।
    जंतु समस्त अधीर।।
    संकट में अब प्राण।
    उनको कहीं न त्राण।।
    प्रकृति-संतुलन ध्वस्त।
    सकल विश्व अब त्रस्त।।
    अन्धाधुन्ध विकास।
    आया जरा न रास।।
    विपद न यह लघु-काय।
    शापित जग-समुदाय।।
    मिलजुल करे उपाय।
    तब यह टले बलाय।।
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
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  • माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    mother their kids
    माँ पर कविता

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीँ

    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं।
    भू से भारी वात्सल्य तेरा, जिसका कोई तोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    हो आँखों से ओझल लाल यदि, पड़े नहीं कल अंतर में।
    डोले आशंकाओं में चित, नौका जैसे तेज भँवर में।
    लाल की खातिर कुछ भी सहने मे, तेरे मन में गोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    खुद गीले में सो कर भी, सूखे में तू उसे सुलाए।
    देख उपेक्षा चुप से रो लेती, ना सपने में भी उसे रुलाए।
    सुनती लाख उलाहने उसके, फिर भी मन में झोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    लाल की खातिर सारे जग से, निशंकोच वैर तू ले लेती।
    दो पल का सुख उसे देने में, अपना सर्वस्व लुटा देती।
    तेरे रहते लाल के माथे, बल पड़ जाए ऐसी पोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    रूठे तेरा लाल कभी तो, मुँह में कलेजा आ जाता।
    एक आह उसकी सुन कर, तम आँखों आगे छा जाता।
    गिर पड़े कहीं वो पाँव फिसल, तो तेरे मुख में बोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    तेरा लाल हँसें तो हे माता, तेरा सारा जग हँसता।
    रोए लाल तो तुझको माता, सारा जग रोता दिखता।
    ‘नमन’ तेरे वात्सल्य को हे माँ, इससे कुछ अनमोल नहीं।
    माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद