सांध्य है निश्चल -बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
सांध्य है निश्चल रवि को छिपता देख, शाम ने ली अँगड़ाई।रक्ताम्बर को धार, गगन में सजधज आई।।नृत्य करे उन्मुक्त, तपन को देत विदाई।गा कर स्वागत गीत, करे रजनी अगुवाई।। सांध्य-जलद हो लाल, नृत्य की ताल मिलाए।उमड़-घुमड़ कर मेघ, छटा में चाँद खिलाए।।पक्षी दे संगीत, मधुर गीतों को गा कर।मोहक भरे उड़ान, पंख पूरे फैला कर।। … Read more