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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नरेन्द्र कुमार कुलमित्रके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • मेरी और पत्नी पर कविता

    मेरी और पत्नी पर कविता – 30.04.2022

    मेरी पत्नी दोपहर बाद
    अक़्सर कुछ खाने के लिए
    मुझे पूछती है
    मैं सिर हिलाकर
    साफ मना कर देता हूँ
    मेरे मना करने से
    उसे बहुत बुरा लगता है
    कि मैंने उसकी मेहनत और प्यार से
    बनाई चीजों का तिरस्कार किया है

    पर उसे पता नहीं होता
    कि मेरे खाने की इच्छा होने पर भी
    मैं जब-जब उसकी बनाई
    चीजों को खाने से मना करता हूँ
    इसका मतलब होता है
    मैं भी उस्से इक छोटी-सी बात पर
    नाराज़ हूँ

    कुछ देर पहले ही
    मैंने उसे अपनी रची हुई कविता
    सुनाना चाहा था
    या फिर किसी लेखक की
    पढ़ी हुई अच्छी कहानी के बारे में
    बताना चाहा था
    पर पत्नी ने
    बाद में सुनाना
    या बाद में बताना कहकर
    अंजाने में ही मुझे नाराज़ कर गई थी

    मेरी पत्नी को
    जितनी तकलीफ़
    उसकी बनाई हुई चीजों को
    मेरे न खाने से होती है
    लगभग उतनी ही तकलीफ़
    मुझे मेरी रची हुई कविता को
    पत्नी के न सुनने से होती है।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • क्रोध पर कविता

    क्रोध पर कविता

    मुझे नहीं पता
    पहली बार
    मेरे भीतर
    कब जागा था क्रोध
    शुरूआत चिनगारी-सी हुई होगी
    आज आग रूप में
    साकार हो चुकी है
    फिर भी इतनी भीषण नहीं है
    कि अपनी आंच से किसी को बुरी तरह झुलसा दे
    अपनी तीव्र लपट से जला दे किसी का घर
    या राख कर दे किसी की फसलों से भरी खेत
    हाँ कभी-कभी
    अपनी क्रोध की ऊष्मा से
    बेकार की जिद्द पर अड़े
    बीबी और बच्चों को डांट लेता हूँ
    कॉलेज में अपनी कक्षा छोड़
    मोबाइल पर गपियाते, सेल्फ़ी लेते
    विद्यार्थियों को टोक देता हूँ
    मित्रों से मतभेद होने पर
    अपने तीक्ष्ण तपते शब्दों से
    आपत्ति दर्ज कर लेता हूँ
    और अक्सर ख़ुद को
    ख़ुद के ख़िलाफ़ खड़ाकर झिड़क लेता हूँ
    पर किसी का अस्तित्व ही मिटा दे
    इतना भयावह और इतना ख़तरनाक
    कभी नहीं होता मेरा क्रोध।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • यह ज़िन्दगी पर कविता

    यह ज़िन्दगी पर कविता

    रंगीन टेलीविजन-सी यह ज़िन्दगी
    लाइट गुल होने पर
    बंद हो जाती है अचानक
    काले पड़ जाते हैं इसके पर्दे
    बस यूँ ही–
    अचानक थम जाती है
    हमारी उम्र
    और थम जाते हैं
    जीवन और मृत्यु के अहसास
    और सारे रहस्य।

    — कुलमित्र
    9755852479

  • बताइये आप कौन हैं

    बताइये आप कौन हैं

    कुछ लोग हामी भरने में
    बड़े माहिर होते हैं
    पर काम कुछ भी नहीं करते
    उनके मुख से हमेशा
    निकलता है हाँ-हाँ-हाँ
    इनके शब्दकोश में ‘ना’ शब्द नहीं होता
    ये कभी ना कहते ही नहीं
    ज़बान से कभी मुकरते ही नहीं
    काम करो या न करो
    इनके लिए हाँ कहना ही स्वामीभक्ति होती है

    कुछ लोग हाँ कहने के बाद
    काम करते हैं चुपचाप
    पर यदि उन्हें कोई काम
    नहीं करना होता
    तो वे साफ-साफ कर देते हैं मना
    ये ‘ना’ कहने की हिम्मत रखते हैं
    कभी-कभी इन्हें मुकरने से
    बिलकुल भी परहेज़ नहीं होता

    कुछ लोगों की प्रकृति में ‘ना’
    और जबान में ‘हाँ’ होता है
    कुछ लोगों की प्रकृति में ‘हाँ’
    पर कभी-कभी ज़बान में ‘ना’ होता है

    आप केवल ज़बान में हाँ वाले हैं
    या केवल प्रकृति में हाँ वाले हैं
    बताइये आप कौन है ?
    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • कैमरे पर कविता

    कैमरे पर कविता

    वे रहते हैं ब्लैकआउट कमरों में
    वे हमें देखकर चलते है दांव
    बंद होते हैं उनके दरवाज़े और किवाड़
    हर बार हमारे साथ होता है खिलवाड़

    हम देख नहीं पाते
    कोई भी उनकी कारगुजारियां
    कोई भी चालाकियां….

    अब गए वो ज़माने
    जब दीवारों के भी कान होते थे।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479