मेरी और पत्नी पर कविता

मेरी और पत्नी पर कविता – 30.04.2022 मेरी पत्नी दोपहर बादअक़्सर कुछ खाने के लिएमुझे पूछती हैमैं सिर हिलाकरसाफ मना कर देता हूँमेरे मना करने सेउसे बहुत बुरा लगता हैकि मैंने उसकी मेहनत और प्यार सेबनाई चीजों का तिरस्कार किया है पर उसे पता नहीं होताकि मेरे खाने की इच्छा होने पर भीमैं जब-जब उसकी … Read more

क्रोध पर कविता

क्रोध पर कविता मुझे नहीं पतापहली बारमेरे भीतरकब जागा था क्रोधशुरूआत चिनगारी-सी हुई होगीआज आग रूप मेंसाकार हो चुकी हैफिर भी इतनी भीषण नहीं हैकि अपनी आंच से किसी को बुरी तरह झुलसा देअपनी तीव्र लपट से जला दे किसी का घरया राख कर दे किसी की फसलों से भरी खेतहाँ कभी-कभीअपनी क्रोध की ऊष्मा … Read more

यह ज़िन्दगी पर कविता

यह ज़िन्दगी पर कविता रंगीन टेलीविजन-सी यह ज़िन्दगीलाइट गुल होने परबंद हो जाती है अचानककाले पड़ जाते हैं इसके पर्देबस यूँ ही–अचानक थम जाती हैहमारी उम्रऔर थम जाते हैंजीवन और मृत्यु के अहसासऔर सारे रहस्य। — कुलमित्र9755852479

बताइये आप कौन हैं

बताइये आप कौन हैं कुछ लोग हामी भरने मेंबड़े माहिर होते हैंपर काम कुछ भी नहीं करतेउनके मुख से हमेशानिकलता है हाँ-हाँ-हाँइनके शब्दकोश में ‘ना’ शब्द नहीं होताये कभी ना कहते ही नहींज़बान से कभी मुकरते ही नहींकाम करो या न करोइनके लिए हाँ कहना ही स्वामीभक्ति होती है कुछ लोग हाँ कहने के बादकाम … Read more

कैमरे पर कविता

कैमरे पर कविता वे रहते हैं ब्लैकआउट कमरों मेंवे हमें देखकर चलते है दांवबंद होते हैं उनके दरवाज़े और किवाड़हर बार हमारे साथ होता है खिलवाड़ हम देख नहीं पातेकोई भी उनकी कारगुजारियांकोई भी चालाकियां…. अब गए वो ज़मानेजब दीवारों के भी कान होते थे। — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र9755852479