हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर कविता
सच कहो,
चाहे तख्त पलट दो, चाहे ताज बदल दो
भले “साहब” गुस्सा हो, चाहे दुनिया इधर से उधर हो
तुम रहो या ना रहो
पर, जब कुछ कहो तो, सच कहो।
सच पर ही तो, न्याय टिका है
शासन खड़ा है, धर्म बना है
हे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ!
सच से ही तुम हो
तो, अगर कुछ कहो तो, सच कहो।
तुम अपनी राय मत दो
तुम किसी के गुलाम नहीं हो
सिर्फ, सच दिखाओ आवाम को
मरो-कटो-खपो, लड़ो-भिड़ो-गिरो
पर, अगर कुछ कहो तो, सच कहो।
ध्यान रखो, तुम न “साहब” के हो
ना ही तुम “शहजादे” से हो
तुम सिर्फ देश के जवाबदेह हो
सच बोलने से जो दर्द हो, तो चीख लो
पर, तंत्र को जिंदा रखो
लोकतंत्र को जिंदा रखो
सच झूठ के इस युद्ध को, रोक दो
हे लोकतंत्र-स्तंभ! बस, सच बोल दो. .!!
प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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