Tag: #पुनीतराम सुर्यवंशी

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०पुनीतराम सुर्यवंशी”के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • कारगिल के शहीदों को नमन करते हुए कविता

    कारगिल के शहीदों को नमन करते हुए कविता

    शहीद, indian army
    शहीद, indian army

    वतन के हिफाजत के लिए त्याग दिये अपने प्राण।
    तुमनें आह तक नहीं किये त्यागते समय अपने प्राण।।
    सीने में गोली खा के हो गये देश के लिए शहीद।
    मुख में था मुस्कान गोली खा के भी बोले जय हिंद।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत् शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों को बारंबार श्रद्धा सुमन।।1।

    धन्य है जिसने तुमको आँचल में छुपा कर दुध पीलाई ओ माता।
    धन्य है जिसने तुमको हाथ पकड़ कर चलना सीखाया ओ पिता।।
    धन्य है जिसने तुमको वीरता की राखी बांधी ओ बहन।
    धन्य है जिसने तुम्हारे लिए सदा जीत की दुआ मांगती ओ पत्नी। ।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत् शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों को बारंबार श्रद्धा सुमन।।2।।

    जब तक रहेगा सुरज-चांद,अमर रहेगा तुम्हारे नाम।
    हिंद देश के हिंदुस्तानी कर रहे हैं तुम्हें बारंबार प्रणाम।।
    माता-पिता के आंखों के तारा,भारत माता के सपूत वीर।
    अपने खून से सजाया,अपनी भारत माता की तस्वीर।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत् शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों को बारंबार श्रद्धा सुमन।।3।।

    वीर शहीदों भारत माँ की माटी की कण-कण करता है तुमपे नाज।
    श्रद्धा सुमन के दो फूल समर्पित करते हैं हम सब तुमको आज।।
    जिसने बहाया अपना खून ओ हैं कितने बड़ा महान।
    धन्य हुई भारत माँ की जिसके रख लिये आन बान शान।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत् शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों को बारंबार श्रद्धा सुमन।।4।।

    कर दिए सूना दुश्मनों ने ओ माता-पिता के आंगन को।
    मिटा दिए मांग की सिंदूर,इक पतिव्रता स्त्री की सुहागन को।।
    अलग कर दिए भाई-बहन के प्रेम के राखी बंधन से।
    कर दिए अलग वीर सपूत को भारत माता की दामन से।।
    मेरे वतन के जांबाज सिपाहियों तुमको शत् शत् नमन।
    कारगिल जंग के वीर शहीदों को बारंबार श्रद्धा सुमन।।5।।
    पुनीत सूर्यवंशी
    ग्राम-लुकाउपाली छतवन
    (वीरभूमि सोनाखान)

  • महारानी दुर्गावती बलिदान दिवस कविता

    महारानी दुर्गावती बलिदान दिवस कविता

    महारानी दुर्गावती बलिदान दिवस कविता

    महारानी दुर्गावती अबला नहीं,वो तो सबला थी।
    महारानी तो गोंड़वाना से निकली हुई ज्वाला थी।।

    चंदेलों की बेटी थी,गोंड़वाना की महारानी थी।
    चंडी थी,रनचंडी थी,वह दुर्गावती महारानी थी।।

    अकबर के विस्तारवादी साम्राज्य के चुनौती थी।
    गढ़ मंडला के राजा दलपत शाह के धर्म पत्नी थी।।

    महारानी दुर्गावती साहस, वीरता की बलिदानी थी।
    प्रजा के रक्षा के लिए साहस वीरता की प्रतिमूर्ति थी।।

    महोबा के राजा की बेटी थी, गढ़ मंडला में ब्याही थी।
    महारानी के कामकाज को जन जन में सराही गई थी।।

    महारानी मां बनी,भरी जवानी में असमय विधवा हुई थी।
    उसकी एक कहानी में दुख की कई गाथाएं भरी हुई थी।।

    24 जून1564 को मुगल सैनिकों को रणक्षेत्र में थर्रायी थी।
    मुगल सैनिकों के सर को काटती हुई वीरगति को पायी थी।।

    आज भी महारानी की समाधि नर्रई नाला तट पर बनी हुई है।
    गोंड़ो की मुगलों से लड़ते हुए हार नदी के तट पर जहां हुई है।।
    पुनीत सूर्यवंशी

  • घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता

    घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना


    नदिया के तीर अमरइया के छांव हे।
    अब तो बिलम जा कइथव मोर नदी तीर गांव हे।।

    जेठ के मंझनिया के बेरा म तिपत भोंमरा हे।
    खरे मंझनिया के बेरा म उड़त हवा बड़ोरा हे।।
    बिन पनही के छाला परत तोर पांव हे।
    मोर मया पिरित के तोर बर जुर छांव हे।।


    खोर गली चवरा सब सुन्ना पर गे हे।
    तरिया नरवा डबरा सब सुख्खा पर गे हे।।
    सुरूज नारायण अंगरा बरसावत हे।
    नवटप्पा ले पान पतइ भाजी कस अइलावत हे।।


    ए घाम ले जम्मो चिरइ चिरगुन पानी बर तरपत हे।
    मनखे मन घलो पानी के एकक बूंद बर तरसत हे।।
    रद्दा रेंगइया रुख-राई के छइहां खोजत हे।
    ठौर ठौर म करसी हड़िया के पानी पियात हे।।


    लइका मन के गुरतुर सुघ्घर बोली हे।
    अमरइया म कुहुकत कारी कोइली हे।।
    घाम ले जम्मो परानी ल भुंजत महीना जेठ हे।
    मोर गाँव के मनखे म दया-मया के सुघ्घर बोली मीठ हे.


    ✍️पुनीत सूर्यवंशी