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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राकेश राज़ भाटिया के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • करवा चौथ का दिन / राकेश राज़ भाटिया

    करवा चौथ का दिन / राकेश राज़ भाटिया


    करवा चौथ भारतीय संस्कृति में सुहागिनों के प्रेम और आस्था का प्रतीक पर्व है, जहां हर सुहागन सोलह श्रृंगार कर अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए व्रत रखती है। इस दिन का विशेष महत्व चांद के दीदार से जुड़ा होता है, जो जीवनसाथी के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस व्रत में सुहागिनें अपनी भारतीय परंपराओं और रीति-रिवाजों को निभाते हुए रिश्तों की मिठास और मजबूती को कायम रखती हैं।

    करवा चौथ का दिन



    आज हर सुहागन के सोलह श्रृंगार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो  चांद के दीदार का दिन है।

    हाथों में चूड़ी पहने और वो पाँव में पायल डाले,
    सुर्ख होंठों पे लाली और आँखों में काजल डाले,
    भारतीय परम्परा और रीति-रिवाज निभाने को,
    संवरती है हर सुहागन यूँ सिर पर आंचल डाले,
    आज हर सुहागन की प्रीत और प्यार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।

    नियम निभाती है हर सुहागन यूँ अपने व्रत का,
    नाश करने को पति पर आई हरेक आफत का,
    वो मांगती है दुआ पति की लम्बी उम्र के लिये,
    जब छलनी में रखकर एक दीया वो चाहत का,
    उसी भारतीय विरासत के  विस्तार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।

    बहुत ही अनूठी मेरे देश के इस पर्व की कहानी,
    रिश्ते निभाने की ये परम्पराएँ हैं बड़ी ही पुरानी,
    तप यह करके  बन जाती है  प्रेयसी साजन की,
    सुहागन पीकर यूँ पति के हाथों से दो घूँट पानी।
    अटूट रिश्तों के सम्मान एवं सत्कार का दिन है।
    यह करवा चौथ तो चांद के दीदार का दिन है।।

    -राकेश राज़ भाटिया
    थुरल-काँगड़ा  हिमाचल प्रदेश
    सम्पर्क- 9805145231,  7018848363

  • बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी / राकेश राज़ भाटिया

    बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी / राकेश राज़ भाटिया

    “बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी” – राकेश राज़ भाटिया द्वारा लिखी गई यह खूबसूरत कविता बेटियों के अनमोल होने का एहसास कराती है। बेटियाँ वो उपहार हैं, जो जीवन में खुशियों और दुआओं की सौगात लाती हैं।

    बेटियाँ हमारी जिंदगी में खुशियाँ लाती हैं, जो हमें आशीर्वादित करती हैं और हमारे जीवन को आनंद और प्रेम से भर देती हैं। उनकी मासूमियत और चुलबुली मुस्कान हर दिन को एक नया उत्सव बना देती है।

    अन्तर्राष्ट्रीय बेटी दिवस पर कविता

    बेटियाँ हैं रब्ब की दुआओं जैसी


    गर्म मौसम में भी हैं शीत हवाओं जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

    महक उठें तो ये  गुलों का काम करती हैं,
    चहकती हैं तो चिड़ियों का काम करती हैं,
    एक परिवार तक नहीं रहती है ये सीमित,
    घरों को जोड़ने में पुलों का काम करतीं हैं।
    शहर की भीड़ को बना देती हैं गाँवों जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी,

    लाडली होती जाती है जैसे-२ बड़ी होतीं हैं,
    कड़े इन्तिहानों में तो  ये और कड़ी होती हैं,
    बन जाती हैं सहारा अक्सर  दो घरों का ये,
    सुख दुःख में साथ आपनों के खड़ी होतीं है,
    असर करतीं हैं बातें इनकी दवाओं जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।

    वो लोग जो यहाँ यूँ दोहरी निगाह रखते हैं,
    जैसे दिल में छिपा कर  वो गुनाह रखते हैं,
    दुआएँ माँगने जाते है दर पर देवी के मगर,
    अपने मन में  सिर्फ बेटे की  चाह रखते हैं,
    अपने मन वो जैसे यूँ कोई गुनाह रखते है,
    इबादतें उनकी तो है राज़ गुनाहों जैसी।
    ये बेटियाँ तो हैं, रब्ब की दुआओं जैसी।।

    राकेश राज़ भाटिया
    थुरल-काँगड़ा हिमाचल प्रदेश
    सम्पर्क- 9805145231,  7018848363

  • बाबा साहिब सा सूरमा–राकेश राज़ भाटिया

    बाबा साहिब सा सूरमा–राकेश राज़ भाटिया

    बाबा साहिब सा सूरमा -राकेश राज़ भाटिया

    बदलती रहेगी यह दुनिया, बदलेगा यह दौर ए जहाँ .
    न हुआ है, न होगा कभी भी, बाबा साहिब सा सूरमा ..

    वो जिसने कक्षा के बाहर बैठकर ज्ञान का दीया जला लिया .
    वो जिसने अपनी मेहनत से, विद्या का सागर पा लिया .
    वो जिसने संविधान बनाकर बदल दिया विकराल समा .
    न हुआ है, न होगा कभी भी, बाबा साहिब सा सूरमा ..

    वो न होता तो लोकतंत्र की बुनियादें कच्ची रह जाती .
    दलित और शोषित की मन में ही फरियादें रखी रह जाती .
    संविधान न करता प्रावधान तो समानता का मंजर होता कहाँ .
    न हुआ है न होगा कभी बाबा साहिब सा सुरमा ..

    dr bhimrao ambedkar
    महान व्यक्तित्व पर हिन्दी कविता



    वो अधिकार न दिलवाता अगर महिला कोई न पढ़ पाती .
    कोई इंदिरा फिर इस देश की प्रधानमंत्री न बन पाती .
    न किसी दलित की बेटी कभी पहुँच पाती विधान सभा .
    न हुआ है, न होगा कभी भी, बाबा साहिब सा सुरमा ..

    कितने राजा बने यहाँ इंसानों को गुलाम बनाकर .
    कितने सम्राट हुए यहाँ मजबूरों पर हुक्म चलाकर .
    पर वो बादशाह ऐसा था जिसने बनाया गुलामों को इंसां .
    न हुआ है,न होगा कभी भी, भीम राव सा सूरमा ..

    -राकेश राज़ भाटिया
    थुरल(काँगड़ा)
    हिमाचल प्रदेश