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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 रीता प्रधान’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • प्यार पर कविता / वेलेंटाइन दिवस पर कविता

    प्यार पर कविता / वेलेंटाइन दिवस पर कविता

    प्यार पर कविता

    प्रेम

    प्यार है जीवन का आधार

    एक सत्य जीवन का, प्रेम जीवन का आधार।
    स्नेह प्रेम की भाषा समझे, ये सारा संसार ।

    एक उत्तम फूल धरा पर, जो खिल सकता,वो है प्रेम का फूल।
    मानव हृदय में प्रस्फुटित होता, प्रेम में क्षमा हो जाती हर भूल।

    प्रेम पूर्णिमा के चांदनी जैसी, करती शीतलता प्रदान।
    कभी सूर्य की किरणों सम, तेज ताप कर देती महान।

    प्रेम में सहनशीलता ,प्रेम में समर्पण का भाव।
    प्रेम पिता का प्यार है ,औैर प्रेम ममता की छांव ।

    प्रेम के फूल से महक सकता है, ये सारा संसार।
    प्रेम मिटाए नफरत को औैर मिटाए बैर की दीवार।

    मानव मानसिकता में परिवर्तन, प्रेम से ही संभव है।
    मानवता का आधार प्रेम है, जहां प्रेम वहां मानव है।

    प्रेम परोपकार भाव से,मानवता की ओर ले जाए।
    पाशविक वृत्ति से दूर निकाले , सच्चा मानव हमें बनाए।

    अतिशयोक्ति नहीं है ये सब , पूर्ण सत्य है प्यार।
    प्रेम ही तो होता है , हम सब का जीवन आधार ।

    इश्क समर्पण पर कविता

    मन मयूरा थिरकता है
    संग तेरे प्रियतम
    ढूंढता है हर गली
    हर मोड़ पर प्रियतम

    फूल संग इतराएं कलियां
    भौंरे की गुनगुन
    मन की वीणा पर बजे बस
    तेरी धुन प्रियतम

    सज के आया चांद नभ में
    तारों की रुनझुन
    मै निहारूं चांद में बस
    तेरी छवि प्रियतम

    क्षितिज में वो लाल सूरज
    किरने हैं मद्धम
    दूर है कितना वो
    कितने पास तुम प्रियतम

    बरसे सावन की घटा जब
    छा के अम्बर पर
    छलकती हैं मेरी अंखियां
    तेरे बिन प्रियतम

    ताप भीषण हो गया तम
    उमड़े काले घन
    दाह लगाए बिरहा तेरी
    मुझको ओ प्रियतम

    उमड़ पहाड़ों से ये नदिया
    चली झूम कलकल
    तुमसे मिलने के जुनून में
    जैसे मैं प्रियतम

    पल्लवों पर शबनम, किरने
    थिरके झिलमिल कर
    मेरे अश्कों में छलकते
    तुम मेरे प्रियतम

    लीन तपस्या में कोई मुनि
    अर्पित करता है तनमन
    करूं समर्पण तप सारा
    तुम पर मेरे प्रियतम।।

    शची श्रीवास्तव

    इश्क बिना जीवन में रस नहीं

    प्रेम बिना जीवन में रस नहीं।
    प्रेम करना पर अपने बस में नहीं।
    किसी की आंखों में खो जाता है।
    बस ऐसे ही प्रेम हो जाता है।

    रहता नहीं खुद पर जोर।
    मन भागता है हर ओर।
    पर मिल जाता है मन का मीत
    तब हो जाती है उससे प्रीत।

    लिखते प्रेमी उस पर कविता
    मन रहता जिस पर रीता।
    हृदय बहती प्रेम की सरिता।
    मन की रेखा से प्रेम पत्र लिख जाते ।

    कितने प्रेम ग्रंथ लिख जाते,
    पाकर प्रीतम की एक छवि।
    जैसे ईश्वर को बिन देखे भी
    उनके चित्र बनाते कलाकार। होकर भक्ति में लीन वैसे ही प्रेमी

    बनाते हृदय अपने प्रिय की तस्वीर
    कल्पनाओं को करते साकार। पूजते प्रिय को ईश के समान ।
    इसी लिए कहते जग में सारे । दिल है मंदिर प्रेम है इबादत।

    सरिता सिंह गोरखपुर उत्तर प्रदेश

    उसके नखरे सहे हजार

    वह खुश रहती मेरे साथ,
    और करती है मुझसे बात।
    उसके लिए मैं प्यारा,
    मुझको वो प्यारी।
    उसकी सूरत इस ,
    संसार में सबसे न्यारी।
    आज वो करने लगी,
    मुझसे जान से ज्यादा प्यार।
    क्योंकि मैंने ही अकेले,
    उसके नखरे सहे हजार।

    मेरे लिए वो सजती-संवरती,
    फिर मेरे करीब आती है।
    धीरे से मेरे अधरों पर,
    चुम्बन वो कर जाती है।
    आज भी मेरे लिए वो,
    होकर आती है तैयार।
    क्योंकि मैंने ही अकेले,
    उसके नखरे सहे हजार।।

    कवि विशाल श्रीवास्तव फर्रूखाबादी।

    प्रेम ही जीवन है

    हे प्रिय मैं तुमसे कुछ कहता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ।
    एक तड़प रहती है मिलन की
    तो एक तड़प रहती है जुदाई की
    दोनों के बीच में मैं पिसता हूँ
    हाँ आज फिर कुछ लिखता हूँ।


    तुम हो तो जीवन है
    तुम हो तो है रवानी
    तुम हो तो प्यार है
    तुम हो तो है जिंदगानी
    तुमसे हर दिन हमारा वैलेनटाइन है
    है हर साँस तुम्हारा हमारा
    तुम हमारे दिल में हो
    उम्मीद करू कि मैं भी तुम्हारे दिल में रहता हूं
    हां आज फिर कुछ लिखता हूँ।


    हर दिन अपना वसन्त हो
    हर रात हो अपनी होली
    हर नर नारी के दिल में एक ऐसी आग हो
    जो वतन के लिए खेल दें खूनों की होली
    हे प्रिय मैं हर देशवासी को ये संदेशा कहता हूँ
    हाँ मैं आज फिर कुछ लिखता हूँ ।।

    पवन मिश्र

    कविता के बहाने

    आ गया हूं मैं तेरे पास,
    अपना गीत गुनगुनाने।
    प्रेमी हूं मैं ,
    प्रेम की कविता सुनाने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।

    तेरे बिन सूनी है,
    मेरी ये जवानी।
    कैसे बढ़ेगी आगे,
    तेरी मेरी कहानी।
    अब तो चल साथ मेरे,
    आया हूं मैं बुलाने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।

    ह्रदय की धड़कन बढ़ रही है,
    तेरी सूरत मेरी आंखों में चढ़ रही है।
    मैंने खत तेरे लिए जो भेजा,
    आज वही आज तू पढ़ रही है।
    आया हूं मैं तेरे प्रति,
    अपना प्रेम जताने।
    कहना है आई लव यू,
    कविता के बहाने।।

    कवि विशाल श्रीवास्तव फर्रूखाबादी

    जो मेरे द्वारे तू आए

    प्राण मरुस्थल खिल-खिल जाए
    साँस-डाल भी हिल-हिल गाए
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    जुड़े सभा सपनों की आकर
    आंखों की सूनी जाजम पर
    खेल न पाएँ बूँदें खारी
    पलकों की अरुणिम चादर पर

    चहल-पहल हो मेलों जैसी
    गुमसुम अधरों पर गीतों की
    फुल उदासी झड़े धूल-सी
    खिले जवानी नभ दीपों-सी

    उमर चाल छिपते सूरज-सी
    घबराकर पीली पड़ जाए ।
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    शुष्क मरुस्थल-सी सूखी देह से
    फूट पड़ें अमृत के धारे
    दीपदान करने को दौड़ें
    खुशियाँ मुझे जिया के द्वारे

    संगीतमयी संध्या-सी हों
    डूबी-सी धड़कन की रातें
    मानस की चौपाई जैसे
    महकें अलसायी-सी बातें

    झरे मालती रोम-रोम से
    कस्तूरी गंध बदन छाए
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    उतर चाँदनी नील गगन से
    पूरे चौका मन आँगन में
    चुनचुन मोती जड़ें रातभर
    सितारे फकीरी दामन में

    थपकी दे अरमान उनींदे
    अंक सुलाए रजनीगंधा
    भर-भर प्याली स्वपन सुधा की
    चितवन से छलकाए चंपा

    भोर भए पंछी-बिस्मिल्लाह
    शहनाई ले रस बरसाए ।
    छोड़ झरोखे राज महल के
    जो मेरे द्वारे तू आए ।

    अशोक दीप

    प्रेम सबको होता है

    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    यह लड़की को होता है,
    यह लड़के को होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    किसी को कम होता है,
    किसी को ज्यादा होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    कोई मुझसे कहे न ये,
    प्रेम हमको न होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    किसी को इंसान से होता है,
    किसी को भगवान से होता है।
    किसी को शिक्षक से होता है,
    किसी को शिक्षा से होता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।


    प्रेम जिसको न होता है,
    वो सारी उम्र रोता है।
    प्रेम न करने वाला ही,
    अपना सबकुछ खोता है।
    प्रेम सबको होता है,
    प्रेम सबको होता है।

    प्रेम अमर रत्न की

    प्रेम अमर रत्न की ,
    वो एक मुस्कुराहट है ,
    जिस रत्न से हम सराबोर है ,
    नभ की अभिकल्पनाओं में ,
    जीवन तरंगित हुआ ,

    मन पुलकित हुआ ,
    मन द्रुम्लित हुआ ,
    नेह नयनों की आभा ,
    प्यार के फुल मे ,
    दिल विस्मित हुआ !

    निकिता कुमारी

    कुछ तो है तेरे मेरे बीच

    कुछ तो है 
    तेरे मेरे बीच 
    जो मैं कह नहीं सकता .
    और तुम सुन नहीं सकते.
    इस कुछ को खोज रहा हूँ .
    जो मिले तुम्हें बता देना.
    आखिर तुम कह सकते हो.
    और मैं सुन लूँगा.

    मैं पूछता मेरे ख्यालों से दिन रात
    क्यूँ सिर उठाते हैं देखकर तुम्हें
    दिल के सारे जज्बात.
    तुम अपने तो नहीं 
    ना कभी होगे.
    पर गैरों सा ये मन 
    तुम्हें अपना लेना चाहता है
    जो भी मिला अब तक ज़िन्दगी में
    वो सब देना चाहता है.

    इसलिए नहीं कि
    हासिल करना हैं तुम्हें.
    इसीलिए भी नहीं कि,
    काबिल हूँ मैं तेरे लिए.
    पर फिर भी….

    कुछ और सोचूं इस खातिर
    बोल उठती है मेरी चेतना.
    ठहर जाओ!
    इसे रहने दो अनाम .
    जो तेरा हो नहीं सकता,
    उसे मत करो बदनाम.

    पर
    कुछ तो है 
    तेरे मेरे बीच 
    जो मैं कह नहीं सकता .
    और तुम सुन नहीं सकते.
    लेकिन हाँ ! जी जरुर सकते हैं .

    -मनीभाई नवरत्न

    सबको चांद का दीदार चाहिए…

    मुझे तो मेरा चांद पास मिला है।
    ये वो  नहीं जो आसमान का है…
    ये नक्षत्र तो मेरे दिल में खिला है।
    तू चांद देख जानम..और अपना व्रत तोड़ ले।
    मैं ना छोड़ूँ  ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    इस दुपट्टे की लाल में प्यार की गहराई है।
    माथे के सिन्दूरी में  यादों की शहनाई है।
    गले में ये मंगलसूत्र रिश्तों की पूजा है।
    तुमसे बढ़के मेरा यहाँ कोई ना दूजा है ।
    मैं ना बिकूंगा तुझे चोट देने के लिए
    कोई मुझे चाहे लाख करोड़ दें।
    मैं ना छोड़ूँ ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    शाम की इन हवाओं में रंगीनी छाई है।
    जैसे समां ने खुशी से मेंहदी रचाई  है।
    हर पति खुशकिस्मत है चेहरे में साज है।
    आज अपने पत्नी पे उसे गर्व और नाज़ है।
    करवाचौथ का त्यौहार हम सबके लिये
    रिश्तों में खुशहाली मोड़ दें।
    मैं ना छोड़ूँ  ये व्रत , चाहे सारा जग छोड़ दे।
    तेरे साथ रहना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।
    तेरे संग चलना माहिया
    बस यही कहना माहिया
    तेरे साथ रहना..।

    प्रेम पत्र पर कविता

    पत्र लिख लिख के फाड़े
    भू को अम्बर भेज न पाए।
    भेद मिला यह मेघ श्याम को
    ओस कणों ने तरु बहकाए।।

    मौन प्रीत मुखरित कब होती
    धरती का मन अम्बर जाने
    पावस की वर्षा में जन मन
    दादुर की भाषा पहचाने

    मोर नाचते संग मोरनी
    पपिहा हर तरुवर पर गाए।
    प्रेम पत्र ……………….।।

    तरुवर ने संदेशे भेजे
    बूढ़े पीले पत्तों संगत
    पुरवाई मधुमास बुलाए
    चाहत फूल कली की पंगत

    ऋतु बसंत ने बीन बजाई
    कोयल प्रेम गीत दुहराये।
    प्रेम पत्र………………..।।

    शशि के पत्र चंद्रिका लाई
    सागर जल मिलने को मचला
    लहर लहर में यौवन छाया
    ज्वार उठा जल मिलने उछला

    अनपाए पत्रों को पढ़ कर
    धरती का कण कण हरषाया।
    प्रेम पत्र…………………….।।

    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*

    वेलेन्टाइन डे की कहानी”

    दिन,महिना,साल भूल के,
    अब मंथ,ईयर व डे हैं कहाये जाते ।
    साल के तीन सौ पैंसठ दिन में,
    कुछ न कुछ डे तो मनाये जाते ॥
    इन्हीं डे में वेलेन्टाइन डे,
    जो प्रेमी जोडे़ हैं मनाया करते ।
    इस दिन सब कुछ भुल-भाल के,
    बस प्यार का पाठ पढ़ाया करते ॥
    जिस किसी को प्यार किसी से,
    वो इजहार प्यार का किया करते ।
    इक-दूजे को भेंट मे कुछ तो,
    प्यार का उपहार दिया करते ॥
    वेलेंटाइन डे की भी कहानी मित्रों,
    अपनी जुबा से सुनाता हूं ।
    सेंट वेलेंटाइन डे का किस्सा,
    जो सुना है मै दुहराता हूं ॥
    रोम देश मे एक इसाई,
    जिसका नाम सेंट वेलेन्टाइन था ।
    वहां की राजा की बेटी से,
    भरपूर प्यार भी उसको था ॥
    बिना शादी के लड़का-लड़की,
    सारे रिश्ते कर सकते हैं ।
    पति-पत्नी नही तो क्या,
    वे प्रेमी जोड़े बन कर रह सकते हैं ॥
    ये बात उसने राजा से,
    बड़ी निडरता से कह डाला ।
    लाल रंग के दिल को उसने,
    राजकुमारी की झोली मे डाला ॥
    उसकी गुस्ताखी देख के राजा,
    उसे फासी की सजा है सुनवाया ।
    चौदह फरवरी के दिन ही उसको,
    सजाए मौत है दिलवाया ॥
    इसी दिन को याद करके प्रेमी,
    अपने प्यार को खुब रिझाते हैं ।
    प्यार-मुहब्बत करके वे,
    वेलेन्टाइन डे को मनाते हैं ॥
    पर पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुकरण मित्रों,
    वर्तमान मे लग रहा होगा अच्छा ।
    पर इसका दुष्परिणाम भयंकर होगा,
    ये बात भी मित्रों है सच्चा ॥
    पर इसका दुष्परिणाम भयंकर होगा,
    ये बात भी मित्रों है सच्चा ……..

    मोहन श्रीवास्तव

    फरवरी महिना पर कविता

    लोग कहते हैं इश्क़ कमीना है
    हम कहते हुस्न का नगीना है।
    देखो चली है मस्त हवा कैसी
    आ रहा मुहब्बत का महीना है।

    जनवरी संग गुजर गयी सर्दी
    प्यार का ये फरवरी महीना है।
    वेलेंटाइन तो पश्चिमी खिलौना
    यहां तो सदियों से ही मनता
    रहा मदनोत्सव का महीना है।

    सोलहो श्रृंगार कर रही सजनी
    आ रहा उसका जो सजना है।
    यमुनातट आया कृष्ण कन्हैया
    संग राधा नाचती ता-ता थैया है।
    मुरली के धुन पर गोपियां क्या?
    वृंदावन की नाची सारी गैया है।

    फूलों की सुगंध देखो मकरंद
    कैसा उड़ता फिरता बौराया है।
    बागों में लगे है फूलों के झूले
    झूलती सजनी संग सजना है।
    धरा पे पुष्पों सजा ये गहना है
    आया मुहब्बत का ये महीना है।

    वंसतोत्सव में झूमता सदियों से
    आर्यावर्त का नाता ये पुराना है
    प्रेम की हम करते हैं इबादत
    नही वासना का झूठा बहाना है।

    कृष्ण राधा का मीरा का माधव
    रति कामदेव का ही ये महीना है
    आया मुहब्बत का ये महीना है
    इश्क़ वाला ये फरवरी महीना है।   

    पंकज भूषण पाठक “प्रियम”

    वो प्यार जो हकीकत में प्यार होता है – मधुमिता घोष

    वो प्यार जो हकीकत में प्यार होता है,
    उसमें न कोई जीत,न कोई हार होता है,
    न होता है भाव अहम का,
    न होता है शब्द रहम का,
    बस एक -दूजे की खुशी में सारा संसार होता है।
    वो प्यार…………………….

    न बीते दिनों की सच्चाई जुदा करती है,
    न अकेले में तन्हाई जुदा करती है,
    बस आँखों में प्यार का महल होता है,
    दिल में प्यार का सम्बल होता है, अपने प्यार की खुशी में ही संसार होता है।
    वो प्यार…………………………..

    न बारिश में वो भीगता है,
    न पतझड़ में वो सूखता है,
    हर मौसम में जिस पर,
    यौवन का खुमार होता है,
    अपने प्यार की एक मुस्कुराहट के लिए जो न्यौछावर बार-बार होता है।
    वो प्यार………………………..

    आँखों का समंदर जब,
    उसकी यादों में फूटता है,
    दिल न जाने इस दरमियाँ,
    कितनी बार टूटता है,
    फिर भी मन में उम्मीदों का आसार होता है।
    वो प्यार……………….….

    मधुमिता घोष

    तुम्हारी यही बातें मुझे अच्छी लगतीं हैं

    तुम्हारी यही बातें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    गुज़रे यादों में जो रातें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    तुम्हें न देखूँ तो दिल को न मेरे चैन मिलता है
    छुप छुप के मुलाकातें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    दिल में दबा के रखते हो तुम जिन अरमानो को
    वो छुपी छुपी तेरी चाहतें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    सुना है प्यार करने वाले हिम्मत वाले होते हैं
    ये रंज और ये आफतें मुझे अच्छी लगतीं हैं
    तुम ये रोज़ लिख लिख कर जो मुझको भेजते हो
    ये ख़त में प्रेम सौगातें मुझे अच्छी लगतीं हैं

    निशां उल्फ़त का दामन से सुनो रह रह के जाता है
    चुनरिया तुम जो रंग जाते मुझे अच्छी लगतीं हैं
    तेरी ‘चाहत’ है वो ख़ुशबू बिखरी मेरे तन मन पे
    निगाहों की करामातें मुझे अच्छी लगतीं हैं


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी

  • पिता पर कविता (Pita Par Kavita)

    फादर्स डे पिताओं के सम्मान में एक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पर्व हैं जिसमे पितृत्व (फादरहुड), पितृत्व-बंधन तथा समाज में पिताओं के प्रभाव को समारोह पूर्वक मनाया जाता है। अनेक देशों में इसे जून के तीसरे रविवार, तथा बाकी देशों में अन्य दिन मनाया जाता है। यह माता के सम्मान हेतु मनाये जाने वाले मदर्स डे (मातृ-दिवस) का पूरक है।

    पिता पर कविता (Pita Par Kavita)

    पिता पर कविता (Pita Par Kavita) :

    मैं साथ हूं हमेशा तेरे ( पिता पर कविता)

    हमारी और हमारे पापा की कहानी ।
    आसमान सा विस्तार ,सागर सा गहरा पानी।

    जब जन्म पायी इस धरा पर , वो पल मुझे याद नहीं।
    मां कहती है बेटा तेरे पापा के लिए,इससे बड़ी खुशी की कोई बात नहीं।।

    मां की मैं लाडली गुड़िया, पापा तेरी परी लाडली बिटिया रानी हूं।
    कहते हो मुझसे आके जो ,मैं तो तुम्हारी अनकही एक अनोखी कहानी हूं।।

    एक वक्त था पापा मैंने जब, समझा ना था तुम्हारे प्यार को।
    गुस्से में हमेशा छिपा लेते थे, जाने क्यों अपने दुलार को ।।

    सोचती थी आजादी ना दी, ना करते मुझ पर भरोसा हो।
    एक पल के लिए भी ना करते तन्हा मुझे,जैसे फिक्र ही अपना मुझ पर परोसा हो।।

    कुछ पल की भी जो दूरी होती थी, स्कूल से मुझको घर आने में।
    फिक्र इतनी जो करते हो तुम, और कौन कर सकेगा इतना सारे जमाने में।।

    मेरी मांगों को कर देते हो नज़र अंदाज़ , ऐसा भी कभी मैंने सोचा था।
    माफ करना पापा मेरे , उस वक्त तेरे प्यार को ना मैंने देखा था ।।

    बंद कमरों में मुझको, पिंजरे सा जीवन महसूस होता था।
    अनजान थी तब मैं पापा मेरे, तुमको फिक्र मेरी कितना सताता था।।

    पढ़ायी के लिए मेरी जो तुम, सारा दिन धूप धूप में भी फिरते थे।
    रुक ना जाए कहीं पढ़ायी मेरी , सोच के भी कितना डरते थे।।

    मेरी पढ़ायी के लिए मुझसे भी ज्यादा, तुम ही सक्रिय रहते हो।
    बेटा पढ़ लिख करो अपना हर सपना पूरा , मैं साथ हूं हमेशा तेरे मुझसे कहते हो।।

    आसमान सा हृदय तुम्हारा, मन सागर से भी गहरा है।
    शब्द कहां से जोडूं तुम्हारे लिए, भगवान से भी प्यारा तेरा चेहरा है।।

    बात स्वास्थ पर जब मेरी आती है, छींक से भी मेरी तुम कितना घबरा जाते हो।
    बीमार जो कभी थोड़ी हो जाती , थामे हाथ मेरा साथ ही रह जाते हो।।

    आज समझ में आ गया, एक पिता खुले आसमान सा होता है।
    शब्द इतने कहां मेरी लेखनी में , कि बता सकूं एक पिता कैसा होता है।।

    सब कुछ जानता ,सब कुछ समझता ,पर किसी से कुछ ना कहता है।
    समर्पित उसका सारा जीवन , अपने बच्चों पर ही रहता है।।

    एक जलता दीपक है जो खुद जल के ,रोशनी अपने बच्चों के जीवन में भरता है ।
    गहरे समंदर सा हृदय उसका , सारी नादानी हमारी माफ करता है।।

    पिता परम देवता सा महान , पिता एक बलवान , पिता होना भी आसान नहीं।
    श्रृष्टि की कोई अन्य रचना ,होती पिता के समान नहीं।।

    रीता प्रधान

    पिता दिवस पर कविता

    दर्द को भीतर छुपाकर,
    बच्चों संग मुसकाते।
    कभी डाँट फटकार लगाते,
    कभी कभी तुतलाते।

    हँस हँसकर मुँहभोज कराते,
    भूखे रहते हैं फिर भी।
    स्वच्छ जल पीकर सो जाते ,
    गोद में लेकर सिर भी।

    आँधी तूफाँ आये लाखों,
    चाहे सिर पर कितने।
    विशाल वक्ष में समा लेते हैं,
    दर्द हो चाहे जितने।

    बच्चों की खुशियाँ और,
    माँ की बिंदी टीका।
    पड़ने देते किसी मौसम में,
    कभी न इनको फीका।

    पर कुछ पिता ऐसे जो ,
    मानव विष पी जाते।
    बुरी आदतों में आकर ,
    अपनों का गला दबाते।

    माँ की अन्तरपीड़ा और,
    बच्चों की अंतः चीत्कार।
    जो न सुनता है पिता,
    समाज में जीना है धिक्कार।

    माँ तो है सृष्टिकर्ता पर,
    पिता है जीवन का आधार।
    अपनी महिमा बनाये रखना,
    हे! जग के पालनहार।।

    अशोक शर्मा,

    पिता ईश सम हैं दातारी

    पिता ईश सम हैं दातारी।
    कहते कभी नहीं लाचारी।।1

    देना ही बस धर्म पिता का।
    आसन ईश्वर सम माता का।।2

    तरु बरगद सम छाँया देता।
    शीत घाम सब ही हर लेता।।3

    बहा पसीना तन जर्जर कर।
    जीता मरता संतति हितकर।4

    संतति हित ही जनम गँवाता।
    भले जमाने से लड़ जाता।।5

    अम्बर सा समदर्शी रहकर।
    भीषण ताप हवा को  सहकर।।6

    बन्धु सखा गुरुवर का नाता।
    मीत भला सब पिता निभाता।।7

    पीढ़ी दर पीढ़ी खो जाता।
    बालक तभी पिता बन पाता।।8

    धर्म निभाना है कठिनाई।
    पिता धर्म जैसे प्रभुताई।।9

    अम्बर हित जैसा ध्रुव तारा।
    घर हित वैसा पिता हमारा।।10

    जगते देख भोर का तारा।
    पूर्व देखलो पिता हमारा।।11

    सुत के गम में पितु मर जाता।
    राजा दशरथ जग विख्याता।12

    मुगल काल में देखो बाबर।
    मरता स्वयं हुमायुँ बचा कर।।13

    ऋषि दधीचि सा दानी होता।
    यौवन जीवन दोनो खोता।।14

    पिता धर्म निभना अति भारी।
    पाएँ दुख संतति हित गारी।15

    पिता पीत वर्णी हो जाता।
    जब भी सुत हित संकट आता।16

    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

    fathers day पर पिता को क्या तोहफा दे?

    एक पिता का सबसे पढ़ा तोहफा तो उसकी संतान होती है। तो आप कोसिस करे की आप उनकी जो इच्चा है की आप अपने भविष्य को उज्वल बना ले वाही उनका तोहफा होगा।

    एक पिता ली खुशी किस्मे है?

    एक पिता ली खुशी उसके संतानों में होती है आगर उसके संतान खुश है तो वह भी खुश है ।

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  • कैसी ये महामारी – संस्कार अग्रवाल

    कैसी ये महामारी

    कोरोना वायरस
    corona

    कहाँ से आया कैसे आया, पता नहीं क्यों आया है।
    करना चाहता क्या है ये, धरती पे क्यों आया है।।
    क्या चाहता है क्यों चाहता है, किस मनसूबे से आया है।
    मचा रहा भयंकर तबाही क्यों, किस ने इसे बनाया है।।



    क्या खोया क्या पाया हमने, सच्चाई बताने आया है।
    कर रहा विनाश सब का, मानो प्रकृति को गुस्सा आया है।।
    रुक नहीं रहा जा नहीं रहा,क्या सब की जान लेने आया है।
    किया दोहन प्रकृति का हमने, उसका प्रतिशोध लेने आया है।।



    साथ नहीं कोई दूर नहीं कोई, सब को अलग करने ये आया है।
    बता रहा सच्चाई सब की, हकीकत बताने तो नहीं आया है।।
    हो रहा दिखावा सब जगह अब, कही पर्दा उठाने तो नहीं आया है।
    कर रहा अवगत आगे के लिए, सब की जान लेने तो नहीं आया है।।


    किया कैद जानवरो को कभी हमने, हमें कैद करने तो नहीं आया है।
    हमने समझा कमजोर प्रकृति को, उसकी ताकत दिखाने तो नहीं आया है।।
    सह नहीं सकते रह नहीं सकते, हमें मजबूर करने तो नहीं आया है।
    ले रहा जान सबकी ये, कही सब की जान लेने तो नहीं आया है।।



    की कटाई पेड़ो की हमने, उसकी कीमत हमें समझाने तो नहीं आया हैं।
    कर रहें मनमानी अपनी, हम पर अंकुश लगाने तो नहीं आया है।।
    आ गयी महामारी कैसी ये, कही हमने ही तो इसे नहीं बनाया है।
    किया प्रकृति का दोहन हमने,कही सबकी जान लेने तो नहीं आया है।।

  • प्रकृति से प्रेम पर कविता

    प्रकृति से प्रेम पर कविता

    नदी

    कितने खूबसूरत होते बादल कितना खूबसूरत ये नीला आसमां मन को भाता है।
    रंग बदलती अपनी हर पल ये प्रकृति अपनी मन मोहित कर जाता है।

    कभी सूरज की लाली है कभी स्वेत चांदनी कभी हरी भरी हरियाली है।
    देख तेरा मन मोहित हो जाता प्रकृति तू प्रेम बरसाने वाली है।

    प्रकृति ही हम सब को मिल कर रहना करना प्रेम सिखाती है।
    हर सुख दुख की साथी होती साथ सदा निभाती है।

    है प्रकृति से प्रेम मुझे इसके हर एक कण से मैने कुछ न कुछ सीखा है।
    प्रकृति तेरी गोद में रहकर ही मैने इस दुनिया को अच्छे से देखा है।

    हम सबको तू जीवन देती है देती जल और ऊर्जा का भंडार।
    परोपकार की सिक्षा देती हमको लुटाती हम पर अपना प्यार।

    फल फूल छाया देती देती हो शीतल मन्द सुगंधित हवा।
    प्रकृति तेरी खूबसूरती जैसे हो कोई पवित्र सी दुआ।

    आओ हम सब प्रकृति से प्रेम करें करें उसका सम्मान।
    सेवा नित नित प्रकृति की करें गाएं उसकी गौरव गान।

    रीता प्रधान
    रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • भावों की बरसात लिखती हूं -रीता प्रधान

    भावों की बरसात लिखती हूं

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    आज मैं खुशियों की एक सौगात लिखती हूं।
    आज में खुशियों की एक सौगात लिखती हूं ।
    मन में भरे भावों की बरसात लिखती हूं ।
    आज मैं खुशियों की एक सौगात लिखती हूं ।
    हरा भरा हो गया जीवन बाबुल का जब मैं अंगना में आई थी ।
    कहती है मुझसे मां मेरी उस वक्त चारों ओर हरियाली छाई थी ।
    किलकारियों से जो गूंजता था घर मेरा मैं वह बात लिखती हूं ।
    मन में भरे भावों की बरसात लिखती हूं ।
    नन्हे नन्हे कदमों से जब मैं यहां वहां पर चलती गिरती थी ।
    मुख की प्रभा जैसे बिजली चमकती ,गिरूं मैं तो बादल गरजती थी।
    बचपन के दिन को संजोए में एक सुंदर सा जज्बात लिखती हूं ।
    मन में भरे भावों की बरसात लिखती हूं ।
    सफर नया अब शुरू हुआ है तैयारी हो रही मेरी विदाई का ।
    अंगना सजा है मेरी डोली से नाद हो रहा शहनाई का।
    मेरी विदाई में मेरे मैया बाबुल की आंखों की बरसात लिखती हूं ।
    आज खुशियों की सौगात लिखती हूं ।
    आज मैं खुशियों की सौगात लिखती हूं।

    रीता प्रधान
    रायगढ़ छत्तीसगढ़