चलो,चले मिलके चले – रीतु प्रज्ञा
विषय-चलों,चले मिलके चलेविधा-अतुकांत कविता *चलो,चले मिलके चले* ताली एक हाथ सेनहीं बजती कभीचलने के लिए भीहोती दोनों पैरों की जरूरतफिर तन्हा रौब से न चले,चलो,चले मिलके चले।शक्ति है साथ मेंनहीं विखंड कर सकता कोईकरता रहता जागृत सोए आत्मा कोहरता प्रतिपलउदासीपन,…