पानी के रूप
पानी के रूप धरती का जब मन टूटा तो झरना बन कर फूटा पानी हृदय हिमालय का पिघला जब नदिया बन कर बहता पानी ।। पेट की आग बुझावन हेतु टप टप मेहनत टपका पानी उर में दर्द समाया जब जब आँसू बन कर बहता पानी ।। सूरज की गर्मी से उड़ कर भाप बना बन रहता पानी एक जगह यदि बन्ध जाए तो गगन … Read more