तोता पर कविता
ना पंख है
ना पिंजरे में कैद,
फिर भी है तोता ।
खाता है पीता है,
रहता है स्वतंत्र,
हमेशा एक गीत है गाता
नेता जी की जय हो।
कर लिया बसेरा
बगल की कुर्सी पर,
खाने को जो है मिलता
मुफ्त का भोजन,
टूट पड़ता है बेझिझक
गजब का तोता।
मानक छत्तीसगढ़िया