तरक्की की सीढ़ियां – गुलाबचंद जैसल

गुलाबचंद जैसल द्वारा रचित तरक्की की सीढ़ियां सभी भारतीयों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कविता है । आज वह समय आ गया है कि हम तरक्की के असली मायने को समझें।

तरक्की की सीढ़ियां


चलो निकालें नदियों से रवाब* को
कि-
जल जीवों को जीवन मिलेगा
और –
हमें स्वच्छ पानी
नदियाँ भी बहती रहेंगीं।
चलो निकालें घरों से पॉलिथीन
कि-
गाएँ मारने से बचेंगी
नालियाँ फंसने से बचेंगी
और हवा-
स्वच्छ उड़ेगी
जीवन बचेगा।
चलो निकालें घरों से कपड़ें
जूट का बैग
सब्जी, राशन, सामान लाने को
कि-
पैसे बचेंगे दुकानदार के और हमारे
पर्यावरण बचेगा
प्रदूषण से-
जीवन खुशहाल होगा।
चलो निकालें घरों से लोक संस्कृति को
कि-
सब समझेंगे, बूझेंगे
बच्चे, बूढ़े और जवान
सुधरेगा समाज
माहौल
और-
हम सब बचा पाएंगे अपनी संस्कृति।
चलो निकाले घरों से-मनों से कड़वाहट को
की-
एक दूसरे से सौहार्द बढ़ेगा
प्रेम बढ़ेगा आपस में
एक दूसरे के प्रति
और-
साम्प्रदायिकता समाप्त होगी
देश तरक्की की सीढ़ियां  चढ़ेगा।

शब्द-संकेत 

रवाब-गाद, कचरा
                    

गुलाब चंद जैसल
 स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक
 केंद्रीय विद्यालय हरसिंहपुरा

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