तारों सितारों में तुझे ढूंढता हूँ
तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ
पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |
सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में
गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ |
सुना है संवेदनाओं के समंदर में है , तेरा ठिकाना
चीरहरण की कथाओं में , तुझे ढूंढता हूँ |
कहीं दिल के कोने में, है तेरी कुटिया |
मंदिर, मस्ज़िद, चर्च में तुझे ढूंढता हूँ |
नन्ही परी कूड़े के ढेर का हिस्सा हो गयी
माँ के मातृत्व में तुझे ढूंढता हूँ |
सुना है सलिला के कल – कल में बसता है तू
प्रकृति के कण – कण में तुझे ढूंढता हूँ |
लाखों घर हुए सूने, हज़ारों गोद हो गयीं सूनी
कोरोना की इस भीषण त्रासदी में तुझे ढूंढता हूँ |
उसने पुकारा तुझे बार – बार , फिर भी नोच ली गयीं उसकी आंतें
उस निर्भय की चीखों, उन दरिंदों की भयावह आँखों में तुझे ढूंढता हूँ |
लहरों में समा गयी थी , वो मुस्कराते – मुस्कराते
सामाजिकता में, रिश्तों की भयावहता में तुझे ढूंढता हूँ |
सह नहीं पाया वो आघात, अपनी बेटी के दुःख का
दहेज़ के लालची चरित्रों की निकृष्ट सोच में तुझे ढूंढता हूँ |
तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ
पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |
सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में
गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ ||
रचयिता – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “