तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से संत नहीं कहलाओगे
तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
संत नहीं कहलाओगे ।
निज कर्मों से ही तय होगा ,
जन्म कौन सा पावोगे ।।
परहित की जो तजी भावना ,
समझो सब कुछ व्यर्थ गया ।
अर्थ तलाशी के चक्कर में ,
जीवन का ही अर्थ गया ।।
दंभी कपटी छली लालची ,
नाम कमाकर जाओगे ।
तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
संत नहीं कहलाओगे ।।
ऊँचे कुल की मान बड़ाई ,
तेरे काम न आयेंगे ।
अपने सुख की खातिर जीना ,
बदनामी कर जायेंगे ।।
कृतघ्नता आडंबर भरकर ,
लक्ष्यहीन कहलाओगे ।
तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
संत नहीं कहलाओगे ।।
जीवन का उद्देश्य बना ले ,
तीर्थ मुझे ही बनना है ।
अवगाहन मति मज्जन करके ,
भव से पार उतरना है ।।
नाम निशानी इस मेले में ,
कर्मों से सिरझाओगे ।
तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
संत नहीं कहलाओगे ।।
रामनाथ साहू “ननकी”
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