थके हुए हैं पाँव दूर बहुत है गाँव
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थके हुए हैं पाँव, दूर बहुत है गाँव,
लेकिन हमको चलना होगा |
ढूंढ रहे हम ठाँव, लगी जिंदगी दाँव,
ठोकर लगे, संभलना होगा |
कर्मभूमि को अपना समझा,
जन्मभूमि को छोड़ दिया |
वक़्त पड़ा तो दोनों ने,
हमसे रिश्ता तोड़ लिया |
यहाँ मिली ना वहाँ मिली,
बुरे वक़्त में छाँव |
दूर बहुत है गाँव……………
ना गाडी, न कोई रेल,
पैदल हमको चलना होगा |
अजब जिंदगी के हैं खेल,
आज नहीं, तो कल क्या होगा ?
खेल-खेल में हम सबका,
उलट गया है दाँव |
दूर बहुत है गाँव……………
– उमा विश्वकर्मा, कानपुर, उत्तरप्रदेश