ये भी विकलांगता है
नर मूर्तियाँ बना प्रभु ने ,
किया काम उत्तमता है।
रह गयी कुछ कमियाँ,
जग कहे अपंगता है।
ये भी……………….।
पाँव एक ही होकर भी ,
गिरी राज लांघता है ।
जो है दो पैरों वाला,
देखो टाँग खींचता है।
ये भी……………….।
पैदा हुआ है मंद बुद्धि,
खामोश ही रहता है।
जो ज्ञान का सागर बन,
गर समाज बाँटता है।
ये भी………………..।
जिनके हैं चक्षु दुर्बल,
ना साफ दिखता है।
वह आंखें है मक्कार,
जिनका पानी गिरता है।
ये भी………………….।
हाथ अंग भंग हों पर,
पद भोजन कराता है।
मजबूत बाहुबली आज,
अबला चीर हरता है।
ये भी……………….।
अपंग हस्त पाद चक्षु,
मन झकझोरता है।
और भूखों न्याय मांगे,
सत्ता से न मिलता है।
ये भी ……………….।
देखो यह सवाल हमें,
भी रोज सालता है।
होगी दुनिया से दूर कब,
ये विकलांगता है।
ये भी…………………..
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अशोक शर्मा, कुशीनगर, उ.प्र.
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