विश्वास की परिभाषा
विश्वास एक पिता का
कन्यादान करे पिता, दे हाथों में हाथ
यह विश्वास रहे सदा,सुखी मेरी संतान।
योग्य वर सुंदर घर द्वार, महके घर संसार
बना रहे विश्वास सदा, जग वालों लो जान।
विश्वास एक बच्चे का
पिता की बाहों में खेलता, वह निर्बाध निश्चिंत
उसे गिरने नहीं देंगे वह, यह उसे स्मृत।
पिता के प्रति बंधी विश्वास रूपी डोर
हर विषम परिस्थिति में वे उसे संभालेंगे जरूर।
विश्वास एक भक्त का
आस्था ही है जो पत्थरों को बना देती है भगवान
जब हार जाए सारे जतन,तो डोल उठता है मन।
पर होती है एक आस इसी विश्वास के साथ
प्रभु उबारेंगे जरूर चाहे दूर हो या पास।
विश्वास एक माँ का
नौ माह रक्खे उदर में, दरद सहे अपार
सींचे अपने खून से, रक्खे बड़ा संभाल।
यह विश्वास पाले हिय मे, दे बुढ़ापे में साथ
कलयुग मे ना कुमार श्रवण, भूल जाए हर मात।
विश्वास डोर नाजुक सदा
ठोकर लगे टूटी जाए।
जमने में सदियों लगे
पल छिन में टूटी जाये।
रखो संभाले बड़े जतन से
टूटे जुड़ ना पाये।
वर्षा जैन “प्रखर”
दुर्ग (छ.ग.)
7354241141
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
Leave a Reply