पर्यावरण दिवस पर कविता/मंजूषा दुग्गल
जलाकर पेड़-पौधे वीरान धरती को बना रहे हैं
इतनी सुंदर सृष्टि का भयावह मंजर बना रहे हैं
काटकर जंगल पशु-पक्षियों को बेघर बना रहे हैं
कर बेइंतहा अत्याचार हम दिवस पर्यावरण मना रहे हैं ।
वैज्ञानिक उन्नति की राह पर हम कदम बढ़ा रहे हैं
चाँद पर भी अब देखो वर्चस्व अपना जमा रहे हैं
अपनी धरा का कर शोषण हम उपग्रहों पर जा रहे हैं
उपेक्षित कर भूमंडल अपना हम दिवस पर्यावरण मना रहे हैं ।
हवाओं का रुख़ मोड़कर तूफ़ानों को हम बुला रहे हैं
प्रचंड गर्मी के वेग से जन -जन को देखो झुलसा रहे हैं
नदी-नालों को गंदा कर भूमि प्रदूषण फैला रहे हैं
प्रदूषित वातावरण बना दिवस पर्यावरण मना रहे हैं ।
उपजाऊ भूमि को बना बंजर वृहत भवन हम बना रहे हैं
वृक्षों से धरा वंचित कर नक़ली पौधों से घर सजा रहे हैं
सुख-समृद्धि दिखाने को ढेर गाड़ियों का बढ़ा रहे हैं।
खत्म कर हरियाली देखो हम दिवस पर्यावरण मना रहे हैं।
मंजूषा दुग्गल
करनाल (हरियाणा)