सावन पर कुंडलियाँ छंद -डॉ एन के सेठी

सावन पर कुंडलियाँ छंद

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धरती दुल्हन सी सजी,महक रही चहुँओर।
सावन के झूले पड़े, नाच रहा मन मोर।।
नाच रहा मनमोर,प्रकृतिअब मन को भाए।
देख उमड़ते मेघ, अभी दादुर टर्राए।।
कहता कवि करजोरि,हमें खुशियों सेभरती।
हरा भरा श्रृंगार, सजी है पूरी धरती।।

गाओ मिलकर के सभी, गीत राग मल्हार।
पेडों पर झूले पड़े, सावन शीत फुहार।।
सावन शीत फुहार,समय यही उल्लास का।
झूम रहा मनमस्त, दीप जले विश्वास का।।
कहता कवि करजोरि,सभी मिल खुशी मनाओ।
हरियाली के बीच, गीत सावन के गाओ।।

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©डॉ एन के सेठी

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