वन्दनवार:भारतीय के शत्रु हैं भारतीय ही आज

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कविता संग्रह
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गुरु की आज्ञा मानकर,
केरल की छवि देख।
रहने वालों पर लिखे,
सबने सुन्दर लेख। १।
सबके लेखों में मिले,
जीवन सुखमय गान।
शंकर के इस लेख को,
मिली अलग पहचान।२।
भारतीय हैं मानते,
अतिथि देव की रीति ।
इसीलिए आगंतुकों,
से करते हैं प्रीति ।३।
किन्तु परस्पर हैं बँटे,
पाने को निज ख्याति।
तुम नीची मै उच्च हूँ,
कुल से मेरी जाति। ४।
यही विदेशी देखकर,
भारतीय की खोट।
निम्न वर्ग पर कर रहे ,
गहरी-गहरी चोट। ५।
निम्न वर्ग के लोग तब,
उच्च वर्ग को छोड़।
छोड़ विदेशी साथ भी,
लिए मार्ग निज मोड़। ६।
यही विदेशी बढ रहे,
उच्च वर्ग की ओर।
मौका मिलते ही किया,
वार महा घनघोर।७।
भारतीय के शत्रु हैं,
भरतीय ही आज।
इसीलिए आगे बढ़ा,
यवन-यहूदी राज। ८।
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एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर 🙏
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