सुमन! अल्प मधुर तेरा जीवन
सुमन! अल्प मधुर तेरा जीवन।
याद रहेगा इस जग को,
कण-कण घुलना सौरभ बन-बन।
कितने अलियों ने अभिसिक्त किया,
मधुर समीरण सहलाया दुलराया।
देकर मिलता है जग में,
मरकर अमरता का ये अभिनन्दन।
मुझको ये जग विस्मृत कर देगा,
मिट जाएगा मेरा नाम।
नहीं दे पाई में इस जग को,
सुमन- सुतन का तुझसा दान।
देना चाहूं इस जग को तो,
क्या दूं क्या है मेरे पास।
अशक्त करों की अल्प लेखनी,
और कविता की चिर प्यास।
समय यही है ले लूं तुझसे,
निः शेष में शेष का अद्भुत ज्ञान।
इस जग में लुटा दूं अपना,
काब्य- कुसुम का ये वरदान।
साधना मिश्रा, रायगढ़-छत्तीसगढ़