पिरामिड रचना (शबरी )
हैं,
बेर,
नहीं ये;
स्नेह नीर,
अश्रु- बिंदु हैं;
समर्पित तुम्हें,
हे श्री रघुनन्दन!
दी,
ज्ञान,
गुरु ने,
परिचय,
पाया पावन;
तृषित पिपासा,
पाऊं तेरा दर्शन!
यूं,
झुकी,
कमर,
विरहिणी;
अंतर तम,
आतुर मिलन,
हे श्यामल बदन!
ये,
देखो,
थकित,
विगलित,
अविचलित;
चिर प्रतिक्षित,
अपलक नयन!
की,
मैंने,
करुण,
प्रतीक्षा है;
अब तो आओ,
निष्ठुर बनो न,
हे, स्नेह सदन!
दो,
रज,
चरण,
सुचि कण
कृपा सुमन;
मेरे मस्तक हो,
हे, पतित पावन!
साधना मिश्रा, रायगढ़- छत्तीसगढ़