हिंदी कविता – सौन्दर्य की देवी

नारी सौंदर्य - एक काव्य दृष्टि में

kavita

‘‘सौन्दर्य की देवी’’

उपमा दूँ किससे मैं तेरी प्रिया।
फूलों ने खुशबू भी तुमसे लिया।।
कैसे कहूँ नैन कैसे चमकते।
तारे भी इतने प्रकाशित न दिखते।।
होठो की लाली बताऊँ मैं कैसे।
सूरज ने रंग भी उधारी ली तुमसे।।
हाथ कोमल है इतने कि कोई नहीं।
मोती झरते आँसू से है रोई नहीं।
कैसे कहूँ वाणी कितने मधुर है।
सारी मधुरता तेरे ही अंश है।।
चंचलता इतनी बताई न जाये।
बिजली भी इतनी न आयी और जाये।।
मादकता तुझमें छलकती है यारा।
घुट भर नशा कर दे संसार सारा।।
कैसे चले तू बताऊँ मैं कैसे।
अप्सराओं ने चलना भी सीखा है तुमसे।।
घूँघट गिरा दो तो अंधेरा जग में।
हँस दो तो हँस देंगे कोई भी गम में।।
कैसे कहूँ केश शोभाय कितने ।
काली घटायें तेरे घुटने जितने।।
बिना आभूषण के कितनी है सुंदर।
परिया भी श्रृंगार फेके समुंदर।।
गहराई इतनी है तुझमें ओ यारा।
कोई नहीं है समुंदर भी खारा।।
पीने से बढ़ती है वो प्यास हो।
झूठा सभी बस तुम्हीं आस हो।।
क्या नाम तुझे दूँ हो संतुष्टी मुझको।
सौन्दर्य देवी कहूँ मैं तो तुझको।।

अनिल कुमार वर्मा, सेमरताल

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