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उपन्यास गांधी चौक ‘ जैसा मेंने समझा

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उपन्यास  गांधी चौक ‘ जैसा मेंने समझा

हिन्दी के नवांकुर लेखक डा. आनंद कश्यप का प्रथम उपन्यास ” गांधी चौक ” केवल एक कहानी नहीं है. बल्कि छत्तीसगढ़ के संघर्षरत युवाओं की यथास्थिति का यथार्थ चित्रण है. चूंकि लेखक स्वयं एक प्रतियोगी हैं, तो उपन्यास में उन्होंने भावों के साथ अपनी आत्मा भी पिरो दी है.
उपन्यास सपनो के बीज से शुरू होकर संबंधों के प्रोटोकॉल में समाप्त होता है. रचना का पात्र अश्वनी लोकसेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करने वाले सभी ग्रामीण युवाओं का प्रतिनिधित्व करता है. भीष्म जैसे अनेकानेक युवाओं ने अपना भविष्य संवारने के लिए अपने जीवन का बलिदान ही कर दिया.
परीक्षा प्रणाली, अफसरशाही, भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद, दादागिरी, गरीबी ये सब हम युवाओं के लिए कठिन चुनौतियां हैं. अश्वनी और उनके जैसे सभी प्रतियोगी संघर्ष के प्रतीक है.
सूर्यकांत समर्पण का चेहरा है. ये वो सच्चा प्रेमी है, जो नीलिमा शारीरिक सौन्दर्य से नहीं बल्कि आंतरिक सौन्दर्य से मोहित है. वह उसके प्रति इतना समर्पित है कि उसके कहने पर अपना व्यवहार ही नहीं खुद को बदल लेता है. सूर्यकांत आजकल की तरह दिखावा करने वाला प्रेमी नहीं है. उसका प्यार गहरा है. सूर्यकांत ने नीलिमा की श्वास के साथ अपनी श्वास मिला लिया है. जीना मरना सब उसी के लिए. प्यार की ताकत है कि अमीर बाप का बिगड़ैल बेटा भी सुधर जाता है. अच्छी संगत और प्रेम मिलकर प्यार ही नहीं कठिन परीक्षा भी पास कर लेते हैं. इसमें आनंद जी ने बहुत अच्छी बात कही है कि प्रेम के ईजहार के लिए भी कानून बनने चाहिए. कम से कम एक मौका बिना भय के प्रेम अभिव्यक्ति के लिए होना ही चाहिए.
इस उपन्यास में युवा कठिन तैयारी भी करते दिख रहे हैं और लोक सेवा आयोग, गरीबी, अफसरशाही, भ्रष्टाचार से संघर्ष भी कर रहे हैं.
अश्वनी, राजा, रामप्रसाद, नीलिमा अंततः सफल होते हैं क्योंकि वे हार नहीं मानते. लगातार प्रयास करते हैं. वे एक दूसरे का सहयोग करते हैं. एक दूसरे की ताकत बनते हैं. वास्तव में भीष्म आत्महत्या नहीं करता है. समाज, शासन और परीक्षा प्रणाली एक साथ उसकी हत्या करते है. प्रज्ञा के घरवाले उसे ताने देते हैं. वहीं नीलिमा के मां बाप उस पर भरोसा करते हैं. ये हमारे समाज की वास्तविक स्थिति है. सफल आदमी सबका सम्मानीय हो जाता है. भागीरथी जैसे सीधे साधे लोग आज भी परेशान हैं. पता नहीं उन्हें अश्वनी जैसा अफसर सच में मिलेगा भी या नहीं. अश्वनी का यह कथन कि पिता को पुत्र अग्नि देगा तो उसे मुक्ति मिल जाएगी, तो पुत्री के अग्नि देने पर तो पिता ईश्वर ही हो जाएंगे. अत्यंत हृदयस्पर्शी है.
गांधी चौक उपन्यास का शीर्षक एकदम सटीक है. पूरी कहानी और पात्र गांधी चौक के आसपास रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है. भारत देश में गांधी जी संघर्ष के आदर्श हैं. इस उपन्यास को आदर्शवादी उपन्यास की श्रेणी में रखूंगा, क्योंकि उपन्यास के समापन के आते आते भीष्म को छोड़कर सभी पात्र अपने अपने सपनो को साकार कर लेते हैं. सूर्यकांत को अफसरी के साथ ही अपनी जीवन संगिनी भी मिल जाती है.
उपन्यास के अंत में सभी साथी एक साथ बिलासपुर गांधी चौक के पूनम होटल में हंसी मजाक करते हैं. वे सिगरेट व शराब का लुत्फ़ भी उठाते हैं. सफल आदमी अगर धुम्रपान करें, शराब पिए तो वह भी उसके पद और सफलता का श्रृंगार होता है.
आनंद कश्यपजी की यह रचना नई पीढ़ी के प्रतियोगियों के लिए औषधि का काम करेगा. युवाओं को नयी दिशा और उर्जा मिलेगी. समाज को सीख मिलेगी और शासन को सुधार का संदेश मिलेगा. प्रेम और पढ़ाई दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं सहयोगी हैं. पद पाकर लोग घमंडी भी हो जाते है, पर वक्त उसे सही रास्ता में ले आता है. समय से बड़ा कोई गुरु नहीं है.
उपन्यास के पात्र, उसकी भाषा, छत्तीसगढ़ियापन, जिमीकांदा की सब्जी, गांव, तालाब, खेत, बिलासपुर के चौक चौराहे और महाविद्यालय सब हमें बिलासपुर और छत्तीसगढ़ से जोड़ते हैं. कुल मिलाकर यह उपन्यास सार्थक और सफल है. आनंद कश्यपजी को बधाई. लिखते रहिये.
अनिल कुमार वर्मा
व्यख्याता हिन्दी
शा.उ. मा. वि. सेमरताल

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