यहाँ पर श्रीधर पाठक की 10 लोकप्रिय कवितायेँ दी जा रही हैं आपको कौन सी अच्छी लगी , कमेंट कर जरुर बताएं
हिंद-महिमा / श्रीधर पाठक
जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद
जय नगर, ग्राम अभिराम हिंद
जय, जयति-जयति सुख-धाम हिंद
जय, सरसिज-मधुकर निकट हिंद
जय जयति हिमालय-शिखर-हिंद
जय जयति विंध्य-कन्दरा हिंद
जय मलयज-मेरु-मंदरा हिंद
जय शैल-सुता सुरसरी हिंद
जय यमुना-गोदावरी हिंद
जय जयति सदा स्वाधीन हिंद
जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद
भारत-श्री / श्रीधर पाठक
जय जय जगमगित जोति, भारत भुवि श्री उदोति
कोटि चंद मंद होत, जग-उजासिनी
निरखत उपजत विनोद, उमगत आनँद-पयोद
सज्जन-गन-मन-कमोद-वन-विकासिनी
विद्याऽमृत मयूख, पीवत छकि जात भूख
उलहत उर ज्ञान-रूख, सुख-प्रकासिनी
करि करि भारत विहार, अद्भुत रंग रूपि धारि
संपदा-अधार, अब युरूप-वासिनी
स्फूर्जित नख-कांति-रेख, चरन-अरुनिमा विसेख
झलकनि पलकनि निमेख, भानु-भासिनी
अंचल चंचलित रंग, झलमल-झलमलित अंग
सुखमा तरलित तरंग, चारु-हासिनी
मंजुल-मनि-बंध-चोल, मौक्तिक लर हार लोल
लटकत लोलक अमोल, काम-शासिनी
उन्नत अति उरज-ऊप, बिलखत लखि विविध भूप
रति-अवनति-कर-अनूप-रूप-रासिनी
नंदन-नंदन-विलास, बरसत आनंद-रासि
यूरप-त्रय-ताप-नासि-हिय-हुलासिनी
भारत सहि चिर वियोग, आरत गत-राग-भोग
श्रीधर सुधि भेजि तासु सोग-नासिनी
भारत-गगन / श्रीधर पाठक
(1)
निरखहु रैनि भारत-गगन
दूरि दिवि द्युति पूरि राजत, भूरि भ्राजत-भगन
(2)
नखत-अवलि-प्रकाश पुरवत, दिव्य-सुरपुर-मगन
सुमन खिलि मंदार महकत अमर-भौनन-अँगन
निरखहु रैनि भारत-गगन
(3)
मिलन प्रिय अभिसारि सुर-तिय चलत चंचल पगन
छिटकि छूटत तार किंकिनि, टूटि नूपुर-नगन
निरखहु रैनि भारत-गगन
(4)
नेह-रत गंधर्व निरतत, उमग भरि अँग अँगन
तहाँ हरि-पद-प्रेम पागी, लगी श्रीधर लगन
निरखहु रैनि भारत-गगन
सुंदर भारत / श्रीधर पाठक
(1)
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
शुचि भाल पै हिमाचल, चरणों पै सिंधु-अंचल
उर पर विशाल-सरिता-सित-हीर-हार-चंचल
मणि-बद्धनील-नभ का विस्तीर्ण-पट अचंचल
सारा सुदृश्य-वैभव मन को लुभा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
(2)
उपवन-सघन-वनाली, सुखमा-सदन, सुख़ाली
प्रावृट के सांद्र धन की शोभा निपट निराली
कमनीय-दर्शनीया कृषि-कर्म की प्रणाली
सुर-लोक की छटा को पृथिवी पे ला रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
(3)
सुर-लोक है यहीं पर, सुख-ओक है यहीं पर
स्वाभाविकी सुजनता गत-शोक है यहीं पर
शुचिता, स्वधर्म-जीवन, बेरोक है यहीं पर
भव-मोक्ष का यहीं पर अनुभव भी आ रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
(4)
हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत
हे न्याय-बंधु, निर्भय, निबंधनीय भारत
मम प्रेम-पाणि-पल्लव-अवलंबनीय भारत
मेरा ममत्व सारा तुझमें समा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
देश-गीत / श्रीधर पाठक
1.
जय जय प्यारा, जग से न्यारा
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य, सुदेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
2.
प्यारा देश, जय देशेश,
अजय अशेष, सदय विशेष,
जहाँ न संभव अघ का लेश,
संभव केवल पुण्य-प्रवेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
3.
स्वर्गिक शीश-फूल पृथिवी का,
प्रेम-मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति-नटी का टीका,
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
4.
जय जय शुभ्र हिमाचल-शृंगा,
कल-रव-निरत कलोलिनि गंगा,
भानु-प्रताप-समत्कृत अंगा,
तेज-पुंज तप-वेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
5.
जग में कोटि-कोटि जुग जीवै,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवै,
सुखद वितान सुकृत का सीवै,
रहै स्वतंत्र हमेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
बलि-बलि जाऊँ / श्रीधर पाठक
1.
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ
बलि-बलि जाऊँ हियरा लगाऊँ
हरवा बनाऊँ घरवा सजाऊँ
मेरे जियरवा का, तन का, जिगरवा का
मन का, मँदिरवा का प्यारा बसैया
मैं बलि-बलि जाऊँ
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ
2.
भोली-भोली बतियाँ, साँवली सुरतिया
काली-काली ज़ुल्फ़ोंवाली मोहनी मुरतिया
मेरे नगरवा का, मेरे डगरवा का
मेरे अँगनवा का, क्वारा कन्हैया
मैं बलि-बलि जाऊँ
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ
बिल्ली के बच्चे / श्रीधर पाठक
बिल्ली के ये दोनों बच्चे, कैसे प्यारे हैं,
गोदी में गुदगुदे मुलमुले लगें हमारे हैं।
भूरे-भूरे बाल मुलायम पंजे हैं पैने,
मगर किसी को नहीं खौसते, दो बैठा रैने।
पूँछ कड़ी है, मूँछ खड़ी है, आँखें चमकीली,
पतले-पतले होंठ लाल हैं, पुतली है पीली।
माँ इनकी कहाँ गई, ये उसके बड़े दुलारे हैं,
म्याऊँ-म्याऊँ करते इनके गले बहुत दूखे,
लाओ थोड़ा दूध पिला दें, हैं दोनों भूखे।
जिसने हमको तुमको माँ का जनम दिलाया है,
उसी बनाने वाले ने इनको भी बनाया है।
इस्से इनको कभी न मारो बल्कि करो तुम प्यार,
नहीं तो नाखुश हो जावेगा तुमसे वह करतार।
उठो भई उठो / श्रीधर पाठक
हुआ सवेरा जागो भैया,
खड़ी पुकारे प्यारी मैया।
हुआ उजाला छिप गए तारे,
उठो मेरे नयनों के तारे।
चिड़िया फुर-फुर फिरती डोलें,
चोंच खोलकर चों-चों बोलें।
मीठे बोल सुनावे मैना,
छोड़ो नींद, खोल दो नैना।
गंगाराम भगत यह तोता,
जाग पड़ा है, अब नहीं सोता।
राम-राम रट लगा रहा है,
सोते जग को जगा रहा है।
धूप आ गई, उठ तो प्यारे,
उठ-उठ मेरे राजदुलारे!
झटपट उठकर मुँह धुलवा लो,
आँखों में काजल डलवा लो।
कंघी से सिर को कढ़वा लो,
औ’ उजली धोती बँधवा लो।
सब बालक मिल साथ बैठकर,
दूध पियो खाने का खा लो।
हुआ सवेरा जागो भैया,
प्यारी माता लेय बलैया।
गुड्डी लोरी / श्रीधर पाठक
सो जा, मेरी गोद में ऐ प्यारी गुड़िया,
सो जा, गाऊँ गीत मैं वैसा ही बढ़िया।
जैसा गाती है हवा, जब बच्ची चिड़िया।
जैसा गाती है हवा, जब बच्ची चिड़िया,
जाँय पेड़ की गोद में सोने की बिरियाँ।
क्योंकि हवा भी तान से गाना है गाती,
मीठे सुर से साँझ को धुन मंद सुनाती।
और उस सुंदर देश का, संदेश बताती,
जहाँ सब बच्चे-बच्चियाँ सोते में जाती।
कुक्कुटी / श्रीधर पाठक
कुक्कुट इस पक्षी का नाम,
जिसके माथे मुकुट ललाम।
निकट कुक्कुटी इसकी नार,
जिस पर इसका प्रेम अपार।
इनका था कुटुम परिवार,
किंतु कुक्कुटी पर सब भार।
कुक्कुट जी कुछ करें न काम,
चाहें बस अपना आराम।
चिंता सिर्फ इसकी को एक,
घर के धंधे करें अनेक।
नित्य कई एक अंडे देय,
रक्षित रक्खे उनको सेय।
जब अंडे बच्चे बन जाएँ,
पानी पीवें खाना खाएँ।
तब उनके हित परम प्रसन्न,
ढूंढे मृदु भोजन कण अन्न।
ज्यों ज्यों बच्चा बढ़ता जाय,
स्वच्छंदता सिखावे माय।
माँ जब उसे सिखा सब देय,
बच्चा सभी, आप कर लेय।