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मनीभाई नवरत्न के हिंदी में चोंका

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हिंदी में चोंका

इसे भी पढ़ें :- चोका कैसे लिखें(How to write Choka )

चोका :- शीत प्रकोप

धुंधला भोर
कुंहरा चहुं ओर
कुछ तो जला
जाने क्या हुई बला
क्या हुआ रात?
कोई बताये बात।
ख़ामोश गांव
ठिठुरे हाथ पांव
ढुंढे अलाव।
अब भाये ना छांव
शीत प्रकोप
रात में गहराता
कोई ना बच पाता।  

✒️ मनीभाई’नवरत्न’, बसना, महासमुंद

चोका:-कौन है चित्रकार ?

खुली आंखों से
मैं खड़ा निहारता
विविध चित्र।
कौन है चित्रकार ?
कल्पनाशील
ये धरा,नदी,वन
विविधाकाय
किसकी अनुकृति
अंतर लिए
अंचभित करता
हर दिवस
रहस्यमयी वह
अदृश्य सत्ता
कला, विज्ञान पूर्ण
मात्र संयोग
कैसे यह संभव?
जिज्ञासा केंद्र
मानव के मन में
विस्मय भरा
प्रकृति सत्ता पर
कृत्रिमता से
उठे हुये खतरे।
चाल नये पैंतरे।

✍मनीभाई”नवरत्न”
[30/05, 11:12 p.m.]

चोका:-मैं जमीन हूँ

मैं जमीन हूँ
मात्र भूखंड नहीं
जो है दिखता।
मुझमें पलते हैं
वन ,खदान
मरूस्थल,मैदान
ताल, सरिता
खेत व खलिहान
अन्न भंडार
बसी जीव संसार
अमृत जल
मुझसे ही बहार
अमूल्य निधि
हूँ अचल संपत्ति
इंसानों की मैं।
कागज टुकड़ों में
कैद करके
जताते अधिकार
लड़ते भाई
होती जिनमें प्यार
मांँ से प्यारी तू
जीने का है आधार
आज तैनात
देश कगार वीर
बचाने सदा
अस्मिता रात दिन
चिर काल से
साम्राज्यवाद जड़ें
जमीन हेतु
पनपती रहती
खून की धार
अविरल प्रवाह
बहती रही
उसे चिंता नहीं है
क्या हो घटित?
इंसानों की वजूद।
हमें ही चिंता
दो बीघा जमीन की
नींद पूरी हो
जहाँ सदा दिन की
ऋणी हैं जमीन की।
✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका:-मेरा चांद

जगता रहा
मेरा चांद ना आया
छत है सुना
ये दिल घबराया
आंखें तांकती
एक दूजा चांद को
वह कहती
कैसा तेरा चांद वो
वादा मुकरे
सारी रात जगाए
विरह पल
बेकरारी बढ़ाएं
थोड़ी सी कहीं
आहट जो है आती
लबों पर मेरे
मुस्कुराहट छाती
देखूं पलट
एक महज भ्रम
चाहत मेरी
क्या हो गई है कम !
आंखों में फिर
गम का मेघ छाया
वो हकीकत
या है केवल माया।
ये सोच के ही
एक बूंद टपकी
गाल से बाहें
अश्रुधार छलकी
नम करती
मेरे सिरहाने को
एक अकेले
हम गम खाने को
घना अंधेरा
मन है भारी भारी ।
तोड़ ख्वाबों की क्यारी।।
✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका:- हमशक्ल

दूर वो कौन ?
हमशक्ल सा मेरा
एक बालक
जो दिखता मुझसा
हर आदतें
हरकतें व बातें
मुझपे जाती
फिर अकस्मात से
सूरत छाती।
वो जाना पहचाना
पिया सांवली
जिसे छोड़ दिया था
मैंने अकेला
ताकि बसा सकूँ मैं
ख्वाबों की मेला।
बेवफा बना
कर प्रेम आघात।
खेलें जी भर
प्रेयसी के जज्बात।
बन कपटी
चला था रिश्ता तोड़
देखा ना फिर
राह अपना मोड़
आज आया हूँ
फिर बरसों बाद
हार कर मैं
टूटे ख्वाबों को लाद।
जानना चाहा
कौन है उसकी मां?
हाय ये वही
लुटी जिसकी समां
दो नैन मिले
बिखरे प्रेमियों के
एक रोष से
दूजा लज्जा ग्रसित
सब्र का बांध
फिर टूटता जाता
दोनों अधीर
पछतावे की झड़ी
अश्रु नेत्र से
आज झरते रहे
ये दर्द तुम
कैसे सहते रहे
लाज बचा ली
प्रेम का ,धन्य नारी।
सच्ची है तेरी यारी।।

✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका -बन प्रकाश

टिमटिमाता
दूर से मैं प्रकाश
मूक मौन सा
फिर भी हूँ बताता
अभी नहीं है
अंधेरे का साम्राज्य
पूरी तरह…
ये लौ, मेरा होना
उम्मीद रख
मरते दम तक
जलना मुझे।
कोई फूंक तो मारे
चिंगारी बन
सर्वनाश करूँगा;
अखिल धरा
मैं ही राज करूँगा।
फिर सोचता
क्या फर्क रह जाये?
तम सा होके
जो सब भय खाये।
अतः समेटा
अंतर्निहित आग।
मैं ईश तेरा।
बन के आश दीया
जलता सदा।
मुझको बसा लेना।
हो मत जाना
अंधेरे का गुलाम।
बन स्वयं प्रकाश ।

✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका: अब दर्द ही सिला

ढुंढता रहा
बीच शहर छाया,
वृक्षों की साया।
कहीं भी नहीं मिला
कैसी दुविधा?
यहाँ सुख सुविधा
शांति न लाया
मन पुष्प ना खिला
ये जीवन में
जन-गण-मन में
कहर ढाया
होगी विनाश लीला
सब जानता,
पर कब मानता
जो सरमाया
वो है अंबर नीला
पानी तलाश
उलझी हुई सांस
जलती काया
प्रकृति नैन गीला
जीना दुश्वार
खड़ी होती दीवार
आग लगाया
धर्म से क्या हो गिला?
अब जो भी हो
हमें जीना पड़ेगा
सीना पड़ेगा
जो जखम है खिला।
अब दर्द  ही सिला ।
✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका:काव्य ढ़ता गया

लिखता गया
मन के आवेगों को
अपना दर्द
कम करता गया।
मैं नाकाम हूँ
जीवन के पथ में
शब्दों से चित्र
बस खींचता गया।
उभरते हैं
मेरे हृदय तल
प्रेम व पीड़ा
जिन्हें सुनाता गया।
कभी खुद की
कभी अपनों की मैं
किस्सा में हिस्सा
एक बनता गया।
आज खुश हूँ
कल गम से भरा
हर दशा में
मैं महकता गया।
मेरी प्रकृति
है अब ये नियति
कष्ट सह के
घाव भरता गया।
यही जिन्दगी
अहसासों से भरी
धीरे धीरे ये
कड़ी जुड़ता गया।
काव्य गढ़ता गया।
✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका- संग मेरे रहना

सीख गये हैं
तुझे प्यार करके
सब लोगों से
अब प्यार करना
जान गये हैं
बयां हाल ए दिल
नहीं मुश्किल
ऐतबार करना
उलझा था मैं
जबसे तुझे मिला
जान गया हूँ
अब तो सुलझना।
लगी है आग
इश्क की दोनों ओर
पता है मुझे
तेरा भी संवरना।
छैन छबीली
तेरी आंखें नशीली
झुका दे नैन
मर जाऊँ वरना।
मेरी ख्वाहिश
तू ही ख्वाब है मेरा।
आजमा मुझे
दिल का ये कहना।
संग मेरे रहना।
✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका -कहाँ मेरा पिंजर ?

उड़े विहंग~
नाप रहे ऊंचाई।
धरा से नभ
जुदा व तनहाई।
तलाश जारी
सही ठौर ठिकाना।
मन है भारी
भूल चुके तराना।
जिद में पंछी
आशिया बनाने की।
ठौर ना कहीं
आतंक, जमाने की।
कटते वृक्ष
चिंता अब खग को
फटते वक्ष
होश नहीं जग को
करते प्रश्न-
अब जाना किधर?
रहूंगी खुश
अब झुका के सर
कहाँ मेरा पिंजर ?

✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका-मैं एक पत्ता

उड़ता गया
कभी ना पूछ पाया
तुम मेरे क्या?
बस बहता गया
हर दिशा में
हर मनोदशा में
साथ निभाता
कभी धूल, पत्थर
पंक से सना
बेपरवाह बना
फंसता गया
हां !मैं हंसता गया
जीवन मेरा
अब तू ही अस्तित्व
मैं एक पत्ता
सूखा,निर्जीव, त्यक्ता
साथ जो तेरा
मैं नहीं बेसहारा
हवा के झोंके
ख़ुश्बू से नहला दे।
जी भर बहला दे।
✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका:- लाचार दूब

हर सुबह
आसमान से गिरे
मोती के दाने चमकीले, सजीले
दूब के पत्ते
समेट ले बूंदों को
अपना जान
बिखेरती मुस्कान
हो जाती हरा
पर सूर्य पहरा
बड़ी दुरुस्त
कौन बचा उससे
टेढ़ी नज़र
छीने ज़मीदार बन
दूब लाचार
दुबला कृशकाय
कृषक भांति
नियति जानकर
गँवा देता है
सपनों की मोतियाँ
सब भूल के
प्रतीक्षा करे फिर
नयी सुबह
लेकर यही आस
कब बुझेगी प्यास? ✍मनीभाई”नवरत्न” २७मई २०१८

चोंका -फूल व भौंरा

बसंत पर
फूल पे आया भौरा 
बुझाने प्यास।
मधुर गुंजन से
भौरा रिझाता
चूसता लाल दल
पीकर रस
भौंरे है मतलबी
क्षुधा को मिटा
बनते अजनबी
फूल को भूल
छोड़ दी धूल जान
उसे अकेला।
शोषको की तरह
मद से चूर ।
तन मन कालिमा
किन्तु फिर भी
निशान नही छोड़ा
ठहराव की ।
भोग्या ही समझता
नहीं चाहता
फूल फलने लगे।
उसकी चाह
लुटता रहे मजे
जब वो चाहे ।
फुल से वो खेलेगा
कली को छेड़
अंतस को पीड़ा दे
मुरझा देता
फिर फूल सी स्त्री
प्रतीक्षारत
पुनः आगमन  की
उषा से संध्या
भौरे का बेवफाई
सहती रही
कहती बसंत से
हे ऋतुराज!
तू भेजा हरजाई
विरह पीड़ा
जैसे काटती कीड़ा
प्रेम परीक्षा
दे गयी अब शिक्षा
मिट जाना है
पंखुड़ी धरा गिरी
फूल का प्रेम
सौ फीसदी है खरा
फल डाल का
कोई अनाथ नहीं
वो एक गाथा
भौरे की अत्याचार
फूल की सच्चा प्यार .

चोका- नारी

हर युद्ध का
जो कारण बनता
लोभ, लालच
काम ,मोह स्त्री हेतु
पतनोन्मुख
इतिहास गवाह
स्त्री के सम्मुख
धाराशायी हो जाता
बड़ा साम्राज्य
शक्ति का अवतार
नारी सबला।
स्त्री चीर हरण से
कौरव नाश
महाभारत काल
रावण अंत
सीता हरण कर
स्त्री अपमान
हर युग का अंत।
आज का दौर
नारी सब पे भारी
गर ठान ले
दिशा मोड़े जग का
सहनशील
प्रेम त्याग की देवी
धैर्य की धागा
बांधकर रखती
देवों का वास
तेरे आस पास है।
हे नारी तू खास है।

✍मनीभाई”नवरत्न”

चोका:- हरित ग्राम

हरित ग्राम…
हरी दीवार पर
पेड़ का चित्र।
छाया कहीं भी नहीं
दूर दूर तक।
नयनाभिराम है
महज भ्रम।
आंखों में झोंक लिये
धुल के कण।
तात्कालिक लाभ ने
किया है अंधा
स्वार्थपरता
खेलती अस्तित्व से
यह जान के
बनते अनजान
पैसों के लिये
बेच दिया ईमान
वृक्षारोपण
कागज पर धरा
असल धरा
बंजर पड़ रही
सारी योजना
अपूर्ण सड़ रही
ठेके का काम
चंद हस्ताक्षरों से
दे दिया नाम
हरियाली योजना
वृक्षों की कमी
संकट है गहरा ।
पीढ़ियों को खतरा।

✍मनीभाई”नवरत्न”


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