गुरु पूर्णिमा पर दोहे -बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ

महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं

doha sangrah
कविता संग्रह

बनिए गुरु तब मीत

द्रोण सरीखे गुरु बनो,भली निभाओ रीत।
नहीं अँगूठा माँगना, एकलव्य से मीत।।

एकलव्य की बात से, धूमिल द्रोण समाज।
कारण जो भी थे रहे, बहस न करिए आज।।

परशुराम से गुरु बनो, विद्यावान प्रचंड।
कीर्ति सदा भू पर रहे, हरिसन तजे घमंड।।

गुरु चाणक्य समान ही,कर शासक निर्माण।
अमर बनो स्व राष्ट्रहित, कर काया निर्वाण।।

वालमीकि से धीर हो, सिय पाए विश्राम।
लव कुश घोड़ा रोक दें, करें प्रशंसा राम।।

दास कबीरा की तरह, बनना गुरु बेलाग।
ज्ञानी अक्खड़ भाव से, नई जगा दे आग।।

गुरु नानक सा संगठन, सत्य पंथ आचार।
देश धरा हित त्याग में, करना नहीं विचार।।

तुलसी जैसी लेखनी, कालिदास सा ज्ञान।
सूरदास सा प्रेम रस, तब कर ले गुरु मान।।

मीरा और रैदास सी, अविचल भक्ति सुजान।
गुरु वशिष्ठ से भाग्य ले, गुरुवर बनो महान।।

तिलक गोखले सा हृदय,रखना आप हमेश।
देश हितैषी कर्म हो, बनिए गुरु परमेश।।

रामदेव सा योग कर, तानसेन से गीत।
शर्मा बाबू लाल तुम, बनिए गुरु तब मीत।।

✍©
बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान

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