आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा
दीपावली की पावन बेला
महकी जूही, खिल गई बेला
धनवंतरि की रहे छाया
निरोगी रहे हमारी काया
रूप चतुर्दशी में निखरे ऐसे
तन हो सुंदर मन भी सुधरे
महालक्ष्मी की कृपा परस्पर
हम सब पर हरदम ही बरसे
माँ लक्ष्मी के वरद हस्त ने
इतना सक्षम हमें किया है
दिल में सबके प्यार जगाएं
अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें
चहुँ ओर है आज दीवाली
दीपोत्सव की सजी है थाली
किसी के आँगन में है खुशियाँ
किसी का आँगन हो गया खाली
आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं
सबका आँगन भी चमकाएं
नौनिहालों को बाँटे खुशियाँ
उनके घर भी मने दीवाली
दिये तले क्यूँ रहे अंधेरा
उसको क्यों तम ने है घेरा
आस का एक दीपक जलाएँ
अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें
वर्षा जैन “प्रखर”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद