परदेसी से प्रीत न करना

परदेसी से प्रीत न करना

तुमसे विलग   हुए तो कैसे
कैसे दिवस निकालेंगे।
दीप    जलाये   हैं हमने ही
दीपक आप बुझा लेंगे।


तन्हाई में   जब   जब यारा
याद तुम्हारी आयेगी।
परदेसी  से   प्रीत  न करना
दिल को यों समझा लेंगे।।


शायद सदमा झेल न पाओ
तुम मेरी बर्बादी का।
अपने अंदर  ही अपने हम
सारे हाल छुपा लेंगे।।
झूँठा   है ये  प्यार मुहब्बत
झूँठे हैं सब अफ़साने।।

तेरा दिल  बहलाने को हम
अपना खून बहा लेंगे।।
“करुण”दुआ  मांगे  तेरा ये
आँगन खुशियों से महके।
तेरे हर     दर्दोग़म  को हम
अपना मीत बना लेंगे।

जयपाल प्रखर करुण

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