CLICK & SUPPORT

किसानों को समर्पित एक कविता

किसानों को समर्पित एक कविता

जेठ की तपती दुपहरी हो
या मूसलाधार बारिश
अभावों की
कुलक्षिणी रात हो
या ….
दक्षिणी ध्रुवी अंधकार अमावस्या
जाड़े की ठिठुरन में भी
औरों की तरह
नहीं सोता
वह घोड़े बेचकर ..
जिम्मेवारियों का निर्वहन करते
धरती के गर्भ से
जिसने
अन्न उपजा
मनुष्य और मनुष्यता को
जीवित रखा
संसार को नया आकार देकर
फसलों में मुस्कान बिखेरी
दलदली पंक को रास्ता बना
नवांकुरों को चलना सिखाया
मगर!
विडम्बना ऐसी
कि आज ..
उसी का हल गिरवी पड़ा है
तन पर उसके
बदहाली के फफोले हैं
दाने-दाने को तरसती झोपड़ी
और ..
चारों दिशाओं से फाँसी के फंदे
उसे देते हैं आमंत्रण
जबकि ….
सही मायने में देखा जाए
तो किसान
वरद पुत्र है वसुंधरा का
दो बीघा ही सही
लेकिन! दीजिये
किसान को उसका हक़
और उसकी जमीन ।

रचनाकार ~

प्रकाश गुप्ता ” हमसफ़र ”

युवा कवि एवं साहित्यकार
     (स्वतंत्र लेखन)
विनोबा नगर वार्ड नम्बर – 24
रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
पिन नम्बर – 496001
मोबाईल – 7747919129

CLICK & SUPPORT

You might also like