प्रभात हो गया
उठो
प्रात हो गया
आँखें खोलो
मन की गठानें खोलो आदित्य सर चढ़कर
बोल रहा है
ऊर्जा संग मिश्री
घोल रहा है नवल ध्वज लेकर
अब तुम्हें
जन मन धन के निमित्त
लक्ष्य की ओर
जाना है
गंतव्य के छोर पर
पताका फहराना है असीम शक्ति तरंगें
तुम्हारे इंतज़ार में हैं उठो !
मेघनाद की तरह
हुंकार भरो
घन गर्जन करो बढो!
हासिल करो
विजयी बनो
इतिहास रचो
समर तुम्हारा है भाग्य से नहीं
कर्म से दुनियाँ को
अपना बनाना है उठो !
प्रात हो गया
प्रभात हो गया।
राजेश पाण्डेय *अब्र*
अम्बिकापुर