ये लहू है आँखों का कोई पानी नहीं है
जज़्बातों की होगी ज़रूरत समझने को इसे 
लफ़्ज़ों से समझ जाए कोई ये वो कहानी नहीं है
ये जो लग रहा है गिला सा आँख टूटे हुआ दिल का
ये लहू है आँखों का कोई पानी नहीं है
छोड़ कर जाने का फ़ैसला जो कर लिया है तुमने हमें
बेशक जाओ तुम्हारी मर्ज़ी
बहुत सताएँगे तुम्हें ख़्वाबों में ये जान लो तुम 
हमें छोड़ कर जाना आसानी नहीं है
जो यूँ खेलते हैं खेल लुका छुप्पी का 
दिखते हैं कभी फिर छुप जाते हैं
बच्चे हैं वो बचपना है उनका 
उनकी अभी कोई जवानी नहीं है
गुज़र जाएगा ये सफ़र ज़िंदगी का 
लिखते हुए कुछ बोल शायरी के
ना रहोगे तुम तो ना होगी मोहब्बत 
मोहब्बत से ही जिंदगानी नहीं है
बड़ जाएगी ज़िंदगी की ये नाव भी 
पहुँच जाएगी साहिल तक कैसे भी
चलना शुरू किया है इसने अभी ही
दौड़ेगा ये अभी इसमें रवानी नहीं है
हमने भी मोहब्बत किया उनसे
हालात ने तोड़ दिया दिल को
साहब ये ख़ुदा की ही होगी मर्ज़ी 
इसमें किसी की मनमानी नहीं है
लिखता हुँ कुछ अल्फ़ाज़ उनको 
और उन्हें याद करता हुँ हर रोज़
लिख कर बयाँ करता हुँ इश्क़ मेरा
‘राज़’ इससे बड़ी निशानी नहीं है
– दीपक राज़
