आदमी पर लिखी गयी कविता
बहुत हुआ हैरान , प्रकृति देखकर आदमी ।
अनसुलझे है ज्ञान , वहीं भटकता है खड़ा ।।
जिज्ञासा से पूर्ण , उलझ रहा है आदमी ।
रहा अचंभित घूर्ण , निहारता है विश्व को ।।
आज आदमी त्रस्त , कोरोना आतंक से ।
सभी हौसले पस्त , भय का ही माहौल है ।।
छुपा रखे हैं राज , श्वेत बसन की आड़ ले ।
नहीं उसे है लाज , मरा हुआ है आदमी ।।
ये सारे जंजाल , सुख सुविधा के भोग सब ।
बनते जब भी काल ,भौचक्का है आदमी ।।
छाया है आतंक , लोग आदमी नाम पर ।
राजा जो या रंक , कई चेहरे है छुपे। । ।
जिनको देखो व्यस्त , अपनी ही धुन ताल पर ।
रहा आदमी मस्त , जीवन जीता जा रहा ।।
विविध भाव अनुभाव , कहीं मेल खाता नहीं ।
पड़ता नहीं प्रभाव , पत्थर होता आदमी ।।
सभी मतलबी लोग , दायें बायें आदमी।
करो ईश से योग , वही हितैषी एक है ।।
दया प्रेम रख जीव , मूल्य आदमी का समझ।
पक्का रखिए नींव , सम्मानित जग में सदा ।।
जरुरत का सामान , बने आदमी देखिए ।
घटता बढ़ता मान , समझ नहीं आता हमें ।।
स्वंय शोध इंसान , क्या करना संसार में ।
मत बन तू भगवान , मणि मंजूषा माधुरी ।।
~ माधुरी डड़सेना ” मुदिता “
भखारा