आज मैं बोलूंगा
आज मैं बोलूंगा…
खुलकर रखूंगा अपने विचार…
अभिव्यक्ति की आजादी जो हैं…
सीधे सपााट, सटीक शब्द रखूंगा…
आम जनता के मन मस्तिष्क में ..समाने वाले..
मस्तिष्क की गहराईयोंं तक…
उतर जायेंगे…
मौन शब्द…
करेंगे …प्रहार पर प्रहार… छलनी करेेंगे…
अन्तर्आत्मा…
नहीं कहूूंंगा अनर्गल…
कहना भी नहीं चाहिए क्योंकि…
अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब…
किसी पर कुछ भी… जबरन लादना तो नहीं है…
नहीं भूलूंगा अपनी सीमाएं….
करूंगा सरहद की बातें लेकिन…
कंटीले तार…
सरहद पर देखें हैं मैैंने….
देखी…है सरहद की विरानियत…
उन कंटीली झाडिय़ों मेें….उलझ कर…
शब्दों की..
न हो…निर्मम हत्या…
लहूलुहान नहीं करना चाहता….
अभिव्यक्ति की आजादी से रिश्तों को…
थामना चाहता हूंं…
बांधना चाहता हूँ… इंसानियत को….
जकड़ लूंगा….
पहना दूंंगा बंंधुत्व की भावना…
भाईचारे को…चरने नहीं दूंगा….
हैवानियत की घास….
शबनम की बूंंदों की चादर बनाऊंंगा….
अभिव्यक्ति की आजादी से…
सरहदी बर्फ …
सारी…
पिघलाऊंगा….
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च…
सभी…इस देेश का गहना हैं…
माथे…लगाऊंगा
हिन्दू, मुस्लिम, सिख,ईसाई….
नहीं…
इंसान हूँँ….
इंसान ही कहलाऊंगा….
अभिव्यक्ति की आजादी से… कर दूंगा…जिंंदा
फूंक दूंंगा प्राण….
शब्द …शब्द है आखिर….
रेगिस्तान की भरी रेत पर भी….
पसरने नहीं…दूंगा…
सन्नाटा….
मैं सफेद …कबूतरों (शांति केे प्रतीक) का पक्षधर हूँ…
अभिव्यक्ति की आजादी…को..
लगने नहीं दूंगा कालिख…
मुझे
नफरत हैंं…इस कालिख से…
स्याह रंग…कालिख का…
बुरा
बहुत है…और अभिव्यक्ति की आजादी को…
मैंने
संजोया है बरसों से… पल में कोई कर दे इसे तहस नहस….
पसंद नहीं है…
क्योंकि…
यह आजादी नहीं है…
यह तो होगी….
परतंत्रता…
केवल और केवल परतंत्रता।
धार्विक नमन, “शौर्य’,डिब्रूगढ़, असम