Author: कविता बहार

  • पेपर बैग का उपयोग – अकिल खान

    पेपर बैग का उपयोग – अकिल खान

    पेपर बैग का उपयोग - अकिल खान

    प्लास्टिक के उपयोग से संसार में प्रदूषण फैला है,
    घर – बर्तन – पोशाक है प्लास्टिक का और सबके हाथों में प्लास्टिक का थैला है।
    इससे उत्पन्न होते गंभीर समस्या फिर भी प्लास्टिक का मांग पहला है,
    लोगों उठो-जागो और देखो प्लास्टिक के कारण पर्यावरण हो गया मैला है।
    पशु – पक्षी और मानव में फैल रहा है गंभीर रोग,
    यही है समय की मांग हम करेंगे, पेपर बैग का उपयोग।

    प्लास्टिक का अति-उत्पादन है ये प्रतिस्पर्धा और उद्योगपतियों की मनमानी,
    पेपर बैग है लाभकारी – प्रदुषण- मुक्त इसके उपयोग से नहीं होता किसी को हानि।
    पेपर बैग है नाशवान तभी तो पसंद करते हैं इसे लोग,
    यही है समय की मांग हम करेंगे, पेपर बैग का उपयोग।

    प्लास्टिक से लुप्त हो रहें हैं दुर्लभ जीव – जानवर,
    करेंगे इनकी रक्षा क्योंकि ये हैं अनमोल धरोहर,
    समय रहते इन समस्याओं को सुलझाना है,
    पेपर बैग का करेंगे उपयोग प्लास्टिक को दूर भगाना है।
    है प्लास्टिक जानलेवा फिर भी लोग इसका करते हैं उपभोग,
    यही है समय की माँग हम करेंगे, पेपर बैग का उपयोग।

    प्लास्टिक है चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात है,
    पेपर बैग का करो उपयोग यही समझदारी वाली बात है।
    पुराना पेपर बैग से खाद बने जिससे लहलहाए फसल और बागों में चमन,
    प्लास्टिक जले तो दे काला – विषैला धुआँ और होता शुद्ध वायु का दमन।
    पेपर बैग के उपयोग से बनेगा खुशहाल जीवन का संयोग,
    यही है समय की मांग हम करेंगे, पेपर बैग का उपयोग।

    प्लास्टिक से फैला प्रदुषण – नदी सुखा जमीन हो गया बंजर,
    असमय वर्षा और आक्सीजन की कमी से पैदा हो गया भयावह मंजर।
    वक्त रहते संभल जाओ करो प्लास्टिक का अनुपयोग,
    यही है समय की मांग हम करेंगे, पेपर बैग का उपयोग।


    ——- अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

  • मृत्युभोज पर कविता

    मृत्युभोज पर कविता

    kavita

    मृत्युभोज
    (16,14)
    जीवन भर अपनो के हित में,
    मित हर दिन चित रोग करे।
    कष्ट सहे,दुख भोगे,पीड़ा ,
    हानि लाभ,के योग करे,
    जरा,जरापन सार नहीं,अब
    बाद मृत्यु के भोज करे।

    बालपने में मात पिता प्रिय,
    निर्भर थे प्यारे लगते।
    युवा अवस्था आए तब तक,
    बिना पंख उड़ते भगते।
    मन की मर्जी राग करेे,जन,
    मनइच्छा उपयोग करें।
    जरा,जरापन सार नहीं,पर
    बाद मृत्यु के भोज करे।

    सत्य सनातन रीत यही है,
    स्वारथ रीत निभाई है।
    अन उपजाऊ अन उत्पादी,
    मान, बुजुर्गी छाई है,
    कौन सँभाले, ठाले बैठे,
    कहते बूढ़े मौज करे।
    जरा,जरापन सार नहीं,पर
    बाद मृत्यू के भोज करे।

    यही कुरीति पुरातन से है,
    कल,जो युवा पीढ़ियांँ थी,
    वो अब गिरते पड़ते मरते।
    अपनी कभी सीढ़ियाँ थी।
    वृद्धाश्रम की शरण चले वे,
    नर नाहर, वे दीवाने।
    जिनके बल,वैभव पहले के,
    उद्घोषित वे मस्ताने।,
    आज वही है पड़े किनारे,
    राम राम कह राम हरे।
    जरा,जरापन सार नहीं,पर,
    बाद मृत्यु के भोज करे।

    कुल गौरव की रीत निभानी,
    सिर पर ताज पाग बंधन।
    मान बड़प्पन, हक, पुरखों का,
    माने काज करे वंदन।
    जो शायद अध-भूखे-प्यासे,
    एकल रह बिन – मौत मरे,
    जरा,जरापन सार नहीं, पर
    बाद मृत्यु के भोज करे।

    एक रिवाज और पहले से
    ऐसा चलता आता है,
    बड़ भागी नर तो जीवित ही,
    मृत्यु भोज जिमाता है।
    वर्तमान में रूप निखारा,
    सेवा निवृत्ति भोज करे।
    जरा,जरापन सार नहीं,पर,
    बाद मृत्यु भोज के करे।
    . ______
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा विज्ञ

  • श्रम श्वेद- बाबूलाल शर्मा (ताटंक छंद)

    ताटंक छंद ~
    विधान :- १६, १४ मात्राभार
    दो दो चरण ~ समतुकांत,
    चार चरण का ~ छंद
    तुकांत में गुरु गुरु गुरु,२२२ हो।

    श्रम श्वेद- बाबूलाल शर्मा (ताटंक छंद)

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    बने नींव की ईंट श्रमी जो,
    गिरा श्वेद मीनारों में।
    स्वप्न अश्रु मिलकर गारे में।
    चुने गये दीवारों में।
    श्वेद नींव में दीवारों में,
    होता मिला दुकानों में।
    महल किले आवास सभी के,
    रहता मिला मकानों में।
    .
    बाग बगीचे और वाटिका,
    सड़के रेल जमाने में।
    श्वेद रक्त श्रम मजदूरों का,
    रोटी दाल कमाने में।
    माँल,मिलो,कोठी अरु दफ्तर,
    सब में मिला पसीना है।
    हर गुलशन में श्वेद रमा है,
    हँसती जहाँ हसीना है।
    .
    ईंट,नींव,श्रम,श्वेद श्रमिक की,
    रहे भूल हम थाती है।
    बाते केवल नाहक दुनिया
    श्रम का पर्व मनाती है।
    मजदूरों को मान मिले बस,
    रोटी भी हो खाने को।
    तन ढकने को वस्त्र मिले तो,
    आश्रय शीश छुपाने को।
    .
    स्वास्थ्य दवा का इंतजाम हो,
    जीवन जोखिम बीमा हो।
    अवकाशों का प्रावधान कर,
    छह घंटे श्रम सीमा हो।
    बच्चों के लालन पालन के,
    सभी साज अच्छे से हो।
    बच्चों की शिक्षा सुविधा सब,
    सरकारी खर्चे से हो।
    .
    बाबू लाल शर्मा, “बौहरा” विज्ञ

  • नमन करूँ मैं- बाबूलाल शर्मा

    नमन करूँ मैं- बाबूलाल शर्मा

    नमन करूँ मैं- बाबूलाल शर्मा

    नमन
    . ( 16,14)

    नमन करूँ मैं निज जननी को,
    जिसने जीवन दान दिया।
    वंदन करूँ जनक को जिसने
    जीवन का अरमान दिया।

    नमन करूँ भ्राता भगिनी सब ,
    संगत रख कर स्नेह दिया।
    गुरु को नमन दैव से पहले
    वाचन लेखन ज्ञान दिया।
    . ~~~~~
    मानुष तन है दैव दुर्लभम,
    अनुपम यही सौगात है।
    दैव,धरा,गुरु,भ्राता,भगिनी,
    परिजन पिता या मात है।

    गंगा गैया,गिरि, गणेश, गज
    गायन गगन का गात है।
    बमभोले,बाबा, बजरंगी,
    ब्रह्मा, या बिष्नु, बात है।
    . ~~~~~
    भानु भवानी,भगवन भक्तों,
    भ्रात भृत्य को नमन करूँ।
    बाग बगीचे वन उपवन जल,
    सागर, थल ,को चमन करूँ।

    चन्द्र, सितारे,भिन्न पिण्ड,तरु,
    पशु,खग,दुख का शमन करूँ।
    जीव जगत,निर्जीव सभी सह,
    राष्ट्र शत्रु का दमन करूँ।
    . ~~~~~
    नमन करूँ सब भूले भटके
    जन गण मन संविधान को।
    जय जवान,अर,जय किसान के,
    मचलते मानस मान को।
    .
    नमन करूँ कण कण में बसते,
    उस दैवीय अभिमान को।
    अपने और सभी के गौरव
    मेरे निज स्व अभिमान को।
    . _______
    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”

  • बातें पिता पद की- बाबूलाल शर्मा

    बातें पिता पद की- बाबूलाल शर्मा

    छंद
    छंद

    सजीवन प्राण देता है,
    सहारा गेह का होते।
    कहें कैसे विधाता है,
    पिताजी कम नहीं होते।

    मिले बल ताप ऊर्जा भी,
    सृजन पोषण सभी करता।
    नहीं बातें दिवाकर की,
    पिता भी कम नही तपता।

    मिले चहुँओर से रक्षा,
    करे हिम ताप से छाया।
    नहीं आकाश की बातें,
    पिताजी में यहीं माया।

    करे अपनी सदा रक्षा,
    वही तो शत्रु के भय से।
    नहीं बातें हिमालय की,
    पिता मेरे हिमालय से

    बसेरा सर्व जन देता,
    स्वयं साधू बना रहता।
    नहीं देखे कहीं पौधे,
    पिता बरगद बने सहता।

    करे तन जीर्ण खारा जो,
    सु दानी कर्ण सा मानो।
    मरण की बात आए तो,
    पिता दशरथ मरे जानो।

    जगूँ जो भोर में जल्दी,
    मुझे पूरव दिखे प्यारे।
    पिता ही जागते पहले,
    कहे क्यों भोर के तारे।

    कभी बाधा हमे आए,
    उसी से राह दिखती है।
    नही ध्रुव की कहूँ बातें,
    पिता की राय मिलती है।

    कहें वो यों नही रोता,
    रुदन भारी नहीं रहता?
    रिसे नगराज से झरने,
    पिता का नेत्र है झरता।

    नदी की धार बहती है,
    हिमालय श्वेद की धारा,
    पिता के श्वेद बूंदो से,
    नहीं, सागर कहीं खारा।

    झरे ज्यों नीर पर्वत से,
    सुता कर,पीत जब करने।
    कभी आँखें मिलाओ तो,
    पिता के नेत्र हों झरने।

    महा जो नीर खारा है,
    पिता का श्वेद खारा है।
    समन्दर है बड़े लेकिन,
    पिता कब धीर हारा है।

    कहें गोदान का हीरो,
    अभावो का दुलारा है।
    दिखाई दे वही होरी,
    पिता भी तो हमारा है।

    पिता में भावना जागे,
    कहें हदपार कर जाता,
    अँधेरीे रात यमुना में,
    पिता वसुदेव ही आता।

    सजीवी जाति प्राकृत से,
    अजूबे,मोह है पाता।
    भले मौके कहीं पाए,
    वही धृतराष्ट्र हो जाता।

    निराली मोह की बातें,
    पिता जो पूत पर लाते।
    सुने सुत घात,जो देखो,
    गुरू वे द्रोण कट जाते

    पिता सोचे सभी ऐसे,
    सुतों की पीर पी जाए।
    हुमायू रुग्ण हो लेकिन,
    मरे बाबर वहीं पाए।

    अहं खण्डर कँगूरों कर,
    इमारत नींव कहलाता।
    कभी जो खुद इमारत था,
    पिता दीवार बन जाता।

    विजेताई तमन्ना है,
    पुरुष के खून में हर दम।
    भरे सुत में सदा ताकत,
    पिता हारे अहं बेगम।

    न देवो से डरा यारों,
    सदा रिपु से रहे भारा।
    मगर हो पूत बेदम तो,
    पिता संतान से हारा।

    रखें हसरत जमाने में,
    महल रुतबे बनाने का।
    पिता अरमान पालेंगे,
    विरासत छोड़ जाने का।

    पिता ने ले लिया भी तो,
    बड़े वरदान दे जाता,
    ययाती भीष्म की बातें,
    जमाने,याद है आता।

    नरेशों की रही फितरत,
    लड़ाई घात की बातें।
    सुतों हित राजतज देते,
    चले वनवास में जाते।

    उसे नाराज मत करना,
    वही तो भव नियंता है,
    सितारे टूट से जाते,
    पिता जब क्रुद्ध होता है।

    पिता की पीठ वे काँधे,
    बड़े ही दम दिखाते हैं।
    जनाजा पूत का ढोतेे,
    पिता दम टूट जाते है।

    बड़ा सीना, गरम तेवर,
    गरूरे दम बने रहते।
    विदा बेटी कभी होती,
    पिघल धोरे वही बहते।

    बने माँ की वही महिमा,
    सुहाने गीत की बाते।
    हिना की शक्ति बिंदी के,
    पिताजी स्रोत है पाते

    मिले शौहरत रुतबे ये,
    बने दौलत सभी बाते।
    रखे वे धीरगुण सारे,
    पिता भी मातु से पाते।

    दिए जो अस्थियाँ दानी,
    दधीची नाम,था ऋषि का।
    स्वर्ग के देवताओं पर,
    महा अहसान था जिसका।

    मगर सर्वस्व जो दे ते,
    कऱें सम्मान उनका भी।
    पिता ऐसा तपी होता,
    रहेअहसास इसका भी।

    विधाता छंद में देखें,
    सभी बाते पिता पद की।
    न शर्मा लाल बाबू तू,
    अमानत है विरासत की।
    . ……..

    बाबू लाल शर्मा , बौहरा विज्ञ