Author: कविता बहार

  • मां गंगा हूं कहलाती-इंदुरानी उत्तरप्रदेश

    मां गंगा हूं कहलाती-इंदुरानी उत्तरप्रदेश

    मां गंगा हूं कहलाती-इंदुरानी उत्तरप्रदेश
  • मैं चली आलू छिलने- ईश्वर सत्ता पर कविता

    मैं चली आलू छिलने- ईश्वर सत्ता पर कविता

  • लघुकथा कैसे लिखें?

    लघुकथा कैसे लिखें?

    kavita

    लघुकथा छोटी कहानी का अति संक्षिप्त रूप है । लघुकथा का लक्ष्य जीवन के किसी मार्मिक सत्य का प्रकाशन होता है जो बहुधा इस ढंग से अभिव्यक्त होता है जैसे बिजली कौंधती है। इसमें अत्यल्प साधनों द्वारा ही जीवन के चरम सत्य को उजागर करने की चेष्टा की जाती है। लघुकथाओं में बहुत कुछ राह सुझाने का भाव होता है। लघुकथाएँ निर्जन सुनसान से होकर गुजरने वाली पगडंडी है ।लघुकथाओं में अति कल्पना का खुलकर प्रयोग होता है।

    मुख्य तौर पर लघुकथा वर्णनात्मक, वार्तालाप शैली अथवा मिश्रित शैली ( जिसमें कथन के अलावा पात्रों के माध्यम से संवाद/ वार्तालाप भी होता है) में लिखी जाती है । यदि कथानक की आवश्यकता हो तो मोनोलाॅग शैली ( स्वयं से बात ) में भी लघुकथा कही जा सकती है ।

    लघुकथा-सावन की फुहार

    दीपक अपने कमरे में चुपचाप, गुमसुम बीते दिनों की याद में खोया हुआ था । अतीत की बातें उसकी आँखों के सामने एक एक करके आने लगे थे । बड़ी हसरत से उसने अपना एक छोटा- सा आशियाना बनाया था । अपनी जीवनसंगिनी और अपने बच्चों के साथ वह बहुत खुश था । बच्चों को अच्छा संस्कार दिया , उच्च शिक्षा दिलायी , लेकिन आदमी की हर इच्छा पूरी हो , शायद यह संभव नहीं है । ना जाने कैसे उसका इकलौता बेटा सत्या ” पब जी ” गेम के वशीभूत होता चला गया जिसका दुष्प्रभाव सत्या के दिनचर्या पर दिखाई पड़ने लगा था ।

    घर में सभी परेशान रहने लगे थे । किसी की समझाइश का कोई भी असर नहीं पड़ता देख दीपक ने सब कुछ समय पर छोड़ दिया । ना जाने कब दीपक की आँख से आँसू टपकने लगे थे । दीपक को लगा जैसे कोई उसे झकझोर रहा है । आँखें खोली तो देखा ,सत्या उसे जोर जोर से हिला रहा था , उसकी आँखें डबडबाई हुई थी । उसनेे रूँधे गले से कहा -” पापा , मुझे माफ़ कर दो । आपकी क़सम पापा , आज से मैं ” पब जी ” गेम की ओर देखूँगा भी नहीं ।”
    दीपक को लगा मानो उसके परिवार में सावन की नई फुहार आ गई है ।


    गजेन्द्र हरिहारनो ” दीप “
    डोंगरगाँव,जिला – राजनांदगाँव(छत्तीसगढ़)

    लघुकथा-मोहल्लेदारी


    आज सुबह मोहल्ले के शर्मा जी घर आए…
    गर्मी, महँगाई और रिश्तेदारों पर दो घंटे बातचीत की..

    मैंने चाय का पूछा तो उन्होंने नींबू पानी पीने की ख्वाहिश की.. कहा – आजकल नींबू पानी कोरोना में बहुत मुफीद है।

    दो घंटे के बाद जाते हुए दुआएँ दी और बोले : अब ऊपर वाले ने चाहा तो पंद्रह दिन बाद मुलाकात होगी, डाक्टरों ने दो हफ्ते के लिए क्वांरटाइन इलाज बताया है। कह रहे थे इस दौरान किसी से मिलियेगा जुलियेगा नहीं, तो मैंने सोचा आज ही सारे मोहल्ले वालों से मिल आऊँ …
    आखिर मुहल्लेदारी भी कोई चीज़ होती है।


    गजेन्द्र हरिहारनो ” दीप “
    डोंगरगाँव,जिला – राजनांदगाँव(छत्तीसगढ़)

  • तुम्हारा साथ काफी है -राजेश्वरी जोशी

    तुम्हारा साथ काफी है

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह



    जिंदगी में तुम्हारा साथ काफी है,
    हाथों में मेरे तेरा हाथ काफी है।
    दूर हो या हो पास कोई बात नही है,
    तुम साथ हो यह एहसास काफी है।

    लड़ते भी रहते हैं,हँसते भी रहते है,
    पर हम हैं साथ- साथ यही काफी हैं।
    मेरे दर्द का तेरे दिल में ,अहसास तो है,
    जिंदा रहने को तेरा ऐतबार काफी है।

    कहने से तो जज्बात बिखर जाते हैं,
    तेरा प्यार बिन अल्फ़ाज ही काफी है।
    हवाओं से भी तू मेरी खबर रखता हैं,
    खुशबूओं सा ये नर्म अहसास काफी है।

    नजर से नजर मिल जाए तुमसे हमारी,
    यही इतेफ़ाक जिंदगी में काफी है ।
    कुछ ना चाहिए इस दुनिया से हमें,
    बस एक तेरा साथ ही काफी है।

    झुर्रियों भरे ये जो हम दोनों के चेहरे है,
    कहते बीती यादों की बात काफी है।
    काले बालों में दिखते ये चांदी के तार,
    बुढ़ापे में तेरा ये मेरा साथ काफी है।

    राजेश्वरी जोशी,
    उतराखंड

  • फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं

    kavita

    फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं

    कोई तो ऎसी सुबह हो खुदाया मेरे

    जख्म दिल के नासूर न हो जाएँ कहीं

    उसके दीदार की कोई तो सुबह हो खुदाया मेरे

    रातों की नींद , दिल का चैन अब नहीं मेरे

    उसका पहलू नसीब हो मुझको खुदाया मेरे

    उसकी कमसिन अदाओं का हुआ मुझ पर जादू

    उसकी बाहों का मुझे सहारा मिले खुदाया मेरे

    उसकी आँखों में डूबने का मन करता है मेरा

    कुछ तो मेरी खबर कर खुदाया मेरे

    कहीं किसी मोड़ पर जो वो मिल जाए मुझे

    कुछ ऐसा तो करम कर खुदाया मेरे

    मैं उसके दीदार की आस लिये ज़िंदा हूँ

    क़यामत हो उसका दीदार हो जाए खुदाया मेरे

    फिर किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ कहीं

    कोई तो ऎसी सुबह हो खुदाया मेरे

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”