राह नीर की छोड़ – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “
इस रचना में कवि ने जीवन में आगे बढ़ने को सभी को प्रेरित किया है |
राह नीर की छोड़ - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "

हिंदी कविता संग्रह

हिंदी कविता संग्रह
इस रचना में कवि ने जीवन में आगे बढ़ने को सभी को प्रेरित किया है |
राह नीर की छोड़ - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "

इस रचना में कवि ने अपनी कक्षा एवं शिक्षकों के सद्चरित्र होने का वर्णन किया है |
मेरी कक्षा - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "
इस रचना को व्यंग्य के रूप में पेश किया गया है | समाज में चल रहीं अनैतिक परम्पराओं पर कुठाराघात करने की एक कोशिश रचनाकार ने की है |
जुगाड़ - कविता - मौलिक रचना - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "

एकर सेती भैया हो , जम्मो मनखे मन,ला मिलजुल के,लालच ला दुरीहा के पर्यावरण बचाए बर कुछ करना
पड़ही। लेकिन ये हा केवल मुंह अउ किताब भर मा तिरिया जाथे।
घाम के महीना छत्तीसगढ़ी कविता नदिया के तीर अमरइया के छांव हे।अब तो बिलम जा कइथव मोर नदी तीर गांव हे।। जेठ के मंझनिया के बेरा म तिपत भोंमरा हे।खरे मंझनिया के बेरा म उड़त हवा बड़ोरा हे।। बिन पनही…