Author: कविता बहार

  • बुरा वक्त भी गुजर जाएगा,कविता, महदीप जंघेल

    बुरा वक्त भी गुजर जाएगा,विधा – कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    धीरज रखो,आस रखो,
    और प्रभु में विश्वास रखो।
    समय का खेल है,
    एक सा नही होता,
    सब सुधर जायेगा,
    ये बुरा वक्त भी,
    एक दिन गुजर जाएगा।

    किसी के लिए अच्छा,तो
    किसी के लिए बुरा है।
    किसी का दर्द आधा,
    तो किसी का पूरा है।
    सिकंदर महान नही होता,
    वक्त महान होता है।
    देखना ये काला दिन भी,
    पता नही किधर जाएगा।
    ये बुरा वक्त भी,
    एक दिन गुजर जाएगा।

    वायरस का काल है,
    मन में भय का भूचाल है।
    जिंदगी बचाने की,
    माहौल हाहाकार है।
    अपनो को खो रहे,
    गम का बोझ ढो रहे।
    निश्चित ही शांति का,
    माहौल जरूर आएगा।
    ये बुरा वक्त भी,
    एक दिन गुजर जाएगा।

    वक्त रास्ता दिखला जायेगी,
    जीवन जीना सिखला जायेगी।
    वक्त के आगे न टिक सका,
    न टिकेगा कोई इंसान।
    वक्त के आगे इंसान शैतान क्या,
    झुक जाते है भगवान।
    धैर्य रखो आस रखो,
    और प्रभु में विश्वास रखो।
    दुःख का बादल भी ,
    न जाने किधर जाएगा।
    ये भय दुःख का वातावरण,
    जल्दी सुधर जाएगा।
    ये बुरा वक्त भी,
    एक दिन गुजर जाएगा।

    📝 महदीप जंघेल
    खमतराई, खैरागढ़

  • प्रेरणा दायक कविता – तुझको विजय-पराजय से क्या?

    प्रेरणा दायक कविता

    प्रेरणा दायक कविता – तुझको विजय-पराजय से क्या?


    चल तू अपनी राह पथिक चल, तुझको विजय-पराजय से क्या?
    होने दे होता है जो कुछ, उस होने का फिर निर्णय क्या?


    भँवर उठ रहे हैं सागर में, मेघ उमड़ते हैं अम्बर में।
    आँधी और तूफान डगर में।
    तुझको तो केवल चलना है, चलना ही है तो फिर भय क्या?
    तुझको विजय पराजय से क्या? चल तू अपनी राह …..


    अरे थक गया क्यों बढ़ता चल, उठ संघर्षों से लड़ता चल।
    जीवन विषम पंथ चलता चल।
    अड़ा हिमालय हो यदि आगे, चढूँ कि लौ, यह संशय क्या?


    तुझको विजय पराजय से क्या? चल तू अपनी राह
    होने दे होता है जो कुछ, उस होने का फिर निर्णय क्या?

    प्रेरणा दायक कविता

  • अंतः प्रेरणा कविता

    प्रेरणा दायक कविता

    अंतः प्रेरणा

    निज उर की अंतः प्रेरणा, सम्मोहक उद्धार है ।
    अंतः पुर का आत्म बल , मनुज विजय आधार है।।

    मन प्रेरित अंतः प्रेरणा , पूरित करती लक्ष्य है।
    आवेगो की पहचान कर , नाहक करती भक्ष्य है।।

    जागृत कर अंतः प्रेरणा , मूल पाप का जान लो ।
    छल छिद्र कपट को त्यागकर, मूल धर्म पहचान लो।।

    निज भुजबल से ही बल मिले, छोड़ो दूजे आस को ।
    तरंगिणी अंतः प्रेरणा, फिर क्यों तड़पे प्यास को।।

    आत्मशक्ति अंतः प्रेरणा, सुखकर अंतर्ध्यान है।
    तज जागृत स्वप्न सुसुप्त को, तुर्यातित सत ज्ञान है।।

    पद्मा साहू ” पर्वणी”
    खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

  • कर्तव्य-बोध-रामनरेश त्रिपाठी

    कर्तव्य-बोध -रामनरेश त्रिपाठी

    kavita


    जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है।
    जिसका खाकर अन्न सुधा सम नीर समीर पिया है।

    जिस पर खड़े हुए, खेले, घर बना बसे, सुख पाए।
    जिसका रूप विलोक तुम्हारे दृग, मन, प्राण जुड़ाए॥


    वह स्नेह की मूर्ति दयामयि माता तुल्य मही है।
    उसके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है।
    हाथ पकड़कर प्रथम जिन्होंने चलना तुम्हें सिखाया।
    भाषा सिखा हृदय का अद्भुत रूप स्वरूप दिखाया।


    जिनकी कठिन कमाई का फल खाकर बड़े हुए हो।
    दीर्घ देह ले बाधाओं में निर्भय खड़े हुए हो।
    जिसके पैदा किए, बुने वस्त्रों से देह ढके हो।
    आतप, वर्षा, शीत काल में पीड़ित हो न सके हो।


    क्या उनका उपकार भार तुम पर लव लेश नहीं है?
    उनके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है?
    सतत ज्वलित दुख दावानल में जग के दारुण दुख में।
    छोड़ उन्हें कायर बनकर तुम भाग बसे निर्जन में।


    आवश्यकता की पुकार को श्रुति ने श्रवण किया है?
    कहो करों ने आगे बढ़ किसको साहाय्य दिया है?
    आर्तनाद तक कभी पदों ने क्या तुमको पहुँचाया?
    क्या नैराश्य निमग्न जनों को तुमने कण्ठ लगाया?


    कभी उदर ने भूखे जन को प्रस्तुत भोजन पानी
    देकर मुदित भूख के सुख की क्या महिमा है जानी?
    मार्ग पतित असहाय किसी मानव का भार उठाके
    पीठ पवित्र हुई क्या सुख से उसे सदन पहुँचा के?

    मस्तक ऊँचा हुआ तुम्हारा कभी जाति गौरव से?
    अगर नहीं तो देह तुम्हारी तुच्छ अधम है शव से॥
    भीतर भरा अनन्त विभव है उसकी कर अवहेला।
    बाहर सुख के लिए अपरिमित तुमने संकट झेला॥


    यदि तुम अपनी अमित शक्ति को समझ काम में लाते।
    अनुपम चमत्कार अपना तुम देख परम सुख पाते॥
    यदि उद्दीप्त हृदय में सच्चे सुख की हो अभिलाषा।
    वन में नहीं, जगत में जाकर करो प्राप्ति की आशा॥


    रामनरेश त्रिपाठी

  • प्यार से दुश्मनी को मिटा दंगे हम-अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    प्यार से दुश्मनी को मिटा दंगे हम -अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    प्यार की खुशबू से सारे जहां को नहला दंगे हम
    फिर कोई कह नहीं सकेगा
    वो ओसामा है वो सद्दाम है
    हर तरफ नानक, कबीर, गौतम की वाणी
    गुंजा दंगे हम
    कौन कहता है कि
    अजान सुनाई नहीं देती
    घर घर में कुरान
    खिला दंगे हम
    लगने लगेंगे हर जगह
    धर्म के मेले
    सारे जहां को
    धर्मगाह बना दंगे हम
    एकता हर मोड़ पर हर जगह
    दिखाई देगी तुमको
    लोगों को एकता के सूत्र में
    पिरो दंगे हम
    भारत वतन है एकता की
    खुशबू का
    सारे जहां को
    इसका हिस्सा बना दंगे हम
    कि किस्सा –ऐ – जन्नत सुना होगा सबने
    कि हर गली हर कूचे को
    जन्नत बना दंगे हम
    कि धरती है प्रकृति का
    नायाब तोहफा
    चारों और हरियाली
    बिछा दंगे हम
    पालते हैं हम
    अपने दिल में
    जज्बा ऐ वतन
    कि भारत माँ के लाल बनकर
    दिखा दंगे हम
    कि हर गली हर कूचे को
    आतंकवाद से बचा कर रखना
    कूद पड़े जो मैदान में तो
    देश के लिए सर कटा दंगे हम
    वतन पर मिटने की
    तमन्ना रही सदियों से
    कि हर एक बूँद कतरा बन
    देश पर लुटा दंगे हम
    मुझे प्यारा है मेरा वतन
    मुझे प्यारा है मेरा चमन
    इस देश पर अपना सर्वस्व
    लुटा दंगे हम
    इस देश पर अपना सर्वस्व
    लुटा दंगे हम
    इस देश पर अपना सर्वस्व
    लुटा दंगे हम