Author: कविता बहार

  • सत्य मार्ग तेरी डगर हो

    सत्य मार्ग तेरी डगर हो – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    सत्य मार्ग तेरी डगर हो
    सत्य पथ तेरा बसर हो

    बंधन मुक्त जीवन तेरा हो
    मोक्ष तेरा हमसफ़र हो

    माया तेरा पीछा न पकड़े
    दुर्गुण कभी तुझको न जकड़े

    ज्ञान पथ तेरा हो साथी
    आदर्श हो जाए तेरा निवासी

    सत्मार्ग के तुम बनो प्रवासी
    कर्मभूमि तेरा बसर हो

    मंजिल पर हमेशा तेरी नज़र हो
    खिलते रहो जहां में फूल बनकर

    खुदा की तुम पर मेहर हो
    अनुपम धरा पर तेरी छवि हो

    अनुचर धरा पर तेरे बहुत हों
    अभिमानी न होना कभी तुम

    अंधविश्वास हो न राह तुम्हारी
    अंजुली भर श्रद्धा जगा जो लोगे तुम

    इस जग को स्वर्ग बना लोगे तुम
    अंकित करो कुछ तो इस धरा पर

    नाम तुम्हारा अमर हो जाएगा
    सत्य मार्ग तेरी डगर हो

    सत्य पथ तेरा बसर हो

    सत्य मार्ग तेरी डगर हो –

    अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

  • छू लेंगे हम आसमान- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    इंद्रधनुष

    छू लेंगे हम आसमान- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    छू लेंगे हम आसमान
    कौन कहता है
    हम बच्चे हैं
    हममें जोश नहीं है
    संकल्प की पूंजी
    हमारी धरोहर
    कर्त्तव्य की राह
    हमारी डगर
    वादियों में सत्य की
    विचरते हैं हम
    और
    कर्म की राह पर
    चलते हैं हम
    कौन कहता है
    छू सकते नहीं हम आसमान
    छू लेंगे हम आसमान
    कौन कहता है हम बच्चे हैं
    गुरु शिष्य परंपरा का
    करते हैं आचमन
    बुजुर्गों के आशीर्वचन तले
    पलता हमारा बचपन
    संवारते खिलते विचार हमारे
    पाते हम सुरक्षा
    होते संस्कारित
    कहलाते
    संस्कृति के रखवाले हम
    विद्यालयों के प्रांगण तले
    संवारता हमारा बचपन
    हर-छण हर -पल
    खिलता हमारा तन मन
    विचरों के युद्ध में
    बनते विजेता
    साथ ले
    पुस्तकों का
    अग्रसर होते
    उस मंजिल की और
    जो हमारा सपना होता
    हम हर पल
    ऋणी होते जाते
    उस शिक्षक के
    जो दीपक की तरह
    स्वयं को जला
    हमारे जीवन को
    रोशन करता
    इस संपूर्ण
    जीवन के साथ
    जी रहे हैं हम
    कौन कहता है
    छू नहीं सकते हम आसमान
    कौन कहता है
    हम बच्चे हैं

  • पाना है तुमको आसमान जमीं पर- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    badal, बादल
    बादल

    पाना है तुमको आसमान जमीं पर- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    पाना है तुमको आसमान जमीं पर
    सींचना है तुमको आदर्श जमीं पर

    खिलना है तुमको फूल बन बगिया के
    रहना है तुमको आदर्श बन जमीं पर

    जियो संकल्प के झंडे तले ,मरो तो वतन पर
    लाना है तुमको ,आसमां के तारे जमीं पर

    चमकना है तुमको ,बन तारे जमीं पर
    पाना है तुमको राह सत्य की

    जीना है तुमको कर्म प्रधान होकर
    किस्मत के धनी हो सकते हो तुम

    जीवन जीने के लिए ,हो सके तो जियो यहीं पर
    काफिलों को छोड़ पीछे ,सत्य पथ पर आगे बढ़ते

    निर्मित करना है तुमको भी, सत्य मार्ग इसी जमीं पर
    खोने की चिंता न करना, पाना है तुमको सब कुछ यहीं पर

    परवाह किसको है तूफां की, जीत ले दुनिया यहीं पर
    चमकेगा तू तारा ध्रुव बनकर भक्तिमार्ग का आचमन कर

    विश्व मंडल में खिलेगा पुष्प गंध तू लेकर
    करेगा मातृभूमि को सर्वस्व समर्पित पुण्य यादें बन जियेगा

    पाना है तुमको आसमान जमीं पर
    सींचना है तुमको आदर्श जमीं पर

    खिलना है तुमको फूल बन बगिया के
    रहना है तुमको आदर्श बन जमीं पर

  • वह अनाथ बालक- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    भाई-बहन

    वह अनाथ बालक- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    वह अनाथ बालक
    टोह में जीवन की
    चला जा रहा है
    उन अँधेरी गलियों में
    जो जीवन का पता
    बताने में सक्षम हैं

    उसके मन में
    जीवन जीने की
    अथाह चाहत और
    कुछ कर गुजरने का पागलपन
    उसे इस राह पर
    कुछ उम्मीद से ले आया है

    साहस का दमन पकड़
    कुछ कह सकूं
    इस असभ्य समाज से
    जो कुछ देने से पहले
    दस बार सोचता है
    दस बार तोलता है

    वह कहता है
    इसमें समाज का कोई दोष नहीं
    लोगों के व्यवहार ने
    स्वयं की हार ने उसे
    इस तरह सोचने को
    विवश किया है

    पर बालक का जूनून
    उसे एकला चालो रे
    के पथ पर आगे
    बढ़ने को प्रेरित करता है

    राह पर बढ़ते चलो
    मंजिल मिल ही जायेगी
    साथी मिलें न मिलें
    राह खुद ब खुद बन जायेगी

    जरूरत है कदम बढ़ाने की
    उस और जाने की
    जहाँ चाँद मिलता है
    जिसकी रोशनी में
    सारा जग दमक उठता है

    वह बढ़ता जा रहा है
    आसमां उसके करीब
    वह दूसरों के लिए
    पथ प्रदर्शक बन गया है

    जीवन उसका संवर गया है
    यह कुछ और नहीं
    परिश्रम व लगन की कहानी है

    हर सफल व्यक्ति की जुबानी है
    उनकी ही कहानी है

  • बोलो रे बोलो बोलो राधे गोपाल बोलो- आरती – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कृष्ण
    कृष्ण

    बोलो रे बोलो बोलो राधे गोपाल बोलो- आरती – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    बोलो रे बोलो बोलो
    राधे गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    कृष्ण गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    कन्हैया गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    बांसुरी गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    मुकुट गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    गिरधर गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    यशोदा गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    देवकी के लाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    नन्द के गोपाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    वासुदेव के लाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    सुदामा बाल बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    मोर मुकुट घनश्याम बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    गोवर्धन घनश्याम बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    राधा के श्याम बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    मीरा घनश्याम बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    कृष्ण चारों धाम बोलो

    बोलो रे बोलो बोलो
    राधे गोपाल बोलो