हारे जीत पर दोहे
पीर जलाए आज विरह फिर,बनती रीत!
लम्बी विकट रात बिन नींदे, पुरवा शीत!
लगता जैसे बीत गया युग, प्यार किये!
जीर्ण वसन हो बटन टूटते, कौन सिँए!
मिलन नहीं भूले से अब तो, बिछुड़े मीत!
पीर जलाए आज विरह फिर, बनती रीत!
याद रहीं बस याद तुम्हारी, भोली बात!
बाकी तो सब जीवन अपने, खाए घात!
कविता छंद भुलाकर लिखता, सनकी गीत!
पीर जलाए आज विरह फिर, बनती रीत!
नेह प्रेम में रूठ झगड़ना, मचना शोर!
हर दिन ईद दिवाली जैसे, जगना भोर!
हर निर्णय में हिस्सा किस्सा, हारे जीत!
पीर जलाए आज विरह फिर,बनती रीत!
याद सताती तन सुलगाती, बढ़ती पीर!
जितना भी मन को समझाऊँ, घटता धीर!
हुआ चिड़चिड़ा जीवन सजनी,नैन विनीत!
पीर जलाए आज विरह फिर, बनती रीत!
प्रीत रीत की ऋतुएँ रीती, होती साँझ!
सुर सरगम मय तान सुरीली, बंशी बाँझ!
सोच अगम पथ प्रीत पावनी, मन भयभीत!
पीर जलाए आज विरह फिर, बनती रीत!
सात जन्म का बंधन कह कर, बहके मान!
आज अधूरी प्रीत रीत जन, मन पहचान!
यह जीवन तो लगे प्रिया अब, जाना बीत!
पीर जलाए आज विरह फिर, बनती रीत!
. °°°°°°°°°°°°
✍©
बाबू लाल शर्मा बौहरा
सिकंदरा दौसा राजस्थान
???????????