बेबश नारी पर कविता
सायं ठल गई अंधेरों में कब तक यूं ही सोओगे
, ममता की दुलारी चिडियाँ कब तक यूं ही खोओगे।
ममता का जमीर बेच दिया-इंसानियत के गद्दरो ने,
बहना का सब धीर सेज दिया-चिडियाँ के हत्यारों ने।
चोर,उच्चके चौराहों पर ध्यान लगाए बैठे है,
इज्जत की पौडी पर अपना- ईम्मान लगाए बैठे है।
भाई-बहन के रिश्तों की यूं -धज्जियाँ उडा़ डाली है,
ज्यों फूलों की खेती मथता -एक खेत का माली है ।
निर्भया,रेड्डी जैसी कलियाँ- ममता ने प्यार से पाली है,
हवश-हेवानों ने मिलकर सब- पंखुडियाँ नोंच डाली है।
समाजसेवीयों के सब पत्र-संघर्ष की सेज पर जाली है,
शोर्य,शान की रखवाली-स्वदेश पुलिस के हाथ खाली है।
गवाह,सबूत सब अपराधों के-धरे-धराएं बैठे है,
आशा की उम्मीद पर दुशमन- सब सेज लगाए बैठे है।
जब न्याय नही मिल पाता-इस ममता की दुलारी को,
तब स्वयं खत्म करना पड़ता है- भारतवर्ष की नारी को।
ताराचन्द भारतीय,अपने बेटों को अच्छे संस्कार – जब सीख लाओगे,
अपने ईम्मान लगा कलंक-तब इज्जत से धो पाओगे।
लेखक-ताराचन्द भारतीय