Author: कविता बहार

  • बेबश नारी पर कविता- लाचार ममता

    बेबश नारी पर कविता

    सायं ठल गई अंधेरों में कब तक यूं ही सोओगे

    , ममता की दुलारी चिडियाँ कब तक यूं ही खोओगे।

    ममता का जमीर बेच दिया-इंसानियत के गद्दरो ने,
    बहना का सब धीर सेज दिया-चिडियाँ के हत्यारों ने।
    चोर,उच्चके चौराहों पर ध्यान लगाए बैठे है,

    इज्जत की पौडी पर अपना- ईम्मान लगाए बैठे है।

    भाई-बहन के रिश्तों की यूं -धज्जियाँ उडा़ डाली है,

    ज्यों फूलों की खेती मथता -एक खेत का माली है ।
    निर्भया,रेड्डी जैसी कलियाँ- ममता ने प्यार से पाली है,

    हवश-हेवानों ने मिलकर सब- पंखुडियाँ नोंच डाली है।
    समाजसेवीयों के सब पत्र-संघर्ष की सेज पर जाली है,
    शोर्य,शान की रखवाली-स्वदेश पुलिस के हाथ खाली है।
    गवाह,सबूत सब अपराधों के-धरे-धराएं बैठे है,

    आशा की उम्मीद पर दुशमन- सब सेज लगाए बैठे है।

    जब न्याय नही मिल पाता-इस ममता की दुलारी को,

    तब स्वयं खत्म करना पड़ता है- भारतवर्ष की नारी को।
    ताराचन्द भारतीय,अपने बेटों को अच्छे संस्कार – जब सीख लाओगे,
    अपने ईम्मान लगा कलंक-तब इज्जत से धो पाओगे।

    लेखक-ताराचन्द भारतीय

  • जात-पात पर दोहे

    जात-पात पर दोहे

    जात-पात के रोग से, ग्रस्त है सारा देश|
    भेद-भाव ने है दला, यहाँ पर वर्ग विशेष||

    जात-पात के जहर से, करके बंटा-धार|
    मरघट-पनघट अलग हैं, करते नहीं विचार||

    जात-पात के भेद में, नित के नए प्रपंच|
    जात मुताबिक संगठन, जात मुताबिक मंच||

    जात-पात है भयावह, जात भयानक रोग|
    करें नहीं उपचार क्यों, झेल रहे हैं लोग||

    जात-पात को झेल कर, पीया कड़वा घूंट|
    चैन छीन लिया तन का, लिया मान है लूट||

    जात-पात के कीच में, सने सभी नर-नार|
    प्रदूषित हुए कीच से, सभी बू रहे मार||

    जात-पात के भेद से, स्वयं को ले उबार|
    कहे सिल्ला विनोद तब, होगी मौज-बहार||

    -विनोद सिल्ला©

  • आदमी का प्रतिरूप पर कविता

    आदमी का प्रतिरूप पर कविता
    -विनोद सिल्ला

    आदमी
    नहीं रहा आदमी
    हो गया यन्त्र सा

    जिसका नियन्त्रण है
    किसी न किसी
    नेता के हाथ
    किसी मठाधीश के हाथ
    या फिर किसी
    धार्मिक संस्था के हाथ
    जिसका आचरण है नियंत्रित
    उपरोक्त द्वारा
    आदमी होने का
    आभास सा होता है
    बस आदमी का
    प्रतिरूप सा लगता है

    आज का आदमी
    नहीं रहा
    आदमी सा
    जाने कहां खो गई
    आदमीयत

  • मां की आंचल पर कविता

    मां की आंचल पर कविता

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    मां की आंचल पर कविता

    mother their kids
    माँ पर कविता

    मां तुने अपने आंचल में सृष्टि को समेटा है,
    खुद दर्द सहके हमें जीवन दिया है,

    पलकों के झूले में मुझको झूला दे,
    लोरी सुना के तु फिर से सुला दे,

    आंचल में तेरी है सारा जहाँँ,
    वो मेरी प्यारी और न्यारी मां,

    दौलत सोहरत सब है मेरे पास,
    सिर्फ तु नहीं है मेरे पास,

    वक्त बदल रहा है कि बदल रहे हम, जाने कौन सी मजबूरी है हमारी,

    मां परीयों की कोई कहानी सुना दे,
    मां चांद पर एक छोटा सा घर बना दे,

    मां तेरी याद मुझे बहुत सताती है,
    पास आ जाओ थक गया हूं बहुत,

    मुझे अपनी आंचल में सुलाओ,
    उंगलियाँ फेर कर मेरे बालों में एक बार,
    फिर वही बचपन की लोरी सुनाओ ।।
    ✍?✍?
    *परमानंद निषाद*

  • संभव क्यों नहीं कविता-विनोद सिल्ला

    संभव क्यों नहीं कविता

    कामना है
    न हो कोई सरहद
    न हो कोई बाधा
    भाषाओं की
    विविधताओं की
    जाति-पांतियों की
    सभी दिलों में बहे
    एक-सी सरिता
    सबके कानों में गूंजे
    एक-से तराने
    सबके कदम उठें
    और करें तय
    बीच के फांसले
    यह सब
    नहीं है असंभव
    आदिकाल में था
    ऐसा ही
    फिर आज संभव
    क्यों नहीं