अब नहीं रुकूंगी पर कविता
अब नहीं रुकूंगी पर कविता अब नहीं रुकूंगी,नित आगे बढूंगीमैंने खोल दिए हैं ,पावों की अनचाहे बेड़ियां।जो मुझसे टकराए ,मैं धूल चटाऊंगीहाथों में डालूंगी ,उसके अब हथकड़ियां।।(१)अब धुल नहीं मैं ,ना चरणों की दासी।अब तो शूल बनूंगीअन्याय से डरूँगी नहीं…