Author: कविता बहार

  • आलसी पर कविता

    आलसी पर कविता


    मेरे अकेले में भी कोई आसपास होता है।
    तुम नहीं हो पर तुम्हारा आभास  होता है।1।

    बिखर ही जाता है चाहे कितना भी संवारो
    बस खेलते  रहो जीवन एक ताश होता है।2।

    जरूरतमंद तो आ ही जाते हैं बिना बुलाए
    आपकी जरूरत में आए वही ख़ास होता है।3।

    दिनभर भीड़ में शामिल होने के बाद रोज
    मन मेरा हर शाम  जाने क्यूँ उदास होता है।4।

    जागो उट्ठो और नए जीवन का आगाज़ करो
    वरना सोया हुआ शख़्स महज़ लाश होता है।5।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • बचपन के खिलौनों के बदलते ढंग कविता

    बचपन के खिलौनों के बदलते ढंग कविता

    जयतु, जय जवान, जय किसान हो,
    जयतु मातृ-भू, जय भारत महान हो।

    माटी की खुशबू ले चलो वहाँ-वहाँ,
    अपने देश के पहरेदार जहाँ-जहाँ।

    वतन में अंधेरा छाया है अब कहाँ ?
    रोशन करके गया वह सरहद यहाँ।

    नशे में डूब चूके हैं आज के जवान,
    कैसै सम्हलेगा देश, सब हैं नादान।

    है ‘आज़ादी’ क्या ? नहीं वो जानते,
    मनमर्जी को ‘अपना हक़’ वो मानते।

    हुई बहत्तर की अब आज़ादी अपनी,
    देखो नेता, बदली है कथनी-करनी।

    धरम के ठेकेदारों में छिड़ गई जंग,
    बचपन के खिलौनों के बदलते ढंग।

    अब जागो, हे शक्ति की प्रबल-धारा,
    मचे ताण्डव, बिखेर दो मुण्ड-माला।

    चमके सूरज बनके ये भारत अपना,
    अखण्ड, अजेय, अभेद्य हो अनुपमा।

    -शैलेन्द्र कुमार नायक ‘शिशिर’
    सरायपाली, जिला – महासमुंद, छत्तीसगढ़
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  • कर्म पर दोहे -डॉ एन के सेठी

    कर्म पर दोहे -डॉ एन के सेठी

    भाग्य कर्म के बीच में , भाग्य बड़ा या कर्म।
    कर्म बनाता भाग्य को,यही मनुज का धर्म।।

    कर्म करे तो फल मिले,कर्म न निष्फल होय।
    कर्महीन जो ना करे ,जीवन का फल खोय।।

    कर्मगति है बड़ी गहन , इसे न समझे कोय।
    जो समझे सत्कर्म को, निष्कामी वह होय।।

    कर्म बिना इस सृष्टि में , होवे न व्यवहार।
    इससे चलती सृष्टि भी,जो सबका आधार।।

    कर्मअकर्म विकर्म को,समझे जो जीवात्म।
    बन जाता निष्काम वह,पा लेता परमात्म।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • भोर गीत-राजेश पाण्डेय वत्स

    भोर गीत


    ये सुबह की सुहानी हवा
    ये प्रभात का परचम।
    प्रकृति देती है ये पल
    रोज रोज हरदम।।

    आहट रवि किरणों की
    सजा भोर का गुलशन।
    कर हवाओं संग सैर
    भर ले अपना दामन।।

    उठ साधक जाग अभी
    दिन मिले थे चार।
    बीते न ये कीमती पल
    खो न जाये बहार।।

    कदम बढ़ा न ठहर अभी
    मंजिल आसमान में।
    स्वर्ग बना धरा को और
    राम नाम जुबान में।।

    –राजेश पान्डेय वत्स
  • खुदा से फरियाद पर कविता -माधवी गणवीर

    खुदा से फरियाद पर कविता

    या खुदा मुझे ऎसी इनायत तो दे,
    मोहब्बत के बदले मोहब्बत तो दे।

    खटक रहे है हम जिनकी निगाहों में,
    आजमाइश के बदले आजमाइश तो दे।
    न मुकर अपनी ही जुबां से ,
    ईमान के बदले ईमान तो दे।

    बजा कर अपनी ढ़फली अपना राग,
    तरन्नुम के बदले तरन्नुम तो दे।
    हमने जफा न सीखी तुमने वफा न निभाई,
    इनायत के बदले इनायत तो दे।

    कभी न ख़तम होगा इश्क का दरिया
    इजाजत के बदले इजाजत तो दे।

    या खुदा मुझे ऎसी इनायत तो दे,
    मोहब्बत के बदले मोहब्बत तो दे।

    माधवी गणवीर

    राजनांदगांव
    छत्तीसगढ।