Author: कविता बहार

  • साजन की याद में कविता -केवरा यदु मीरा

    साजन की याद में कविता

    प्रेमी युगल
    प्रेमी युगल

    रिमझिम बरखा के आने से प्रिय याद तुम्हारी आई।
    मेरे मन के आँगन में फिर गूँज उठी शहनाई।
    प्रिय याद तुम्हारी आई।।

    बाट जोहती साँझ सबेरे आयेंगे अब साजन।
    मन ही मन मैं झूमती गाती बजते चूड़ी कंगन।
    रिमझिम रिमझिम बूँदिया बरसे हो ——–

    संग चले पुरवाई प्रिय याद तुम्हारी आई।।

    कजरा गजरा माथे बिंदिया मोतियन माँग सजाई।
    हाँथो में तेरे नाम की मेंहदी साजन मैने रचाई।
    ये मन प्यासा चातक बन हो——

    इक बूँद की आस लगाई प्रिय याद तुम्हारी आई।।

    धानी चुनरिया आज पहन कर ड़ोलूं मैं इठलाती।
    आयेंगे साजन सावन में भेजी मैने पाती।
    पड़ते नहीं पाँव धरा पे हो——-

    पड़ते नहीं पाँव धरा पे फिरती मैं बौराई।।
    प्रिय याद तुम्हारी आई।

    हाँथो में ले हाँथ सजन बरखा में भीगने आना।
    नैनन से हो नेह की बतिया गीत प्रीत के गाना।
    मिले अधर से अधर हो——-

    मिले अधर से अधर मैं नैन मूंद शरमाई।।
    प्रिय याद तुम्हारी आई।

    रिमझिम बरखा के आने से प्रिय याद तुम्हारी।
    मेरे मन के आँगन में फिर गूँज उठी शहनाई।
    प्रिय याद तुम्हारी आई।।
    प्रिय याद तुम्हारी आई।।

    केवरा यदु “मीरा “

    राजिम(छत्तीसगढ़)
  • चाँदनी और लाल परी पर कविता

    चाँदनी और लाल परी पर कविता

    चांदनी पर कविता

    चौदहवीं का चाँद है तू कहूँ या कुदरत की जादूगरी ।
    जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

    ओ मेरी चाँदनी ओ मेरी लाल परी।

    रूप सलोना ऐसा जैसे खिलता हुआ गुलाब ।
    लाल परी है तू रानी तेरा नहीं जवाब ।
    तुझे देख कर गोरी हमने ऽऽऽ
    तुझे देख कर गोरी हमने अपनी सुध बिसरी ।।
    जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

    कजरारी अँखियां तेरी हिरणी जैसी चाल ।
    काली घटा शरमाये गोरी देख के तेरे बाल ।
    फूल चमन बरसाये ऽऽऽ
    फूल चमन बरसाये जिस राह से तू गुजरी।।
    जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

    गोरे गोरे गाल पे तेरे शर्मो हया की लाली ।
    एक नजर तू ड़ाल दे जिधर छा जाये हरियाली ।
    तू जन्नत की हूर है ऽऽऽ
    तू जन्नत की हूर है या कोई लाल परी ।।
    जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

    लाल चुनरिया ओढ़ निकली जड़े है चाँद सितारे ।
    एक झलक पा जाये तेरी वो मर जाये बिन मारे।
    सज बन कर न निकलो गोरी ऽऽऽ
    सज बन कर न निकलो गोरी जग की नजर बुरी ।।
    जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

    चौदहवीं का चाँद है कहूँ या कुदरत की जादूगरी ।
    जन्नत से इस धरती पर तू किसके लिये उतरी ।।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
  • क्रिसमस डे -कवि डीजेन्द्र कुर्रे ‘कोहिनूर’

    क्रिसमस डे

    सर पे टोपी हाथ मे क्रिसमस,
    चलो सांता बनते हैं।
    प्रभु के जन्म दिवस पर,
    पुनीत कर्म हम करते हैं ।

    बच्चों के साथ मिलकर,
    हँसी ठिठोली करते हैं।
    खूब नाचे हम खूब गाए,
    बच्चों के मन बहलाते है।

    चलो गिरजाघर जाकर,
    प्रभु के महिमा गाते हैं।
    पवित्र बाइबिल पड़कर,
    ध्यान मसीह में लगाते है।

    आओ सब मिलकर ,
    क्रिसमस उत्सव मनाते हैं।
    दिनदुखियों की सेवा कर,
    नये नये उपहार बाँटते है।
    ~~~~~~~●●●~~~~~

    रचनाकार-डिजेंद्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना,बलौदाबाजार (छ.ग.)

    मो. 8120587822

  • गीता द्विवेदी की शानदार कविता

    गीता द्विवेदी की शानदार कविता

    अलाव

    कभी-कभी जिंदगी
    अलाव जैसी धधकती है
    उसमें हाथ सेंकते हैं
    अपने भी पराए भी
    बुझने से बचाने की
    सबकी कोशिश रहती है,
    डालते रहते हैं,
    लकड़़ियाँ पारी-पारी,
    कितना अजीब है ना!
    न आग न धुआँ
    पर जिंदगी तो जलती है,
    सभी को पता है।
    क्योंकि कभी न कभी,
    सभी को इसका अनुभव हुआ है।
    कोई राख हो जाता है,
    कोई कुन्दन,
    और तब…..
    हाथ सेंकने वाले,
    दूर हो जाते हैं,
    बहुत दूर….. बहुत दूर
    कभी नियति, कभी नीयत,
    बना देती है
    जिन्दगी को अलाव,
    नीयत में स्वच्छता हो,
    नियति से जुझने की ताकत,
    तब ये दुनिया डरावनी नहीं,
    सुहानी लगती है,
    और सब अपने,
    पराया कोई नहीं रह जाता,
    तब अलाव भी नहीं धधकता,
    क्योंकि लकड़ियाँ,
    कम हो जाती हैं,
    ईर्ष्या, द्वेष की लकडिय़ाँ।

    हरे सोने के गहने

    धरती माँ पहनती हैं ,
    गहने…हरे सोने के ,
    सभी गहने सुन्दरता बढ़ाते हैं ।


    छोटे , बड़े सभी आकार के ,
    सुगंध प्रदायक ,
    वायु शुद्ध करनेवाले ।
    दूब , तुलसी ,नीम ,पीपल ।
    नागफनी और बबूल भी ।
    विचित्र बात है न!
    हम धरती माँ की ,
    इन्हीं हरे गहनों के बीच
    जन्म लेते और जीवन बिताते हैं ।


    फिर भी इन्हें समझने में ,
    कितनी देर लगाते हैं ।
    धरती माँ के निर्दोष हरे गहने ,
    निर्दयतापूर्वक तोड़ते  , नोचते ,
    काटते , छाँटते , टुकड़े – टुकड़े कर देते हैं ।


    इतने से भी जी नहीं भरता तो ,
    जला कर संतुष्ट होना चाहते  हैं ।
    पर नहीं , अभी तो इन्हें समूल नष्ट करना है ।
    और सभ्य होने का भ्रम पालना है ।
    दिखने दो धरती माँ को ,
    कुरूप ….. पीड़ित ,
    हम तो प्रसन्न रहेंगें ।
    नष्ट कर गहने ,
    हरे सोने के गहने ।


    गीता द्विवेदी

  • चुनाव में होगा दंगल-दूजराम साहू

    चुनाव में होगा दंगल

    अब होगा दंगल,
    गाँव-गाँव, गली-गली !!
    बजेगा बिगुल चुनाव की,
    गाँव- गाँव, गली-गली !!

    लोकतंत्र की महापर्व में,
    काफिले खूब चलेंगे!
    न दिखेगा अबीर का रंग,
    चुनावी रंग चढ़ेंगे !!
    लुभावने, छलावे की,
    मंत्रोच्चार होगी गली-गली !

    पांव पकड़ेंगे दीन का भी
    याचक बन वोट मांगेंगे !
    लंबी-चौड़ी अस्वासन होगी
    वादे खूब गिनायेंगे !!
    सच्चाई नहीं सुई नोंक बराबर
    परख लेना भली -भली !

    खुल गई पिटारे
    आलसी और कामचोरों की!
    कीमत वसूली चलेगी
    मांग होगी जोरों की!!
    लंबी-लंबी बोली होगी
    लिस्ट होगी बड़ी-बड़ी !

    दूजराम साहू
    निवास-भरदाकला
    तहसील-खैरागढ़ जिला
    राजनांदगांव (छ ग)
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