साजन की याद में कविता
रिमझिम बरखा के आने से प्रिय याद तुम्हारी आई।
मेरे मन के आँगन में फिर गूँज उठी शहनाई।
प्रिय याद तुम्हारी आई।।
बाट जोहती साँझ सबेरे आयेंगे अब साजन।
मन ही मन मैं झूमती गाती बजते चूड़ी कंगन।
रिमझिम रिमझिम बूँदिया बरसे हो ——–
संग चले पुरवाई प्रिय याद तुम्हारी आई।।
कजरा गजरा माथे बिंदिया मोतियन माँग सजाई।
हाँथो में तेरे नाम की मेंहदी साजन मैने रचाई।
ये मन प्यासा चातक बन हो——
इक बूँद की आस लगाई प्रिय याद तुम्हारी आई।।
धानी चुनरिया आज पहन कर ड़ोलूं मैं इठलाती।
आयेंगे साजन सावन में भेजी मैने पाती।
पड़ते नहीं पाँव धरा पे हो——-
पड़ते नहीं पाँव धरा पे फिरती मैं बौराई।।
प्रिय याद तुम्हारी आई।
हाँथो में ले हाँथ सजन बरखा में भीगने आना।
नैनन से हो नेह की बतिया गीत प्रीत के गाना।
मिले अधर से अधर हो——-
मिले अधर से अधर मैं नैन मूंद शरमाई।।
प्रिय याद तुम्हारी आई।
रिमझिम बरखा के आने से प्रिय याद तुम्हारी।
मेरे मन के आँगन में फिर गूँज उठी शहनाई।
प्रिय याद तुम्हारी आई।।
प्रिय याद तुम्हारी आई।।