केवरा यदु मीरा के दोहे
(1) चंदन
माथे पर चंदन लगा, कैसा ढ़ोंग रचाय ।
मंदिर मठ के नाम पर, वह व्यापार चलाय ।।
(2)अग्निपथ
सैनिक चलते अग्निपथ, लिये तिरंगा हाथ ।
पीछे फिर हटते नहीं, कटे भले ही माथ ।।
(3)दीपक
बेटा कुल दीपक बना, बेटी का अपमान ।
भ्रूण कोख में मारते, होगा कब सम्मान ।।
(4)अहंकार
अहंकार मत कीजिए, जीवन दिन दो चार ।
मुट्ठी बाँधे आ रहा, जाये हाथ पसार।।
(5)चासनी
बोली लगते चासनी, भीतर पाप समाय ।
बगल छुरी रखता फिरे, *मानस* रूप छुपाय ।।
(6)अनुभव
अनुभव सिखलाये हमें ,दुख *में* धरना धीर ।
मन में यह विश्वास हो, कभी न होवे पीर ।।
(7)नैराश्य
छोड़ सदा नैराश्य को, आगे बढ़ता जाय ।
राम कृपा उनको मिले, राह सही दिखलाय ।।
(8)प्रतिकार
जीवन में करते रहें, हम अनीति प्रतिकार ।
सत्य मानिये फिर कभी, नहीं मिलेगी हार ।।
(9)मधुप
फूल फूल को चूमता, अरे मधुप नादान ।
काँटों का भय है नहीं, *गुन गुन* करता गान ।।
(10)जलधि
जलधि लाँघ लंका गये, सीता की सुधि लाय।
हनुमत प्रिय श्री भरत सम, हिय से राम लगाय ।।