मिल कर दिवाली को मनाएँ हम
चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।*
*हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*
*मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।*
*करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।*
*भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।*
*जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।*
*चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1*
*चलो इस बार फिर मिल कर…..*
*छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।*
*करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।*
*लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।*
*लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।*
*जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2*
*चलो इस बार फिर मिल कर…..*
*न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।*
*उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।*
*गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।*
*चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।*
*उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3*
*चलो इस बार फिर मिल कर…..*
*करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।*
*लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।*
*बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।*
*दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।*
*उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4*
*चलो इस बार फिर मिल कर…..*
*चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।*
*हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*
*प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019*
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।
हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।
मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।
करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।
भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।
जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।
चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1
चलो इस बार फिर मिल कर…..
छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।
करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।
लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।
लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।
जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2
चलो इस बार फिर मिल कर…..
न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।
उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।
गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।
चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।
उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3
चलो इस बार फिर मिल कर…..
करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।
लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।
बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।
दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।
उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4
चलो इस बार फिर मिल कर…..
चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।
हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।
प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद