Author: कविता बहार

  • आओ चले गाँव की ओर-रीतु देवी

    आओ चले गाँव की ओर-रीतु देवी

    आओ चले गाँव की ओर

    आओ चले गाँव की ओर-रीतु देवी

    आओ चले गाँव की ओर
    गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
    रस बस जाए गाँव में ही,
    स्वर्ग सी अनुभूति होती यहीं।
    खुला आसमाँ, ये सारा जहाँ
    स्वछंद गाते, नाचते भोली सूरत यहाँ।
    आओ चले गाँव की ओर
    गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
    आमों के बगीचे हैं मन को लुभाते,
    फुलवारियाँ संग-संग हैं सबको झूमाते ,
    झूम-झूम कर खेतों में गाते हैं फसलें,
    मदहोश सरसों संग सब गाते हैं वसंती गजलें।
    आओ चले गाँव की ओर
    गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
    संस्कारों का निराली छटा है हर जहाँ,
    नये फसलें संग त्यौहार मिलकर मनाते यहाँ।
    प्यारी बोलियाँ ,मधुर गाने गूँजते कानों में
    स्वर्णिम किरणें चमकते दैहिक खानों में
    आओ चले गाँव की ओर
    गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन ओर
    एकता सूत्र में बंधे हैं सब जन,
    भय, पीड़ा से उन्मुक्त है सबका अन्तर्मन।
    पुष्प सा जनमानस जाते हैं खिल यहाँ,
    वर्षा खुशियों की होती हैं हर पल यहाँ।
    आओ चले गाँव की ओर
    गाँव की मिट्टी बुलाती उन्मुक्त गगन  ओर

    रीतु देवी
            दरभंगा, बिहार
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  • माँ पर दोहे- राजकिशोर धिरही

    माँ पर दोहे- राजकिशोर धिरही

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    mother their kids
    माँ पर कविता

    माँ पर दोहे

    असली माँ जो जन्म दे,बड़ा करे हर हाल।
    उनकी सेवा रोज हो,खूब सजा कर थाल।।

    शिशु को रखती कोख में,सह कर सारे दर्द।
    आँचल में हमको रखे,धूप रहे या सर्द।।

    जतन करे वह रात दिन,करती वह पुचकार।
    माँ की ममता खूब है,वह तो तारन हार।।

    जीवन देती दूध से,करती रहती मान।
    उसके आगे है नहीं,कोई भी भगवान।।

    अपनी माता को नमन,करते बारम्बार।
    मैया हमको तार दे,तुमसे ही संसार।।

    माटी की है वो नहीं,उसमें सच्ची जान।
    सुन कर समझे दर्द को,माँ है श्वास समान।।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जांजगीर
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  • विश्वास की परिभाषा – वर्षा जैन “प्रखर”

    विश्वास की परिभाषा

    विश्वास एक पिता का

    कन्यादान करे पिता, दे हाथों में हाथ
    यह विश्वास रहे सदा,सुखी मेरी संतान। 
    योग्य वर सुंदर घर द्वार, महके घर संसार
    बना रहे विश्वास सदा, जग वालों लो जान।

    विश्वास एक बच्चे का

    पिता की बाहों में खेलता, वह निर्बाध निश्चिंत
    उसे गिरने नहीं देंगे वह, यह उसे स्मृत। 
    पिता के प्रति बंधी विश्वास रूपी डोर
    हर विषम परिस्थिति में वे उसे संभालेंगे जरूर।

    विश्वास एक भक्त का

    आस्था ही है जो पत्थरों को बना देती है भगवान
    जब हार जाए सारे जतन,तो डोल उठता है मन। 
    पर होती है एक आस इसी विश्वास के साथ
    प्रभु उबारेंगे जरूर चाहे दूर हो या पास।

    विश्वास एक माँ का 

    नौ माह रक्खे उदर में, दरद सहे अपार
    सींचे अपने खून से, रक्खे बड़ा संभाल। 
    यह विश्वास पाले हिय मे, दे बुढ़ापे में साथ
    कलयुग मे ना कुमार श्रवण, भूल जाए हर मात।

    विश्वास डोर नाजुक सदा
    ठोकर लगे टूटी जाए। 
    जमने में सदियों लगे
    पल छिन में टूटी जाये। 
    रखो संभाले बड़े जतन से
    टूटे जुड़ ना पाये।


    वर्षा जैन “प्रखर”

    दुर्ग (छ.ग.) 

    7354241141

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  • आदि भवानी-रामनाथ साहू ” ननकी ”                  

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

    durgamata

    आदि भवानी

    नवदुर्गा नव रूप है ,
                          नित नव पुण्य प्रकाश ।
    साधक जन के हृदय से ,
                          तम मल करती नाश ।।
    तम मल करती नाश ,
                      विमलता से मति भरती ।
    उज्ज्वल सतत् भविष्य ,
                       नाश दुर्गुण का करती ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
                       अरे मन माँ के गुण गा ।
    अद्भुत शक्ति अनंत
                            संघ हैं श्री नवदुर्गा ।।

                   ~  रामनाथ साहू ” ननकी “

                                 मुरलीडीह

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  • अमित अनुभूति के दोहे

    अमित अनुभूति के दोहे

    लिखने वाला लिख गया, उल्टे सीधे छंद।
    बिना पढ़े कहते सभी, रचना बहुत पसंद।~1

    कविता लेखन थोक में, मनमर्जी के संग।
    शब्द शिल्प आहत हुए, भाव बड़ा बेढंग।~2

    सृजनहार समृद्ध कहाँ, सुलझे नहीं विचार।
    कविताई  के नाम पर, करता  है  व्यापार।~3

    तुकबंदी करता फिरे, जीवन भर षटमार।
    यत्र-तत्र छपने लगा, बनके रचनाकार।~4

    नालायक नायक बना, मिला श्रेष्ठ सम्मान।
    सज्जनता रोये ‘अमित’, देख दंभ अभिमान।~5

    कड़वी कविता में ‘अमित’, सृजन समझ अनमोल।
    शब्द जाल  संवेदना, अक्षर अक्षर  तोल।~6

    व्यर्थ वाक्य हैं बोलते, विनत कहाँ व्यवहार।
    वर वैभव की वासना, बातें लच्छेदार।~7

    मोल कहाँ अब सत्य का, चाटुकारिता सार।
    पद पैसे की चाह में, विज्ञापन ही सार।~8

    पैसा देकर वो छपे, लिखते जो कमजोर।
    थोथा बाजे है चना, करते केवल शोर।~9


    कन्हैया साहू “अमित”

    शिक्षक~भाटापारा (छ.ग)

    संपर्क~9200252055
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