Author: कविता बहार

  • दिल की बात बताकर देखो

    दिल की बात बताकर देखो

    दिल की बात बताकर देखो
    मन में दीप जलाकर देखो।
    कौन किसी को रोक सका है
    नाता खास निभाकर देखो।
    आँखों की बतिया समझो तो
    लब पर मौन सजाकर देखो।
    इश्क़ सफ़ीना सबका यक सा
    थोड़ा पार लगाकर देखो।
    लोग जगत सब मैला यारों
    मन का वहम मिटाकर देखो।
    रब का एक नज़रिया सब पर
    ऐसा भाव जगाकर देखो।

    राजेश पाण्डेय अब्र
        अम्बिकापुर

  • मंज़िल पर कविता

    मंज़िल पर कविता

      सूर्य की मंज़िल अस्ताचल तक,
    तारों की मंज़िल सूर्योदय तक।
    नदियों की मंज़िल समुद्र तक,
    पक्षी की मंज़िल क्षितिज तक।

    मंजिल लक्ष्य

    अचल की मंज़िल शिखर तक,
    पादप की मंज़िल फुनगी तक।
    कोंपल की मंज़िल कुसुम तक,
    शलाका की मंज़िल लक्ष्य तक।

    तपस्वी की मंज़िल मोक्ष तक,
    नाविक की मंज़िल पुलिन तक।
    श्रम की मंज़िल सफलता तक,
    पथिक की मंज़िल गंतव्य तक।

    बेरोजगार की मंज़िल रोजी तक,
    जीवन की मंज़िल अवसान तक।
    वर्तमान की मंज़िल भविष्य तक,
    ‘रिखब’ की मंज़िल समर्पण तक।

    ®रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’
    जयपुर (राजस्थान)

    मनीभाई नवरत्न की १० कवितायेँ

  • उपवन की कचनार कली है

                उपवन की कचनार कली है

    उपवन की कचनार कली है ।
    घर भर में  रसधार ढ़ली  है ।।
    यह दुहिता जग भार नहीं है ।
    अवसर दो  हकदार नहीं है ।।
    समय सुधा रस सिंचित  बेटी ।
    पथ गढ़ती अब किंचित बेटी ।।
    नव  युग  प्रेरक है अब  देखो ।
    सृजन महत्व मिला सब देखो ।।
    अब खुद  जाग रही सपने में ।
    हक हित भाग रही गढ़नें में ।।
    घर  भर  बंधन  बाँध गई वो ।
    मन ममता भर लाँघ गई वो ।।
    कुछ दिन पाहुन होकर जीती ।
    सजन दुलार सखी बन पीती ।।
    पिय हिय  में वह नैहर  भाती ।
    बचपन  बाबुल भूल न पाती ।।
    नव  कुल  गोत्र  गढ़े यह  बेटी ।
    सुख भवि  नेह सदा सब देती ।।
    अगर  हँसे  घर  में शुचिता  हो ।
    बस ममता ललिता कविता हो ।।
                    ~~   रामनाथ साहू ” ननकी “
                               मुरलीडीह (छ. ग.)
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  • माँ पर कविता

        माँ पर कविता  

    बड़ी हसरत भरी आँखे लिए क्या
               ताकती है माँ ।
    नहीं कहती जुबाँ से वो मगर कुछ
               चाहती है माँ ।।
    बदलते रोज हम कपड़े नये फैशन
                 जमाने   के ,
    तुम्हे कुछ है पता साड़ी पुरानी
               टांकती है माँ ।
    अगर कोई कभी आये तुम्हारे घर
                जरा    देखो ,
    कमी कोई न हो अक़सर झरोखे
               झांकती है माँ ।
    अभी आया नहीं था माँ कहे लड़का
                   यकीं होगा ,
    कहीं  ठंड़  न  लगे  तुझको  जर्सी को
                 काढ़ती है माँ ।
    तुझे क्या चाहिए माँ के अलावा कौन
                     है  समझा ,
    भरे   संसार  में  सबसे    ज़ियादा
                  जानती है माँ ।
    अगर वो चाहती तो तू कभी का मर
                    गया   होता ,
    बिना ही लोभ  के  वो   दूध  अपना
                  बांटती है माँ ।
                     ~  रामनाथ साहू ” ननकी”ः
                             मुरलीडीह (छ. ग.)
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  • फागुन में पलाश है रंगों भरी दवात

    फागुन में पलाश है रंगों भरी दवात

    फागुन में पलाश है, रंगों भरी दवात ।
    रंग गुलाबी हो गया, इन रंगों के साथ ।।
    अँखियों से ही पूछ गया, फागुन कई सवाल ।
    ख्बावों का संग पा लिया, ये नींदें कंगाल ।।
    पलट-पलट मौसम तके, भौचक निरखें धूप ।
    रह-रहकर चित्त में हँसे, ये फागुन के रूप ।।
    फूलों भरी फुलवारियाँ, रस-रंगी बौछार ।
    जो भींगें वही जानता, फागुन का ये फुहार ।।
    ‘सपना’ है खोई हुई, ये फागुन की पद-चाप ।
    रंगों वाली हथकड़ी, हमें लगा गई चुपचाप ।।
    …..अनिता मंदिलवार ‘सपना’
    अंबिकापुर सरगुजा छ. ग.
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